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जून - २०१५
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अनुसन्धान-६७
॥ राग केदार गउडी ॥ धन तनु योवन चंचल्ल जी, आऊ अथिर सुजाणी; कुलवंत संजम नवि तिजई जी, धुरंधर धुरा प्रमाणी... ८० गिरुआ वछ संजम छई जगि सार चेति चेतन चिति आपणइ जी
विरूयउ विषई विकार... गिरुआ... (आं०) भाखई रिषि संभलि गुरु जी, विहरण गयां विसेषि; वेध्यउ मनमेरउ सही जी, नटुई रूपवेस देखि... ८१... ग. सामा सुन्दर जोवनी जी, चउसठि कला निधांन; सतवंती गुण आगली जी, छे बे नारि प्रधांन... ८२... ग.. गुरु पभणइ वछ जाणीयउ जी, ताहरउ चित्त विकार; अकुलीणी किम सेवियई जी, वेश्या दासी नारि... ८३... ग...
॥ गाथा ॥ वेसा दासी इत्तर-परंगणालिंगिणीण सेवाउ; वज्जिज उत्तरोत्तर, ओसिं दोसा विसेसेण.... ८४
|| ढाळ ॥ नारि घणा नर भोलव्या जी, पाड्या संकटे हासि, रावण मुंज भमाडीया जी, म परे परथी पासि... ८५ कच्चूल नर कंडू खणई जी, वेदई दुःख सुख जेम; कामरसई मोह्यउ गिणई जी, विषयां दुख सुख तेम... ८६ कामी नर पामइ इहां जी, बंधन कारागारि; परनारी रसि दुख लहई जी, परभवि नरय मझारि... ८७ कहई आषाढ रहिस्युं नही जी, न रुचई तुम्ह उपदेस; जाईसु तिणि मंदिरि सही जी, द्यउ हिव मुझ आदेस.... ८८
॥ गाथा ॥ उवओससहस्सेहि वि, बोहिज्जंतो न बुज्झई कोई जह बंभदन्तराया, उदाईनिवमारउ(ओ) चेव... (उप.मा.) ९१
॥ सोरठा ॥ गुणियणहुं सर तांह, लाउं पिणि लागई नहीं; पग लगि पाखर जाह, आडी अजाणपणा तणी... ९२ इणि न धर्यउ उपदेस, तउ अकयस्थ म जाणिजे; चंपक कुसुम निवेस, अलि तजीयउ अप्रमाणस्यु... ९३
॥ कुंडलीया ॥ कर्म नटावउ नच्चवई, जिउकुं विवह प्रकार; सुख देई दुख दाखवई, दुःख द्यउ सुख अपार; दुख द्यई सुख अपार, चडई श्रेणी उपसमरसि; पाडई कर्मविपाक आणि, आतम अप्पण वसि; चिहुं गति रुलई प्रमादि, चउदपुव्वा गुणठावउ; ईणकी केही वात, नच्चवई कर्म नटावउ.... ९४
|| गाथा ॥ जूओण जुव्वणेण य, दासीसंगेण धुत्तपिम्मेण; उब्भेउ अंगुली सो, अवसाणे जो न विग्गुत्तो... ९५
असुभकमि श्रुत नवि गिणई, अमृत भी विष जोइ; गुरु उपदेस लग्गइ नही, सुभकर्मइ सुख होइ... ९६
॥ जति ॥ सुभकर्मि करी सुख होइ, बलवंत कृत क्रम जोइ; नारीनर किकर कीजइ, क्रमि दोस किशाकुं दीजई... ९७ अंगुलिकइ अग्गि नचावइ, त्रिभुवन वसि कीध सभावइ; बलीया सुर दानव ख्यात, तु मानवकी कुण बात... ९८ जु करावइ तिम करीजई, नारी राखसी कहीजइ; खांचइ जिणि दिसि तिहां जावइ, नरनाथ बधउ तृष आवइ, ९९
गुरु भाखई थंभई कवण, सायर लोपई कार; आतम मर्यादा तिजई, तउ कुण राखणहार... ८९ अन्नाणह उवओसडउ, निष्फल होई न भंति; पाणी घणुं विरोली(लोवी) यई, कर चुप्पडी न हुंति... ९०