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जून २०१५
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अहो, वर बोलि
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- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
आ एक विलक्षण रचना छे. तेमां छूटा छूटा १६ श्लोको छे एक ज छन्दमां, अने ते श्लोकोमां विषय परत्वे कोई एकसूत्रता नथी. दरेक श्लोक पछी तेनो अर्थ के विस्तरार्थं लखवामां आवेल छे, तेनो प्रारम्भ "अहो वर" एवा शब्दोथी थाय छे तेमज आ रचनानो छेडो "अहो वरबोलि" एवा शब्दोथी आवे छे. एटले आने तेज नाम / शीर्षक आप्युं छे. १५मा सैकामां लखायेला जणाता ३ ह.लि. पत्रोमां आलेखायेल आ रचनाना कर्ता कोण ते जाणी शकाय तेम नथी. परन्तु लगभग दरेक श्लोकना विवरणमां "अम्हारइ कुलि" एवो प्रयोग जोवा मळे छे ते परथी कोई विद्वान श्रावक गृहस्थनी आ रचना होय तेम लागे छे.
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श्लोक क्र. १, २, ११मां आदिनाथनी स्तुति छे, ते पण शत्रुञ्जयमण्डन आदिनाथनी; ३मां श्री देवसुन्दरसूरिगुरुनी ४, १०, १३मां नवकारमन्त्रनी; ५, ८, १५मां सोमसुन्दरसूरिनी; ६, ७ मां सामान्य जिननी; ९ मां भरत चक्रवर्तीनी; १२मां पार्श्वनाथनी; १४मां गौतमस्वामीनी अने १६मां महम्मद पादशाहनी स्तुति थई छे.
प्रथम श्लोकमां ज 'कुलेऽस्मदीये अम्हारइ कुलि' पद छे, जे सर्वत्र समजी लेवानुं छे. श्लोकमां भले आदिनाथनुं ज नाम छे, पण विवरणमां आदिनाथशान्तिनाथ नेमिनाथ-पार्श्वनाथ वर्धमान ए पांचे जिननां नामो मङ्गलरूपे गुंथायां छे. तेमां शत्रुञ्जय, रैवतक, झीरापल्लीना उल्लेख ध्यानार्ह छे. ए ज रीते बीजा श्लोकना अर्थमां पण शत्रुञ्जयमण्डन युगादिदेव अने गिरिनारतीर्थे नेमिनाथनो उल्लेख थयो छे. श्लोक ३मां देवसुन्दरसूरि माटे "अम्हारा कुलि क्रमागत गुरु" लेखे ओळखाववामां आव्या छे. अर्थमा तेमने माटे लखायेलां विशेषणो गौरवास्पद छे, तो साधे ज्ञानसागरसूरिनुं पण नाम लख्युं छे.
पांचमो श्लोक सोमसुन्दरसूरिनी स्तुतिरूप होवा छतां तेना अर्थमां देवसुन्दरसूरिनो उल्लेख तेमज पोताना त्रण आचार्यशिष्यो साथै सोमसुन्दरसूरिनो उल्लेख करवामां आव्यो छे. विशेषणोमां भक्ति छलकाय छे. ८मा तथा १५ मा श्लोकोमां पण विशेषणो वडे गुरुवर्णन भक्तिप्रद छे.
९मा श्लोकमा भरतेश्वरनी स्तुति करी छे तेना अर्थमां शास्त्रोमा वर्णवेली चक्रवर्तीनी ऋद्धि आंकडा समेत वर्णन बहु रसप्रद जणाय छे.
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अनुसन्धान-६७
१६मो श्लोक ऐतिहासिक छे. तेमां गुजरातना तत्कालीन सुरत्राण-सुलतान अहमदशाह (अमदावादनो स्थापक) ना पुत्र सुरत्राण महम्मदशाह (सं. १४८९१५०७ ) नुं गुणवर्णन थयुं छे. तेनुं विवरण खूब विस्तारथी लखायुं छे.
शाहना वर्णन परथी लागे छे के ते खरेखर गुणियल होवो जोईए. अतिशयोक्ति तो थती ज होय, छतां ते गाळी नाख्या पछीये शाहना केटलाक महत्त्वना गुणो विषे आमांथी जाणकारी तो मळे ज. हाथीना, अश्वना प्रकार तथा पायदळमां समाविष्ट विविध जाति-ज्ञातिना मनुष्य सैनिकोना प्रकारनुं वर्णन पण नोंधपात्र छे. ३६ राजकुलना विवेचनमां पौराणिक ऐतिहासिक अनेक वंशोनां नामो तेमज अनेक (८४) ज्ञातिनां नामो खूब रसप्रद जाणकारी आपी जाय छे.
शाहना शासननां मुख्य केन्द्रभूत नगरो अणहिलवाड पाटण, अहम्मदावाद तथा खंभायत ए णना उल्लेखथी ते नगरोनी महत्ता पण समजाय छे. पादशाह बधा धर्मो-दर्शनो प्रति समदृष्टि धरावतो हतो ते मुद्दामां छए दर्शनोनां नाम तथा तेमां कया कया धर्म-पंथोनो समावेश थाय छे तेनुं विस्तृत बयान आपणने नवी जाणकारी तो आपे ज छे, उपरांत आपणी जिज्ञासावृत्तिने उत्तेजित पण करे छे.
अनुमान थई शके के सोमसुन्दरगुरुना तेमज सुलतान महम्मदशाहना सत्ताकाळ दरम्यान ज आ रचना आलेखाई होवी जोईए,
आ प्रतिनी जेरोक्स विद्वद्वर मुनि मित्र श्रीधुरन्धरविजयजी तरफथी प्राप्त थयेल छे. ते माटे तेमना प्रति कृतज्ञता व्यक्त करूं छं.
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शत्रुञ्जयक्षोणिधरावतंसः श्रीआदिनाथः सुरराजसेव्यः । लोकत्रयीवाञ्छितकल्पवृक्षः कुलेऽस्मदीये शिवतातिरस्तु ॥१॥ आहे. श्रीजयमहातीर्थकुटामा शिवरायान सकलसुरासुरेश्वरसंसेव्यमान भव्यजनमनोरथपूरणकल्पद्रुमसमान विमलकेवलज्ञानविलोकितसकललोकालोकसंबंधिसमस्तवस्तुस्वभाव श्रीआदिनाथ, विश्वत्रयशान्तिकारक संसारसमुद्रतारक श्रीशान्तिनाथ, रैवतकाचलमौलिशेखरसमान सर्वातिशयनिधान यादवकुलतिलक श्रीनेमिनाथ, सर्वमनोवांछितदायक श्री झीरापल्लीप्रमुखतीर्थनायक श्रीपार्श्वनाथ, दिव्यकेवलज्ञानभास्कर श्रीवर्द्धमानप्रमुख