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________________ फेब्रुआरी - २०१५ तिज्जि तुह नाणविन्नाणगुणडंबरा, जलणजालासु निवडंतु जिय! निब्भरा । पयइवामेसु कामेसु जं रज्झसे, जेहिं पुण पुणवि नंधानले (?) पच्चि (च्च) से ॥१९॥ असुरसुररमणिभोगेहिं जु न तुट्ठओ, मणुयविसएहिं किं होसि जिय! पुट्ठओ ? 1 इत्थ इत्थंमि जिणभणियसिद्धंतओ, सुणसु इंगालदाहस्स दिट्टंतओ ॥२०॥ जिम तुहं मणुरिद्धिर्हि विसयसम (मि) द्धिहिंतिम जइ धम्मम्मि होइ जीय । ता सिवु उक्कंठिओ करयलि सिं (सं) ठिओ सुरनरसुह अणुसंगि दुअ ॥२१॥ सो धन्नओ धन्नओ सालिभद्दु कयवन्नउ अन्नवि थूलभद्दु । ते सरह सरह सगराइराय, खयरिंदनरिंदिहिं नमियाय ॥२२॥ अप्पेणवि कारणि झत्ति जेहिं, वेरग्गाऊरियमाणसेहिं । छंडेविणु घरपुररमणिसत्थु, वउ गिन्हवि साहियपरमअत्थु ॥२३॥ तं पुण पियपरिभवंताडिओ वि, दालिद्दरोगसयपीडिओ वि । १७ नो वग्गिसि घट्ठिलकुकु (कु) रुव्व, अच्छसि गजसूयरव्व ? ॥२४॥ किं लोहइ घडिउं हिउं तुज्झ जं मुणियइं न तुह वि तणउं (? चित्त तणउं ? ) गुज्ज । जं पत्तइंपि इय मरणाइं दुक्खि, नो फुट्टइ नवि लक्खेइ मुक्खि ॥ २५॥ पंचासवि अजिय पइं जि दुक्ख, अणुहवसि ताइं तं चेव तिक्ख । जिणि जीवकरंबउ खद्ध एव स हिंसइ सविलंबउ सययमेव ॥ २६ ॥ जं अन्नजम्मि कलुणं रुयंत, पई मारिउ निग्घिण जंतु हंत । तं रागरोस जर वि हर देहि ( एतावन्मात्रमेव प्राप्तमिदम् ।)
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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