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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
अहो वर चउरासीलक्ष हस्ती, चउरासी लक्ष तुरङ्गम, चउरासीलक्ष रथ, छण्णू कोडि गाम, बहुत्तरि लक्ष पत्तन, छत्रीस लक्ष वेलाउल, त्रीस सहस्र राजधानी, बहुतरि सहस्र वेश, एकवीस सहस्र संनिवेश, बहुत्तरि सहस्र नगर, बत्रीस सहस्र अयोध्यासमान नगरी, चउसट्ठि सहस्र अन्त:पुरी, सवालक्ष वाराङ्गना, बत्रीस सहस्र मुकुटबद्ध राय, सोल सहस्र यक्ष, नव निधान, चऊद रत्न, बत्रीस सहस्र कुलाङ्गना, बत्रीस भेदि नाटक, त्रिणि सई साठि सूपकार, सोल सहस्र क्षेत्र, उगण सहस्र उद्यानवन, नवाणू सहस्र द्रोण, चउरासी लक्ष तराल, चउरासी लक्ष सूत्रधार, सात कोडि कौटम्बिक, चऊद सहस अमात्य, सवा कोटि व्यापारिया, बत्रीस कोडि कुल, चऊद सहस मन्त्रीश्वर, सोल सहस्र म्लेच्छ राजा, चउवीस सहस मटम्ब, चऊद सहस संबोधत (सम्बाधन?), चऊद सहस जलपथ, चऊद सहस द्वीप, चउवीस सहस कटक, -तणउं ऐश्वर्य पालइ । समस्त अन्याय अनुयुक्ति टालई । श्रीयुगादिदेवकुलावतंस, देवीसुमङ्गलाकुक्षसरोवरराजहंस, चउरासीपूर्वलक्ष आयुः, पांचसइ धनुषप्रमाणशरीरि या(आ)दर्शभुवनमाहि केवलज्ञान ऊपार्जी अनन्तसौख्य मोक्ष पहतउ, इसिउ श्रीभरतेश्वर प्रथम चक्रवर्ती वर्णवी तउ शोभइ ॥१॥
असङ्ख्यदुःखोपशमैकहेतु-रपारसंसारपयोधिसेतुः । मन्त्राधिराजोऽस्तु जनेष्टकामा-वाप्तेः करः श्रीपरमेष्टिनामा ॥१॥१०
अहो० असंख्यभवे(वो)पाजितपापपनि शनप्रचण्ड संसारसमुद्रपतितभव्यजीवसमुद्धरणसंतुदण्ड(?), भक्तिमुक्तिप्रदायक समस्तविद्यामन्त्रदायक विघ्नव्रातहर समस्तमनोवाञ्छितकर श्रीपञ्चपरमेष्ठिमहामन्त्र नवकार अम्हारइ कुलि ध्याई तउ शोभइ ॥१॥
शत्रञ्जयक्षोणिधरावतंसः समस्तयोगीन्द्रकृतप्रशंसः । विश्वत्रयीमानसराजहंसः श्रीनाभिसूनुस्तनुतां शिवं वः ॥१॥ ११
अहो वर श्रीशत्रुञ्जयतीर्थविभूषण विगतदूषण सकलयोगीन्द्रध्येयपदकमल प्रक्षालितपापमल प्रथमतीर्थङ्कर श्रीआदिश्वर सकलकल्याणकर अम्हारइ कुलि परमदेवता आराध्यमान जयवंता वर्तइं ॥१॥
कल्याणमालाकरणकदक्षः श्रीपार्श्वनाथः कृति( त )विश्वरक्षः । विशुद्धसद्धर्मपथप्रणेता नन्द्यात् स देवो दुरितापनेता ॥१॥ १२
अहो शालक सकलकल्याणमहोत्सवाभ्युदयदायक भवभयभीतजन्तुजातरक्षाविधायक जीवदयामूलविशुद्धधर्ममार्गप्रकाशक सर्वदुरितवातविनाशक देवाधिदेव त्रैलोक्यविहितसेव गुणसनाथ श्रीपार्श्वनाथ अम्हारइ कुलि गोत्रि पूज्य ध्येय नमस्करणीय जयवंता वर्तई ॥१॥
कल्याणकारी महिमावतारी सिद्धान्तचारी दुरितापहारी । संस्मर्यते श्रीपरमेष्टिनामा मन्त्राधिराजो(जः) कुलयस्मदीये ॥१॥१३
अहो वर श्रीसिद्धान्त वर्णवढं सार महिमा प्रभाव करी अपार सर्वमङ्गलकारक सर्वभूतप्रेतप(पि)शाचदुष्टदोषनिवारक एवंविध पंचपरमेष्टिमन्त्र वर्णवी तउ शोभइ ॥१॥
अतुलमङ्गलमण्डलदायकः सकललब्धिनदीजलदायकः । जयति गौतमसर्वगणाधिपः प्रबलविघ्नतमिश्रदिनाधिपः ॥१॥ १४
अहो शालिक अनेकि मंगलीकमालादायक सर्वलब्धिलहरीनदीदायक द्वादशाङ्गीसूत्रधारक छत्रीसगुणआधार सकलदुरितअन्तरायत्रासकर चऊदविद्याकर श्रीमहावीरप्रथमगणधर विश्वत्रयशिवङ्कर सर्वगच्छप्रथमगुरु निखिलपापहर श्रीगौतमस्वामि अष्ट महासिद्धि जेहनई नामि अम्हारई कुलि गोत्रि आराध्यता ध्यायीता वर्तई ॥१॥
श्रीमत्तपागणनभोऽङ्गणभासुकल्पाः सिद्धान्ततर्कसुविचारणचारुजल्पाः । वैराग्यमुख्यगुणलक्षधरा धरायां श्रीसोमसुन्दरवरा गुरवो जयन्ति ॥१॥१५
अहो वर सकल सिद्धान्त तर्क काव्यतणा जाण लोकमाहि प्रमाण वादिदर्पखण्डन सर्वदर्शनमण्डन पंचमहाव्रतपालक षट्जीवसंसा(पा? भा?)लक पूर्वऋषिआचारपालक श्रीगौतमावतार विनिर्जितदुरिमार श्रीतपागच्छनायक भट्टारक प्रभु श्रीसोमसुन्दरसूरि अम्हारइ कुलि गोत्रि आराध्यमान जयवंता वर्तई ॥१॥
गजैस्तुरङ्गैश्च पदातिवृन्दैः षट्त्रिंशता राजकुलैश्च सेव्यः । पाता प्रजानां विजयी विभाति भूपः सुरत्राणमहम्मदाह्वः ॥१॥१६
अहो शालक आसमुद्रान्त पृथिवीतणउ स्वामी मर्यादामयहर शरणागतवज्रपञ्जर परनारीसहोदर रंढरावण सत्यप्रतिज्ञाहरिश्चन्द्र न्यायश्रीराम दानि विक्रमादित्य कलिकालकर्ण धनुर्वेदद्रोणाचार्य प्रकटप्रताप श्रीमहमदपातसाह ।