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________________ फेब्रुआरी - २०१५ ताव करंत कणि?कट्ठदप्पिट्ठ सुदुलहु रिउगण नट्ठा रिट्ठ तुट्ठ तुहं जा न जगप्पहु । घुटुं हिट्ठमणेण जेण नियसिर तुह चलणे सो लक्खिज्जइ सयलसुक्खलक्खिउ तह भुवणे ॥९॥ दूरि करिजलनलवेरिवाहिसिवसिवसहर(?)तक्कर दुज्जणदुट्ठनरिंदविंदरण तेसि न भयकर । दुक्खविणिग्गहपरममंतु जीराउलिमंडणु जे समरंतिह तुहभिहाणु दुरिउक्करखंडणु ॥१०॥ पिक्खवि दुक्ख सुतिक्ख नाह संसार असारउ तुह पणमवि चरणकमल जाणामि असारउ । ता करुणाकर हणवि दुक्ख भवसयभमसंभवु आसिवदाणं कुणसु सुक्ख जंतुहं दुहिं बंधवु ॥११॥ लग्गा सग्गपवग्गमगि(ग्गि?) दुग्गइदलणे पालिहि पालिहि इअ वयंतह तुह पयकमले । ते सव्वे वि जिणेस पास पई सुहसय पामिअ ता मई केण पयग्गलग्ग अवहीरसि सामिअ ॥१२॥ सामिअ जइविं न जुग्गओ मि तहवि हु विलवंतह मह अवी(वधी?)रणु नेव जुत्तु तुह पयणुसरंतह । जंतुहं बद्धपइन्नओ सि सरणागयरक्खणु अह गुरुआण पइन्नभंगसम नऽन्नोहावणु ॥१३॥ पत्ततिलोयपहुत्त सत्तु तुहं तिहुअणरक्खणि पास पसीयसु देसु सुक्ख मह वंछिअभक्खणि । जुज्जइ तुह जमनन्नताणु नियभिच्च उव(वि)क्खिउ एहोहावणु सामिआण जं सेवगु दुक्खिउ ॥१४॥ हउं सरणुज्झिउ हउं अनाणु हेउं वेरिविणिज्जिउ हउं भवदुहभरतत्तगत्तु हडं नाहिण वज्जिउ । अह किं बहु वइएण पास पभणेमि उ तत्तं मज्झ समं भुवणम्मि नत्थि करुणारसूघत्तं ॥१५॥
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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