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________________ फेब्रुआरी - २०१५ विचि(च)किल-पाडल-बउल-जाइ-नवमालइ-दमणगकेतकिदल-मचकुंद-कुंद-सयवत्तग-चंपग । बहुविह गन्हि कुसुममाल गुरुभत्तिवसागय पूअह भविअण पास जेण विलसह सिवसंगय ॥७॥ चंदकलामलसयलबिंब जग तिहिं वरमंडवि भवभयभंजण भत्तिसारमह पणमवि पणमवि । नयणाणंदणि संतिभवणि जाइवि जगसामिअ वंदिउ पूइअ मुक्खसुक्ख तुम्हि मग्गह धम्मि! ॥८॥ आदि[जि]णेसर पय नमामि जाइउ तसु भवणे जो पढमो जणि सत्थवाहु सिवपुरपहगमणे । जसु आरोहणि जंति झत्ति भवदुहभरमुत्ता भविअण निव्वुइनयरि ठाणि केवलिसिरिजुत्ता ॥९॥ पासजिणिदह चलणजुअल पणमिसु अह भाविण झत्ति पसिज्झहिं सयल चित्तचितिअ जसु नामिण । तिहुअण-वंछिअ-कप्परुक्ख भुयणत्तयसामियु पणमिउ मई हिव वद्धमाण नरभवफल पामिउ ॥१०॥ बर्हि अच्छइ अंबाविदेवि जिणभत्तिपवित्ता जा पालइ जिणभत्तलोअ नियमहिमिण चित्ता । . इण आरासणतित्थ थुत्तु समरहिं पढिऊणं जे ते परमप्पउ लहंति भवुदहि तरिऊणं ॥११॥ - इति श्रीआरासणमहातीर्थस्तवनम् ॥ __ (४) जीरापल्ली-पार्श्वनाथस्तवन ॥ जय सिरिपासजिणिंदचंद सिवपयसुहसंगय जय धरणिंदसुरिंदचंदनरविंदनमिअपय । जय कल्लाणविलासगेह तिहुअणजणतारग जय जीराउलिपुरि पइट्ठ भुवणिट्ठपसाहग ॥१॥
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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