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________________ .. अनुसन्धान-६६ कदलीकोमल-चरणकमल-विल(लु)ठंतनरामर विदलिअकलिमलबल तमालदलसामलतणुकर । तिहुयणनयणाणंदकंदकंदलणपउहर . जय जय जिणवर पासनाह मणवंछिअसुहकर ॥२॥ निज्जियदुज्जयपंचबाणमद माणअगंजिअ तज्जिअगज्जिरकोहजोह मइमोहविवज्जिअ । जियतिहुअणसुजणजाय जय भवभयभंजण जीरापल्लीपुरिपइट्ठ सिरिपास निरंजण ॥३॥ . हरिहरबंभपुरंदरिंदुदिणयरखंदाइअ . जे तुह गुणअवियाणएहि देवत्तिण मन्निअ । तेवि हु वि(ति?) हुअण-नयणचंद भवदुहपरितंता ताव झायंति [तु]ह चरणजुअल सिवसुह कामंता ॥४॥ सेवंतह धरणराउ मणवंछिअ साहइ जस सा[स]णभत्ती(त्ति)रसेण दुरियारि निरोहइ । सो सरणागयकप्परक्खु(रुक्ख) मह सरण पवन्नह मद्दउ रिउबल दय करेवि पयकमल विलग्गह ॥५॥ पई तुट्ठइ किवि सिद्धविज्ज [किवि] निरज ज सिद्धा किवि किवि लद्धविसुद्धबुद्धि किवि रिद्धसमिद्धा । किवि [वि]लसंति लसंतचित्त रिउवग्ग विघाइण पास पसीयसु ता ममावि मणवंछिअदाणिण ॥६॥ डाइणि साइणि खित्तवाल करवाल कराला भूआ पेय पिसाय जक्ख रक्खस वेयाला । विज्जासिद्धि सुमंततंतदेवयगहतारा सव्वे तेसि पसन्न पास पइं जे कयसारा ॥७॥ तुह नामिण जि दुट्ठकुट्ठखयरोगभगंदर सूलजलोयरकाससासअइसारविव(वि)हजर । इय नासइ सयलाहिवाहिदेवयकयपमुहा तह उवसग्ग समग्ग हुंति भविअहं लहु विमुहा ॥८॥
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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