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________________ जून - २०१५ अनुसन्धान-६७ ओक दिवस नीस 'पउढी बाल, पेखइ सुपन सार सुविसाल, गयवर सीह दोइ दीठा जिसइ, प्रह विहसी स्त्री जागी तिसई...७ ऊठी रमणि हरख मन धरइ, धरम ध्यान सविसेर्षे करड. जई वीनवीयो निज भरतार, स्वामी सुपन अनोपम सार... ८ निसंभरि जाणुं गज नई सिंघ, मई दीठा घरि करता रंग, सुणि वचन राजा गहगहइ, हीयइ विमासी राजा कहइ... ९ होसे पुत्र घरें गुणवंत, राजधुरन्धर नि बलवंत, राणी उव(द?)रि हूवो अवतार, दीनदिन ओछव जयजयकार...१० पूरि मास सुत जनमीयों, राों ओछव अति बहु कीयो, नगरमांहि सहु हरख्यो ठाम, जगसिंघ कुमर दिवास्यो नाम... ११ जिम जिम वाधइ कुमर सरीर, तिम तिम बह गुणनिध गम्भीर, पांच वरस हूवा जेतलइ, भणवा मूक्यो सुत तेतलई... १२ सीखइ ते सास्त्र अतिसार, कला बहुत्तरि लखिण सार, गुणवंत पूरं सुरवहू, तस वखाण करई जन सहू... १३ ॥ वस्तु ॥ ओणि अवसरि ओणि अवसरि नयर उजेणि, कोई "वदेसी आवीयो, सूत्रधार सहु कला जाणइ, मोर अक रूडो घडी, राजसभा ते भेट आणइ, ते देखी चित्त रंजीयो, इम जंपइ ते राउ, ओ जे जीवंतो करई, तस दिउ बहुत पसाओ... १४ ॥ दूहा ॥ इसी वात तिणि साम्भली, तव बोलइ सूत्रधार, विप्र ओक धारा नयरि, जाणइं विद्या सार... १५ राय वात तव साम्भली, तव मोकलीयो दूत, धारानयरि ततखिण गयु, विप्र घरि पहूत... १६ दूत भणई विप्र निसुणि, तेडइ गज(जय?)सिंघ राइ, विद्या ताहरी सांभली, आपइ अधिक पसाइ... १७ विप्र मन हरख्यो घj, तव उजेणी पहूत, रंगे राजा भेटीयो, आदरि दीध बहूत... १८ राय भणइं विप्र निसुणि, करि जीवंतउ मोर, कला प्रगट करि ताहरी, तूं छउ विद्यापूर... १९ ॥ चउपइ ॥ विप्र भणई राजा अवधार, विद्या सार अछि संसार, भाग विना नवि लाभइ देव, यह वात तुम जाणों हेव... २० आण्या अखित जपिवा मंत, केसरसिउ तिण लिखीयो जंत, आडंबर मांड्या अति घणा, कुस(सु)म अणाव्या कणियर तणा... २१ आडंबर कीजइ इणि ठाणि, स्त्री राजकुली सुसरा जाणि, गामसभामहि वयरी देख, आडंबर कीजइ सुविसेष... २२ कीयो जंत्र मांडीनई मंत्र, कीधी विद्या सघली तंत्र, करी जंत्र कर्डि बांधीयो, तेतलई मोर सजीवू थयो... २३ राई बांभण मान्यों घj, दालिद्र काप्यो तेहू तणुं, अम्बर ऊडइ अधरां भिडइ, जंत्र छोडइ तव हेठो पडइ... २४ राों विद्या दीठी सार, तव तेड्यो गजसंघ कुमार, रमवा कारण आप्यो सही, महिमा विध सघली ते कही... २५ तव हियडइ चितवइ कुमार, अह विद्या मुझ आपी सार, लेई पांजरुं ठवयो मांहि, निसभरि पउढ्यो कुमर उछाहि... २६ राति बि पुहुर थई जेतलइ, कुमर सजग थयुं तेतलई, अबला अंक रोवंती सुणी, मुख जंपइ हूं अभागिणी... २७ सुणी सबद ऊठीयो कुमार, कर लीधुं ततखिण हथियार, भांगँ दुःख ओ अबला तणों, तउ सही साचु राउतपणों... २८ लेई सबद तणुं अणुसार, राय उलंघ्या पउलि पगार, दीठी अबला वन अकली, आयो कुमार उतावलो वली... २९ अबला बोलावी तिणवार, किणे दुःख रोवइ तूं नारि(र?), तेह कारण मुझ आगलि कहो, तुझ दुःख भांजसि रोती रहो... ३० १. सूती २. आखीरात ३. पेट ४. विदेशी ५. प्रसाद, दक्षिणा १. अक्षत, चोखा २. अधर, ओठ ३. भीडववा ४. राजपुत्रपणुं
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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