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________________ जून - २०१५ अनुसन्धान-६७ तजि व्रत रत्ता विषयविकारइ, कामिनि कहति ति कज्ज न सारई; विना भोग टालिसु किम काल, तीर न नीर लहिसु सुकमाल... ४६ छेहि जेह संजमरसि रत्ता, पावई मुगति भवई नहु खुत्ता; सो संजमहि खरउ सुहावई, कपि वईराग चित्ति नहु आवई... ४७ || गाथा ॥ पच्छावि ते पयावा(या), खिप्पं गच्छति अमरभवणाई; जेसि पिउ तवो संजमो य, खंती य बंभचेरं च...(दसवे०) ४८ अप्पेण वि कालेणं, केई जहागहियसीलसामन्ना; साहंति निययकज्ज पुंडरियमहारिसिव्व जहा...(उप.मा.) ४९ ॥ अडिल || सेज सुहेज पल्यंक पटउलि बिछाईयई, चित्रविचित्र उलोच सुधाम वणाईयई; दीपकजोति फुरंत अवासि रहीजीयई, भामिनि भोगवि भोग सुरागई रीजीयई... ५० सव्वअधारण भूमिसयण सुरूअडउ, व्यापक व्योम विसेषि अभंग चंडूअडउ; चंद दिवाकर दीप सुधान महल्लमई, संजम नारि विनोद विरागि यती रमई... ५१ तजि अह नेह नारी तणउ, नारि दुःखकारण घडी; करिस्युं सनेह अविहड मिलई, संजमसिरिस्युं प्रीतडी... ५३ ॥ दूहा ॥ मातपिता कामिणि वली, सासू सुसर धुरीण; ओ कुटुंब किम छंडीइ, सगपण विण अकुलीण.... ५४ धर्म पिता जननी क्षमा, सुसरउ संजम रूप; सासु धृति कामिणि दया, मुनि इहु कुटुंब अनूप... ५५ स्मर भिल्लडइ लगाइ तनि, विरहअनल विकराल; भोगजलइ सुबुझाइ तुं, हम तुम्ह नृपति विसाल... ५६ भव अनंत मई भोगव्या, सुरवरसुख बहुवार; पाम्यउ नारिसंजोग वलि, तउहि न तृपति अपार.... ५७ ॥ द्विपदी ॥ प्रीति वेलि उर मंडवंमि, लहलहई मणोहर; सीचि विलास जलेण, जेम उल्लसई निरंतर मानि ईतउ हम वयण, कहइ कामिणी विचारी; राग अछई सुखकंद जिहां, मनमोहण नारी... ५८ कीधउं विद्याज्जांण, लहुवय लगि हुं लाल्यउ; सुगुरु न मन्नी सीख, तासु मई वयण न पाल्यउ; विषईरसई वाहीयउ, ताम आण्यउ वसि मयणई; दीठउ नयणे तुह सरूप, न पतीनुं वयणई.... ५९ कोकिल कुहु कुहु करई, नाद केकी न सुहाई; प्रीउ प्रीउ चातक चवई, विरह विरहिणी जगाई; तुम्ह गुणि मन मोहीयउ, जेम महुयर वणराई; आवी कंत अकवार, विरहकी तपति बुझाई.... ६० साचउ जासु सरूप विरह, कबही नवि थाई; मुगति नारि पामीयई, जेणि संजमि लय लाई; दीधउ चारित छेह, पापमई कीयउ प्रसंगो; नरय तिरिय गति रोधि, करिसु हिव चारितरंगो... ६१ ॥ कवित्वं ॥ खल गुल ओक म करउ, निगुण न हुयई सहु नारी; सबह पटंतर जोइ, सरिस अंगुली न सारी; चंदन विरहिणि दहई, फुल्लकी चाल भुयंगम; लावण्य लील भुयाल, करउ करुणा इतनी हम; चीतवां चित्ति तोरा सुगुण, चंद चकोर जि संभरई; अविहड सुप्रेम साहिब सुणउ, बाहुडि आवउ ईणि घरई... ५२ माया मुझ भोलायउ, ओक कामिणि ठगसूरी; रंगई करई विरंग प्रेम, चंचल क्षणि पूरी; वायसुडावणि हारमई जु, नाख्यउ चिंतामणि; चंदन कीधउ छारमई जु, कोईलाकि कारणि;
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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