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जून २०१५
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यत्न करीजई बहुत उपाय, तउ हि न मिटई मूल सहाउ; टाढि न उसहसहज पालगड, अउखाणउ साचउ जनतणउ... २५ ॥ श्लोकः ॥
प्रकृतिश्च स्वभावश्च न मां मुञ्चति राघव !;
अहं प्रकृति मुञ्चामि सा मां नैव मुञ्चति... २६ परीक्षणीयो यत्नेन स्वभावो नेतरे गुणाः;
अतीत्य हि गुणान् सर्वान् स्वभावो मूर्धिन वर्त्तते... २७ ॥ चुपाई ॥ मूल प्रकृति जेहनी जिसी, छंडि उपाधि होई ते तिसी; वायस विष्टायई तुष लहइ, उच्च छोडि नीचई जल वहई... २८
॥ ढाल ॥
भूप पसाउ लही करी, बाजइ ढोल नीसाण;
धवल मंगल गीत गाइयइ, सवि करइ वखाण... २९
नट जीपी घरि आवीयउ, आषाढ मुणिदः
रागरंग नारि तणई, मन मई आणंद.... न. (आं०)
पहतउ रंगमहल्ल मई, मदविह्वल नारि;
चीररहित धरती परी, नवि मानी कार... ३०. न.
चेत विसंठुल वल्लही, पेखी सविकारि;
विषयरागि विरतउ थयउ, जाग्यउ हीयई मझारि... ३१... (न)
विना लाज प्रलपई मुखइ, नवि विनय विवेक;
तत्त्वनाण मदिरा गमई, वड दूषण ओक... ३२... (न)
मूकी चाल्यउ कामिणी, वारुणि घूमंत;
सूरपणड चिति चेतीयड, वईराग धरंत... ३३... (न)
वचनमेरु लोपी ईहां, रहिवा नही लाग;
छेह जाइ हिव साधुस्युं, सिव केरठ माग... ३४... (न)
साचइ जातउ जाणीयउ, जईसई भरतार;
गहिलपणड मद ऊतर्यउ, थई आकुली नारि... ३५... (न) विषयसार जाणइ नही, साउ विरह न जाइ;
प्रिय प्रिय उच्चरती मुखइ, पति पूठि पुलाई... ३५... (न)
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अनुसन्धान-६७
तुम्ह विरहई हम विरहिणी, हम कछु न सुहाई; करई वीनती विलवती, प्रिय विरह गमाई... ३७... (न)
॥ सोरठा ॥ अतउ मागां मांन, रुष प्रणमंत वखाणीई;
द्यउ हम जीवियदान, वड अपराध न को कीयउ... ३८ मच्छली जल विण जेम, टलवलती क्षणमई मरई;
हम परि जाणउ तेम, नेह तुम्हास्युं छई खरउ... ३९ हिव मुनि भाखई ओह, जईसउ राग पतंति (गि?) उं, चंचल नारी नेह, जईसी बादल छांहडी... ४० जईसउ ठारइ त्रेह, जईसउ राजाहू बलउ; झटक दिखाडई छेह, ते नारि किम सेवीइ... ४१ ॥ कुंडलीया ॥
सीख पियारा श्रवणि सुणि, वयण ओक अवधारि; गुन्हउ अक बगसउ सही, अउर न करूं विगार; अउर न करूं विगार, नारि गुणरागिणि तेरी; सुन्दर सरल सहाउ, जिसी अनुगारिणि (रागिणि? ) चेरी; मृदुभाषिणी सलज्ज चित्त, तुम्हस्युं न विकारा; परणण अवरह नीम, श्रवणि सुणि सीख पियारा... ४२ नारी चित्त न को लखई, चरित न लाभई अंत; वंसजाति जईसी गुपिल, देखि आखु भयभ्रंत; देखि आखु भयभ्रंत, सापदेसु यई उसीसई; देहलि लंघणि दुःख, चलई गिरिसिखरि जगीसई; दुरगति दुखदायिका, कूडकवडी सविकारी;
मुनि पभणइ अतिजोर, चित्त को लखई न नारी... ४३ ॥ चउपई ॥
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आवहु मंदिर सामि रमीजई, गरुया पत्थणभंग न कीजई; लोपणकार हिवई अम्ह कोसो, पायपाणही स्युं कुण रोसो..... अमृत ईसी चीजई जड़ निंबू, कडुय छंडि थाई नवि अंबू दूधई धोयउ वायस जोई, मुनि पभणइ तउ हंस न होई... ४५