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________________ फेब्रुआरी - 2015 मेघकुमारना बारमासा - सं. अनिला दलाल 'बारमासा'नो काव्यप्रकार मध्यकालीन साहित्यमां खूब खेडायो छे. अनुं मुख्य लक्षण 'विरह-काव्य' छे. ऋतु प्रमाणे दरेक मासमां नायक के नायिकाना विरह साथे करुणरसनुं निरूपण होय छे. जैन साहित्यमां नेमि-राजुल अने स्थूलिभद्रकोशाना कथानकना आलम्बनथी बारमासानी घणी रचनाओ थई छे. अहीं काव्यने अन्ते उपदेशवचनो तेमज संयम तरफनी गति निर्देशाय छे. 'मेघकुमार बारमासा'मां मेघकुमारना मनमा श्रीवीरजिनना उपदेशथी वैराग्य उद्भव्यो छे त्यारथी आरम्भ थाय छे. व्हाला पुत्रने माता विनंती करे छे के बार मास सुधी संसार-जीवनना अनुभवो लई पछी संयम-पथे विहरवानुं नक्की करने, 'सुसनेहा नंदन!'. माता प्रत्येक मास प्रमाणेना सांसारिक जीवननी गतिविधि, मोहक वर्णन करे छे; पुत्र प्रत्युत्तरमां ते वर्णननी तुलनामां बराबर सामेना अभिगमने, संयमजीवनननी आन्तरिक उपलब्धिओ अने समृद्ध अर्थपूर्णताने उद्घाटित करतो जाय छे; संयमजीवननी गरिमाने सुन्दर शैलीमां आलेखे छे. अन्तमां आपणे जोई छीओ के पोताने लागेला निर्वेदना गाढ रंगमांथी मेघकुमार जराये चलित थता नथी, अने मातानी अनुमति लई संयममार्गे प्रयाण करे छे. 'बारमासा' काव्यस्वरूपमा परम्परा प्रमाणे आवतां प्रकृतिवर्णन, नगरवर्णन के नायिकाना सौन्दर्यवर्णन आ कृतिमां थोडा प्रमाणमां जोवा मळे छे; कविनो झोक वधारे तो बोधात्मकता उपसाववानो छे. . कृतिना कर्ता देवजीऋषिना शिष्य धर्मसिंह छे, तेमना नामे घणी मुद्रितअमुद्रित रचनाओ मळे छे. प्रस्तुत रचना अद्यावधि अमुद्रित होवा जणायाथी अत्रे संम्पादित करी छे. . सम्पादन माटे आधारभूत प्रत लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिरना हस्तप्रतसंग्रहनी छे. क्र. 8540. त्रण पानानी आ प्रतमां आ कृति पूरी थया बाद जीव-पुद्गल-काळना अल्पबहुत्वने लगती चोपाई अने तेनो अर्थ अपाया छे. प्रतना लेखक वेरागी हरिदास जणाय छे. प्रत सम्पादनार्थे आपवा बदल कार्यवाहकोनो आभार.
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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