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________________ __ अनुसन्धान-६६ तुहं असरण जिअ सरणु देउ तुहं ताणु अताणह तुहं रिपुघायगु तुहं दुहंतु तुहं नाह अणाहह । जइ मई दीणु तुमेगसरणु विलवंतऽवहीरसि ता करुणाकर पास दुहिअपालग कं पालसि ॥१६॥ सीसु न नामिउ कस्स कस्स को को व न [प]त्थिउ कह कह लविउ न दीणु वयणु को को व न अच्चिउ । को को न य पडिवन्नु सरणु मइ मोहदुहत्तिण । किंपि न पाविउ तहवि ताणु मइं पइं परिमुत्तिण ॥१७॥ ता[य] तुहं गुरु तुहं मइ तुमेव मह गइ तुहं बंधवु तुहं चकुर(?चक्खु?) तुहं माय ताउ तुहं देउ दयन्नवु । अनु अपासिउ सरणजुग्गु जगि दुहभरपीडिउ . तुह चेव हु सरणं पवन्नु मइं पालिहि सामिउ ||१८|| मणु मह चवलसहावु देउ तुह झाणि नि(न) लीणं वयणु विसंतुलु न तव कित्तिकरणिक्कधुरीणं । बहुल पमाइण तणु वि नेव तव पूयणि सिअरसु(?) जइ केवलकरुणारसेण तारसि तं तारसु ॥१९॥ जइवि न जुग्गउ हउं जिणिंद पुन्निहिं परिचत्तउ बहु अविणउ गर – अवरि चत्तु निग्गुण दहतत्तउ(?) । तहवि दयागर सरण पत्तु दीणउ पालिहि मई जं जुग्गत्तणमवि भवेइ पई चेव पसन्नइ ॥२०॥ तुह सम जुग्गाज(जु)ग्ग अहव दुहितहेन जोअर्हि (?) जे केवलकरुणारसेण तिहुअण विधिहु पालिहिं । जो जुन्हामय रयणि कन्नु वरिसंतु निवारिइ . भुवणह तावु स उच्चनीउ किमु ठाणु वियारइ ॥२१॥ पइ संतेवि तिलोयताय सरणीकयनाहो जं पिक्खेमि सुतिक्खदुक्खलक्खे हमसाहो । तिहअणरक्खणदिक्खिअस्स तव जुत्तमिणं तो जइ चंदुज्जलकित्तिसारु तुह नाहु हवेंतो ॥२२॥
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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