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अनुसन्धान-६६
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अरासणतीर्थस्तवन ॥ विलसिर किन्नर महुरगीय जगगुरु गुण मणहर गीइ पडिज्झणि रणझणिर कंदरि वरडुंगर । हिमगिरि सेहर धवलतुंग जिणमंदर सुंदर सिरि आरासण नमह तित्थ वर-भत्ति निरंतर ॥१॥ निम्मलकंचण-रयण-र(रु)प्प-सीसगपमुहाणं . जं जगि सोहइ सयलसारखाणीण निहाणं । तहिं हरिसिण वियसंतनयण भवियण संपत्ता पणमह नेमिजिणिंदपाय जइ सिवसुहरत्ता ॥२॥ अह पुण पणमिउ रिसहनाह तिहुअण आणंदणु सिरिसित्तुंजयतित्थराउ मरुदेविहु नंदणु । . जाइवि लोडणपासभवणि पणमिज्जइ पासो जसु पयवंदणि होइ सिद्धिसुहलच्छिविलासो ॥३॥ कटरे कटरे नयण चंग नीलुप्पलसुविपुल अरिरे अरिरे भाल रयणीव[इ]मंजुल । : अरि अरि नलिणीनालसरल कोमल भुअजामल बपुरे बपुरे कयलिगब्भ सुकुमाल सुपत्तल ॥४॥ जिणवररूव सुवन्नवन्न लावन्नमहन्नवु जं नवि वन्निउ संतु (सत्तु) कोवि सुरवरनरदाणवु । तंपि रे कविणु हरिसपूररोमंचिअकाया नव नव रंगि नमह थुणह पूअह पहुपाया ॥५॥ अज्ज हुअं सुविहाणु अज्ज अमिइणं घणु वुट्ठउ पुन्निहिं जग्गिउ अज्ज अज्ज भवदहभर नट्ठउ । अज्ज मणोरह फलिअ अज्ज कुलदेवय तुट्ठा तिहुयण सुरतरु पासपाय नियनयनिहिं दिट्ठा ॥६॥