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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
॥ दूहा ॥ अडिल कुंडलीयादिक वयणि, कीयउ अनुन्न संवाद; मुनिवर मन जाण्यउ खरउ, छोडई सही प्रमाद.... ६२ केम करु प्रतिबंध छई, कूडउ भाखई सोई; जेहनउ मन साचउ जिहां, राखि न सक्कइ कोई.... ६३
॥ ढाल || लालिपालि चरणे नमई साहेलडी हे, याचई जीवनउपाय, करि अंजलि नारी कहई साहेलडी हे, वीनती सुणि मुनिराय; वीनती सुणि मुणिराय तईसउ, करउ नाटक ओक, जिणि भूप अधिकउ दान आपइ, अह तुम्ह विवेक; परिवार कामिनि सुखी थायइ, कुटुंब चिंतासार, जाइवउ करिज्यो पछइ सामी, वीनती अवधारि... ६४ वईण दाखिनि दिन सातकउ सा० मानि सभाई जाई, भाखई ईक देखउ कला सा० साधन घउ हिव राय; हिव राय पात्तुवगरण भूषण, देई तासु सुजाण, भरथेसर चक्री तणउ नाटक, कर्यउ भाव मंडाण; पंचसइ राजकुमार मेल्या, रूपि देवकुमार, रिधि रची भरथ नरेसनी, सवि अंतेउर परिवार... ६५ चक्र उपन खंडसाधना सा० जईसई राजभिषेक, वेस करी तिम दाखीउ सा० मोह्या पुरुष अनेक, मोह्या जुजु पुरुष अनेक, भूपति बईठा जोयई रंग, नाटकीया अति सरस गाई, वाई वाजिंत्र चंग; तत धेगि धेगि निसरगमपधुनि, पात्र ऊचरई नाद, त्रिभुवन कौतुक करी विस्मित, गयउ तसु विखवाद... ६६ अनुक्रमि दर्पणगृह रच्यउ सा० कीध सिंगार विसेस, बईठ सिंहासनि रिषि जइ सा० आपु थई भरथनरेस; आपु थई भरथनरेस निरखई, अंगि सयल सिंगार, मुद्रिका एक जु धरणि नांखी, ताम तेणि विचार;
अंगुली तिण विण थई अलूणी, चड्यउ भाव उदार, आभरण जे जे मुणि उतारई, तिह न सोभ लिगार... ६७ देखी तेह अनित्यता सा० वईरागई भरपूर, अहु ईहु काया कारिमी सा० अंतर असुचि अंकूर; अंकूर अंतर असुचि काया, बाह्य मंडित सार, पोखतां न हुयई आपणी, ओ जिसउ लीपणछार; घणकर्म छोडि अपुव्व चडीयउ, तेरमई गुणठाण, भरथनी भावनि ईसी उज्जल, लाउ केवलनाण... ६८
|| गाथा ॥ जव जविले तव तविओ, बहुविहकालेण हुंति सिद्धीउ; निद्दहई कम्मजालं, झाणेण ततक्खणा सिद्धी... ६९
॥ ढाल ॥ वेस लेई पद्यासनि बईठा, करत वखांण सुगाजई; लोकालोक पदारथ भासई, भवना संसई भाजई जी... ७० सो जयउ आषाढ मुणीसर, राजादिक प्रतिबोधई; पात्र हुंता नृपकुमर पंचसई, ते दीखई मन सोधई जी... ७१... सो. (आं०) नाटक तणई काजि जे आव्या, वईरागि दीख प्रहंतां; कुमर पंचसई थया केवली, मुनि भावना धरंता जी... ७२... सो.. तद्भवमुक्तिगामि अ मुनिवर, सुविहित गुण आचारई; कर्म उदय व्रत छंडी रहीयउ, नाटकणी घरबारई जी... ७३... सो... कुटुंब दविण काजई नृप आगलि, नाटक रच्यउ मंडाणू; सुकृत कर्म महिमा वलि तक्खण, पाम्यउ केवलनाणू जी... ७३... सो... महिमंडलई विहार करई बहु, भविक लोक उपगारु; सीसदि परिवरीयउ सोहई, पंचसयां परिवारू जी... ७४... सो... राजकुमर मुगतई ते पहुता, सुगुरु लही सिरताजू; खय करी कर्म अषाढ जतीसर, पुण पामइ सिवराजू जी... ७५... सो.
॥ ढाल | भावण आषाढभूतिनी, धन तसु परिणाम; भरथ नाटक नाचंतडां, लाउ केवळ नाम... ७६