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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७ अन्त्य त्रण रचनाओ तपगच्छपति विजयप्रभसूरिनी स्तुतिपरक छे, तेओ ओसवाळ वंशना शाह शिवगण अने भाणीना 'वीर' नामना पुत्र हता तेमज विजयदेवसूरिजीना पट्टधर हता ओ सिवायनी कोई ऐतिहासिक हकीकतो आमां नोंधाई नथी. पण तेमनो गुणवैभव, तेमणे मेळवेली लोकचाहना अने कर्तानो तेमना प्रत्येनो अहोभाव आमां अवश्य माणी शकाय छे. त्रण विभिन्न देशीओमां थयेली आ रचनाओ गेयता अने सरस कथनरीतिने लीधे मधुर बनी छे.
नेमनाथस्तवन (क्र. २) सं. १७१३मां महेसाणामां चोमासा दरम्यान रचायु छे. अन्य रचनाओमां रचनावर्षनो उल्लेख नथी, परन्तु श्रीयशोविजयजीनो 'उपाध्याय' के 'वाचक' तरीके उल्लेख न होवाथी तेमना उपाध्यायपदवीना वर्ष सं. १७१८ पूर्वेनी ते रचनाओ होई शके.
महोपाध्याय-श्रीयशोविजयगणि-शिष्य श्रीतत्त्वविजयगणिरचित पांच लघुकृतिओ
- सं. मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय उपाध्यायजीना उपासकोने मन उपाध्यायजी विशे कंडक नवं जडी आवे अटले ओच्छव-महोच्छव थई जाय, अने अमांय अमना शिष्यरत्ने रचेली पांच-पांच कृतिओनी (ओ पण पाछी अजाणी ने अप्रगट!) कर्ताना स्वहस्ते लखायेली प्रत मळी आवे तो तो जाणे गोळनुं गाडु मळ्यु ! अत्रे आ आनन्दने वहेंचवानो ज उपक्रम छे.
मूळे आ प्रत (सचित्र) कोईक ज्ञानभण्डारना (घणेभागे ला.द.ना) हस्तप्रतसङ्ग्रहमां सचवाई हशे. पण तेनी Xerox परमपूज्य विद्वद्वर्य मुनिराज श्रीधुरन्धरविजयजी पासे सगृहीत हती. तेओओ हमणां ते Xerox मित्रताना नाते पूज्य गुरुभगवन्तने पाठवी. अने साहेबजीओ तेनी नकल करवानी मने आज्ञा करी.
उपाध्यायजीना शिष्यो माटे मनमा कायम अेक जात- आकर्षण रहे छे. उपाध्यायजीना ग्रन्थोमां डगले ने पगले जोवा मळती साधुतानी व्याख्या अने श्रामण्यनी विभावना जोतां से स्पष्ट छे के अमना शिष्य थवा माटे पण बहु आकरी तावणीमा तपवानुं थतुं हशे. काचापोचा तो ओ काम ज नहीं होय. उपाध्यायजी शिष्य तरीके स्वीकारे अने तेमनां चरणोनुं सांनिध्य मळे ओ जीव ज केटलो बडभागी गणाय! अने ओवा जूज बडभागीओमां तत्त्वविजयजी मुख्य छे.
तत्त्वविजयजीने कवित्वशक्ति लोहीमां ऊतरी हशे. काव्यकला ओ गुरुपरम्परामा ज वहेती हशे. पण्डित नयविजयजी अमना दादागुरु. ओ पण कवि जीव. गुरुमहाराज उपाध्याय भगवन्त तो मध्यकालीन काव्यसाहित्यक्षेत्रे मातबर प्रदान करनारा महापरुष, अने तत्त्वविजयजीओ पण जे वारसो साचव्यो. अमरदत्त-मित्राणन्दरास, चतुर्विशतिजिनभास व. तेमनी कृतिओ प्रसिद्ध छे. अनुसन्धाननां पाने पण तेमनी कृतिओ प्रकाशित थई छे.
प्रस्तुत कृतिओमां पहेली छे नेमनाथ बारमासा. नेमनाथना विरहमा टळवळती राजीमतीनी आन्तरव्यथा, बारमहिनाना अलग अलग कार्यसन्दर्भे वेठवी पडती एकलताना माध्यमथी अत्रे व्यक्त थई छे. जोडली तूटी गया पछी, एकलवायु जीवन केटलुं दोह्यलुं होय छे तेनुं बयान आपणने बेचेन बनावी मूके तेवां संवेदन जन्मावे छे. बीजु नेमनाथ स्तवन पण राजीमतीनी विरहवेदनानुं ज करुणगीत छे.
१. नेमनाथबारमासा
|| तातवचन श्रवण सुणी - ए देशी ॥ सारद पदपङ्कज नमी, मनि धरी आणंद । सदगुरु केरइ सांनिधि, थुणसुं नेम जिणंद ॥१||
रहो रहो नेमजी वालहा... रंगि राजीमती कहइ, सुणो जीवनप्राण! । आस निरास न कीजिइ, तुम्हे चतुर सुजाण ॥२॥ सखि! आसाढ मेह धडूकिओ, झबकइ अति बीज । बापिअडउ पिउ पिउ करइ, सुणतां होइ खीज ॥३॥ श्रावण मास ज आविओ, नाविओ पिउ गुणवंत । कंत विना कहो गोरडी, किम काल गर्मत ॥४॥ भाद्रव मासनी रातडी, वाल्हो नहीं मुझ पासि । ए सेज ए चित्रशालडी, न गमइ ए आवास ||५|| नवराति आसोई सही, ख्याली लोक रमंत । घणुं रे घणुं वाल्हा! वीनवू, प्रीतम! आवो अकांत ॥६॥ सखि! कार्तिक मासि दीवालडी, सहू करइ पकवान । नवल नेह पल्लव करइ, मुझ दुख असमान ॥७॥