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जून - २०१५
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अनुसन्धान-६७
चतुर्विशतितीर्थकरदेव, भुक्तिमुक्तिप्रदायक कल्याणमालामहोत्सवमहोदय महानन्दकारक, अम्हारइ कुलि पूजनीय अर्चनीय आराध्य जयवंता वर्त्तई ॥१॥ अहोशालिक० ॥
शत्रञ्जये श्रीजिनमादिदेवं सुरासुरालीकृतपादसेवम् ।। कल्याणमालाकरणकदक्षं भो वणी यामी ]हितकल्पवृक्षम् ॥२॥
अहो, वरश्रीशQजयतीर्थमण्डन सकलाशिवखण्डन चउसठि देवेन्द्रसेवितपद संप्राप्तपरमपद अनन्तसुखकारक युगलाधर्मनिवारण श्रीनाभिनृपनन्दन महीवलयमण्डन पञ्चशतधनुषमान उत्पन्नदिव्यकेवलज्ञान भवभयत्रायक त्रिभुवननायक देवाधिदेव इसिउ श्रीयुगादिदेव, अनइ श्रीगिरनारतीर्थि आबालब्रह्मचारि केवलज्ञानलक्ष्मीसनाथु भगवंतु श्रीनेमिनाथ वर्णवी तउ शोभइ ॥२ अहो० ॥
श्रीमत्तपागणनभोऽङ्गणसूर्यकल्पा विश्वोत्तमैर्गुणगणैः सकलैरनल्पाः । श्रीदेवसुन्दरमुनीश्वरनामधेया वास्त्वया सपदि सूरिवरा मदीयाः ॥३॥
अहो वर अम्हारा कुलि क्रमागत गरु वर्णवि । किसा छई? जि गुरु श्रीतपागच्छगगननभोमणि सुविहितचक्रचूडामणि दुःकरतपोविधायक पंचविधाचारप्रतिपालक छत्रीससूरिगुणसहित मोहरहित संयमश्रीलतावाल मिथ्यात्वकन्दकुद्दाल सर्वोत्तमगुणराजमान युगप्रधानसमान श्रीसोमतिलकपट्टपूर्वाचलतरणि निर्ममशिरोमणि भविककुम(मु)दराज श्रीतपागच्छाधिराज प्रजा(ज्ञा?)पराभूतसुरसूरि भट्टारक श्रीदेवसुन्दरसूरि, तत्पट्टालङ्कार(ङ्कर)ण श्रीज्ञानसागरसूरि प्रमुख सकलपरिवारसहित अम्हारइ कुलि-क्रमागत सुगुरु वर्णवी तउ शोभइ ॥१ अहो० ॥
मन्त्राधिराजं प्रवरप्रभावं संसारवारांनिधिवर्यनावम् । सिद्धान्तसारं परमेष्ठिमन्वं त्वं वर्णयोज्जासितकर्मतन्त्रम् ॥१॥ ४
अहो वर श्रीनउकार महामंत्र वर्णवि । किसिउ छइ ति? जु महामंत्र समस्त मंत्रमाहि मंत्राधिराज नाश(शि) ताशेषदोषसमाज महिमा अपार सकलसिद्धान्तसार संसारोदधिप्रवहण अष्टकर्मविहंडण पांच पद आठ संपद अधिकार अठसठि अक्षरोच्चार श्रीपरमेष्ठिनमस्कार वर्णवी तउ शोभइ ॥१॥ श्रीचन्द्रगच्छगुरुमानसराजहंस ! चारित्रपात्र ! वरसूरिशिरोवतंस !। श्रीसोमसुन्दरगुरुः कलिकालसर्व-विद्यास्पदं विजयते जितवादिदेवम् ॥१॥५
अहो वरश्रीचन्द्रगच्छ-सरोवर-राजहंस सकलसुविहितसूरिशिरोवतंस पवित्र-चारित्रपात्र सर्वलक्षणालंकृतगात्र सर्वविद्यालंकार श्रीगौतमावतार अभङ्गगुरुभाग्याभोग श्रीदेवसुन्दरसूरि, कमलाशृङ्गारहार श्रीमुनिसुन्दरसूरिश्रीजयचन्द्रसूरि-श्रीजिनसुन्दरसूरि प्रमुख बहुपरिवारपरिवृत सर्वगुणनिधान युगप्रधानसमान श्रीसोमसुन्दरसूरि गणधर अम्हारइ कुलि गोत्रि आराध्यमान जयवंता वर्तई ॥१॥
नरेन्द्रदेवेन्द्रकृताहिसेवः संवर्ण्यतां श्रीजिन एव देवः ।। विभूषितो योऽतिशयैरशेषै-विवर्जितोऽष्टादशभिश्च दोषैः ॥१॥६
अहो वर श्रीजिनदेवता वर्णवि । किसिउ छइ ? जु परमेश्वर सुरासुरनरेन्द्रविहितसेव देवाधिदेव चउत्रीसअतिशययुक्ति(क्त) पांत्रीसवचनगुणसंयुक्त अष्टादशदोषअदूषित अष्टमहाप्रातिहार्यविभूषित नवग्रहसेवितपदकमल निधौंतनपापमल परिनष्टजन्मजरामरण विश्वत्रयशरण छात्रयविराहि(जि)त वेदादिसर्वशास्त्रकथित संसारसमुद्रतारक अरिहंतभट्टारक जगत्रयशिरोमणि शोभइ ॥१॥
विमलकेवलकेलिनिकेतनं परमनिर्वृतिशर्मनिबन्धनम् । नमत तीर्थकरं जिननायकं विपुलमङ्गलकामितदायकम् ॥१॥ ७
अहो वर सकलकेवलज्ञानविलोकितलोकालोक अनन्तलक्ष्मीशृङ्गारहार संसारसागरतारणतरण्डवर चउत्रीसदिव्यातिशयसनाथ अढारमहादोषक्षयकारक कल्याणमङ्गलमहोत्सवादायक श्रीचउवीस तीर्थकर अरिहंत देवाधिदेव विहितत्रिभुवनसेव अम्हारइ कुलि गोत्रि आराधीता पूजीता जयवंता वर्तई ॥१॥ कल्याणवल्लिजलवाहसुनामधेया लोकोत्तरोल(ल्ल)सद (भ)ङ्गरु(र)
भागधेयाः । श्रीसोमसुन्दरयतिप्रथिताभिधाना अस्मत्कुले किल जयन्ति युगप्रधानाः ॥१॥८
अहो वर अम्हारइ कुलि अतिशयनिधान सकलकल्याणवल्लिपल्लवनमेघसमानु श्रीसिद्धान्तक्षीरसागरपण्यसावधान वादिमतंगजभञ्जनपञ्चाननोपमान युगप्रधान महिमानिधान तपोगच्छमण्डन सुविहितशिरोमणि अम्हारइ कुलि श्रीसोमसुन्दरसूरि गणधरसमान आराधीता जयवंता वर्तई ॥१॥
वरतुरङ्गमहस्तिघटाविभुः सुभटकोटिनिषेव( वि )तसन्निधिः । ऋषभदेव-सुमङ्गलयोः सुतो विजयते भरतेश्वरभूपतिः ॥१॥ ९