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________________ अनुसन्धान-६६ मंत्राधिप सूरिं जाणीउं, तप तणुं परिमाण, चलतकुंडल-भूषणधरो, तेजइं करी भाण. 6 प्रकट रूप करी आपणुं, आवी जख्यराज, निश्चल मन निरखी कहइ, प्रणमी गुरुपाय. 7 .. हुं तुठउ तपगछधणी, करुं सानिधि आज, जे तुम मनि मनोरथ अछइ, करुं ते सुभ काज. 8 विद्याविजय वासव समु, मुनिमंडलीमांहिं, .. दीठउ मई गुणि आगलु, दीजइ पदवी तांहिं. 9 दिन दिन उदय होसइ घणु, जिम चढतु दिणंद, वचन कही सुर सांचY, धरइ हरख मुर्णिद. 10 नेऊ दिवस तप-जप करी, पारी ततख्यण ध्यान, महोल पधारइ जेसंगजी, करइ सुर नर मान. 11 / / देस देसई वधामणी, प्रसरी पुर गामि, ... रंगई संघ आवइ घणा, दिस दिसथी तांम. 12 पूजइ प्रणमइ भावसिउं, करइ उछव सार, दिन दिन गुरुमहिमा घj, हुइ जय-जयकार. 13 // प्रथम ढाल // राग - आसाउरी सीधुओ // दूहा : जेसंगजी मुख जोयता, हिअडूं करइ हींसोर, नलिनी जिम रवि दीठडइ, जिम वली चंद चकोर. 1 सकलसूरिसिरोमणी, समतावेलीकंद, जेसंगजी गुरु वंदिइ, नित घरि हुइ आणंद. 2 . जेसंगजी गुणमालती, मुझ मनमधुकर लीन, हरखई गुंजारव करइ, दिन दिन होवत पीन. 3 चाल - आसाउरीनी // श्रीमती तत्र गुरु गुणनि(नी)लु, जाणि सोहम सम अवतारोजी, तारोजी, भविअणनइं भवसायरुजी, .
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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