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जून २०१५
धम्मि भली छई भावना, तप जप व्रत सील दान पुण्य भावई कीयउ, आपई सिवलील... ७७ जिनवरेई कालई भलई, हूयउ गुणह अगाध; कुसंग तजी नाम ले करी, वंदउ ओ साधु... ७८ खरतरगछि वाचक थयउ, मतिवर्धन नाम; मेरुतिलक तसु सीस जे गुणगण अभिराम... ७९ तसु सुविनेय गुणी अछई, दयाकलस मुणीस; तासु सीस रंगई कहई, साधुकीरति जगीस... ८० सोलह चडवीसई (१६२४) समई, योगिणिपुरि ठाण; कीयड विजयदसमी दिणई, यहु चरित विनाण... ८१ अ प्रस्ताव मनोहर, नवरस संबंध;
साधुकीरति मुनिवरि रच्यउ, अषाढप्रबंध. ८२ पापड गोत्रइ परगडड, श्रीवंस श्रीमाल
साहतेजपाल करावीयड, संबंध रसाल.... ८३
लहिस्यई सुख जे गावस्यई, नरनारी वृंद कुसल मंगल अविचल धरइ, सुणतां आणंद... ८४
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इति मायापिंडग्रहणे श्रीभावनाविषये श्री आषाढभूतिऋषिप्रबन्धः समाप्तः ॥ मुनिगुणजीलिखितं ॥
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विश्रमिकुं कृत गजसिंहरायचरित्ररास
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अनुसन्धान-६७
सं. किरीट शाह
[गुजराती साहित्य कोश, पृ. २२७ तथा जैन गूर्जर कविओ १.२१० मां जणावाया मुजब मुनिश्रीनेमिकुंजर द्वारा सं. १५५६नी जेठ (प्रथम) शुदि १५ना दिवसे प्रस्तुत कृति रचाई छे. सं. १७०८ना वर्षे लखायेली रतलाम भण्डारनी प्रत उपरथी प्रस्तुत कृतिनुं सम्पादन थयुं छे. ४००थी वधु कडीमां पथरायेला आ रासमां गजसिंहकुमारनुं शील- सदाचारना पालनना महिमाने वर्णवतुं चरित्र गुंथायुं छे. रासना ४ खण्ड छे. जेमांथी २ खण्ड अत्रे प्रकाशित कर्या छे. बाकीना २ खण्ड भविष्यमां प्रकाशित थशे.]
॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ ॥ दूहा ॥
पास जिणेसर पाय नमी, तेवीसमउं जिणंद,
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सेव्यो सुख संपइ (द) दीइ, प्रणमइ सुर-नरइंद... १ कासमीर मुख मंडणी, समरी सरसति माय, सील तणा गुण वरण, गाउं गजसिंघ राय.... नव रस नव रंग वरणवं शास्त्रमांहि जे होइ, वीर कथा रस वरण, तं निसुणो सहु कोई .... ॥ चपई ॥ महिमंडल छई मालव देस, जिहां उजयणी नयर नवेस, गढ मढ मंदिर पडलि पगार, वसई नगर नव जोयण बार... ४ राज करइ जयसंघ भूपाल, न्यायवंत अरिभंजण काल, परदु:खकातर सूर सुजाण, नित पालि जिनवरनी आण... तस घरि राणी कमलावती, रूपें करी रम्भा जीपती, प्रियसिंड धरती प्रेम अपार सुख भोगवइ निरंतर सार... ६
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