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________________ जून - २०१५ अनुसन्धान-६७ देखिसु जब करती सही जी, मदिरा कुणिम आहार; वाचा माहरी पालिस्यूं जी, न रहिस अणि अगारि... १३... भ. मद्यादिक मत आचरठ जी, नर्तक कहई पडूर, प्रभु आखई तिम तुम्हि करउ जी, अह प्रतिज्ञा सूर... १४... भ. ॥ ढाल ॥ अंध(धे) नट बहिरे गीयं, उखरखित्ते जिम बीयं; कामिणी कडक्ख नपुंसई, निष्फल सुवचन इणि सीसइ... १०० ॥ पद्धडी ॥ इणि कलि वछ कीजइ सुरापाण, आहार मंस जिणि नरयठाण; ते परिहरि जे गुरुआ सुजाण, हम गुरुकुं देजे इहु सुजाण... १०१ गुरु सिक्कउ मन्नेइ तउ सार, पट अंतर इतनउ हइ उदार; अंजलि सिरि सीसइ धरी आण, लज्जा गुरि जाणी छई विनाण... २ दीजइ लज्जा करि बहुत दान, लज्जा नवि लोपइ कुलभिमान; लज्जा वलि पामई धर्मयोग, लज्जा गिणिजइ सउ सज्झ रोग... ३ जब करिस्यई मंस सुरा अहार, नवि रहिस्युं तब मुझ इतीकारः । वीनवी ओम गुरु वंदि भाई, तिणि मंदिरि रहण अषाढ जाइ... ४ ॥ ढाल ॥ वाट जोती वालंभनी जी, बइठी गउखि अवासि; आवत दीठउ दूरथी जी, नटधुय थयउ उल्हास... ५ भलई प्रिय आयउ ईण घरिबारि, सुरतरु कल्पउ अपार... भ...(आं०) कामिणिनई दासी कहइ जी, प्रियआगमन विचार; मोतीजडित वधामणी जी, घउ लाखीणउ हार... ६... भ. दक्षिण चीर विछावहु जी, वाती खेवउ धूप; माणिक चउक पूरावहु जी, फूल पगरस्युं अनूप... ७... भ. सकल सोभागिणि हमि सही जी, जब आयउ भरतार; जोवनतरु सुखफल लीयउं जी, करिन सोल सिंगार... ८... भ. गावई गीत मधुरसरई जी, प्रगट्यउ पुण्य पयार; आषाढभूति पधारीया जी, बेवि वधावई नारि... ९... भ. नृत्य करई नवरंगस्युं जी, घुग्धरि पय घमकार; ससिवयणी मृगलोयणी जी, सुरसुंदरि अवतार... १०... भ. नारि मनोरथ पूरवउ जी, हमि तुम्ह परउ संजोग; रहउ अणि मंदिरि तुम्हे जी, भोगवउ नव नव भोग... ११...भ. रिषि भाखई भामिनि सुणु जी, वयण अम्हारउ अक; सुरा मंस जो टालिस्यउ जी, रहिवउ ताम विवेक... १२... भ. कुणिम सुरा हमि टालिस्युं, करिस्युं वचन प्रमाणू ओ; वाच लेई तिणि घरि रहिउ, आषाढभूति सुजाणू ओ... १५ भोगकरमि सुख भोगवई, पासा रामति सारि ओ; अवगणि गुरु व्रत तजि करी, परणइ बेवे नारि ओ... भो...आं० मनोहर काच ढलाईया, जसु नवलखा सुरेखू ; महल मंदिर अनई मालीओ, विलसइ सुख विसेषु ओ... १६...भो. पहिरि पटउली कामिनी, उरवरि कंचुकी हारू अ नाह सुरतसुख माणही, षटरस करइ आहारू अ... १७... भो. कपूर सुवास तंबोल ल्यई, गीत सुहास विनोदू ) सुखसागर माहे कीलतउ, सुकुसुमह सेजि प्रमोदू अ... १८... भो. विषय पंचेइंद्री तणा, तनि तनु मन सुख चीरू ; केसर चंदन मृगमदू, अगर गुलाल अबीरू अ... १९... भो. आस पूरई सुकुटुंबनी, रतिपति रूप अनूप ; मेलई लाछि कला घणी, मान दीई तसु भूपू ओ... २०... भो. || चउपई ॥ बहुत काल तिणि मंदिरि रहई, लीलविलास करई सुख लहई; चालई कार सहू परिवार, पुण्य पचेलिम तणठ प्रकार... २१... भो. अन्न दिवसि परदेसह थकी, आव्या कलावंत नाटकी; अति अभिमान सभामइ करई, हमकुं कुण जीपई पण धरई... २२ राय आदेस लही सुजगीस, चाल्यउ तसु जीपिवा मुणीस; बहु नट परिवरीयउ अभिराम, पहुतउ भूप समीपई जांम... २३ निव्यंजन निर्भय जाणीयउ, मूल सभाव प्रगट तिणि कीयउ; पूठि रहसि ईच्छाचारिणी, वारुणि पान करई पदमिणी... २४
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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