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जून २०१५
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भाद्रव मासि रसाल, जलधर जल जिम वल्लही; जिनवर वाणि विसाल, पान करे श्रवणंजलई.... ॥ कुंडलीया ॥ आसा पूरि कुंयारि सब, तप जप सीलविनाण; विषयसुख दुःख सारिखा, फल किंपाक समाण... फल किपाक समाण, विषई पंचे दुःखदाई सो दुःख मेरु समांण, सुख मधुबिंदु सुराई; विषयमोहि संभ्रमई, नरय निगोद निवासा, तिणि वईरागई लीण, पूरिक्कारणि सब आसा... ६७ कत्तिगि मयण म रच्चि रे, कामविद्ध दसवत्थ, कामिणि दुरगति दीपिका, कवडकुडी अपसत्थ; कवडकुडी अपसत्थ, कलह कज्जलकी कूंपी; अहनिसि असुचि भंडार, निरय कारण आरोपी; मंड्यउ पास अयाण जाण, भुल्लणकी भंतिग; तजि अकत्थ यहु नारि मयण, मत रच्चई कत्तिग..... ॥ अडिल्ल ||
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कामिनि काय अरण्ण कुच ग्गिरि तुल्लियई, मन्मथ भिल्ल सुचोर तिणि व्वनि भुल्लियई;
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मानस पंथिम जा हुई तउ हित सिक्खियई, सुणि हां रे अगहन्नि सुध्यनि धरी मन रक्खियई... ६९
क्रीडति अउरण दोससुं अउर निरक्खही,
बुल्लति अउरण चित्तकि चिंतित रक्खही;
चंचल नेह पतंग सुहाउ विरच्चही,
अरिहां सुपोसि मुणीस अवाउड नारि न रच्चही... ७०
॥ छपया ॥
चंदबिंब सिरि वयण नयण पंकजदल तुल्लई, दाडिम दंत सुपंति, वचन अमृतरस बुल्लई; अधर प्रवाल सुरंग चंग खलकति करकंकण, रूपि रंभ मनहरण, सबे शृंगार सुलक्षण;
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सुठु पीणपयोहर पदमिनी, कटितटि मृगपतिकटि जिसी, धन तेह तरुणि तज्जई ईसी, माघि ध्यान धरमई वसी... कहई जु अमृतवल्लि, कामिजण तुल्लइ समारइ, नारि अछई विसवल्लि, तिल्लमक्खी जिम मारई; सुच्चिय सूर सुजाण जेह, रमणी न निहालई, रक्खई सील संजोगि वसं, अप्पणु उजवालई; जिणि अग्गि योगि कालिम नही, कनक जातिवंतु गुणई, फग्गुणई धजा जिनवर वयणि, रमई रंग संजम तणई... ७२ ॥ झूलणा ॥
अनुसन्धान-६७
अहु चारित्त अति पुण्य मति पाईयई, रयण चिंतामणी जेम साच; कागउड्डावणी कांई वछ तुं गमई, विषई सुई कच्च जिम अछई काचउ नेह कृत्रिम परिसुद्ध जिणभ्रम्म धरि होई परलोकि अविहड सखाई; चेत्रमई चेति तुं चित्त चंचल म करि, ध्यानि भगवंत लई सुदृढ लाई... ७३
॥ जुडिल्ल ॥ जिन सासन काननमई जाईवउ, उपसम्म खंडोखलियई न्हाईवर; व्रत लाल गुलाल अबीर जिसिड, करि माधव मासि वसंत ईसिउ... ७४
॥ घत्ता ॥
जो सुव्वई खंडई अप्पणु भंडई, णंत काल तिणि भवि भमइओ;
ईम जाणि सुभावणु करि आयावणु, जेठि जिट्ठ वयरसि रमईये... ७५
॥ दूहा ॥
कट्ट करत सुख उपजई, सुणि आहरण किसाण;
धर्मध्यान जिणि दिनि हवई, सोई आषाढ प्रमाण... ७६
उपसमरस वईराग मई, बारह मास जगीस;
मधुर वाणि गुरु सीखवई, हितकरि विश्वा वीस.... ७७
॥ गाथा ॥
संसारे हयविहिणा, महिलारूवेण मंडियं पासं; बज्झति जाणमाणा, अयाणमाणा वि बज्झति... ७८ उत्तमकुलसंभूओ, उत्तमगुरुदिक्खिओ तुमं वच्छ!; उत्तमनाणगुणड्डो, कह सहसा ववसिउ (ओ) ओवं.... ७९