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________________ फेब्रुआरी - २०१५ हीयडलउं मझ हरखिहिं गहगहिउं प्रभु तणउं जहिं नामु सदा रहिउं । परघरे करकर्म्म न ते करई, जि पई पेखिवि पुणु समुद्धरई ||१०|| भवह माहि भमी भमि हउं रुलिउ, सुकृतसंचइ तूउं प्रभु मुं मिलिउ । तिम किमइ हिव पूरि नमुं रुली, जिम न देव भमउं भवि हउं वली ॥११॥ हिव युगादिजिनेश्वर भेटिवउ, भव पराभवु लीलई खेटिवंउ । तसु निरूप सुरूपु निरूपियई, दुखि न दालिदि देव! विगूपीयई ॥१२॥ हिव सु लोडण पासु नमस्करउं, भवतणा सवि पातक संहरउं । जिणि तुहागलि लाडिहिं लाडियइ, तिणि कुकर्म महातरु मोडीयइ ||१३|| जगतमंडपमाहि फिरीफिरी, सकल बिंब सुभावि नमस्करी । भवतणउं फलु आजु जि पामिउं, चपलु चित्तु अनइ पुण दामि ||१४|| नवल ए जिहिं बिंब कराविआ, सुकृत तेहिं भंडार भराविआ । वर कपूर तणी परि निर्मला, किमइ नैव हुई मनि मेल्हणां ॥ १५ ॥ भवण शांति तणई हिव जाइसिउं, नमवि पूजिवि सामिउ मागिसिउं । जिम सु राखिउ देव पारेवडउ, तिम मई राखि न सेवक आपणउ ॥ १६॥ हिव सु आदिलु देवु निहालिसिउं, भवणि जाइवि पाप पखालिसिउं । जिण सु सेत्रुजु तीर्थ विभूसिई, अनइ कर्मरिपूपरि रूसिसिउं ॥१७॥ हिव नमु प्रभु पार्श्व मनि स्मरी, जिम भवार्णवु जाउं ऊतरी । जसु प्रतापि विघ्न सर्वे टलइं, जिम ति जंबू' मेहजलई गलई ॥१८॥ हिव सु वीरु विशेषिर्हि वांदियई, जिम घणउं जग भीतरि नींदियई । अबुझ जेण घणा प्रतिबूझिव्या, समैल जीवडला सवि झिव्या ॥१९॥ इह अंबावि अछ्इ वरदेवता, सकल विघ्न हरई जिनु सेवतां । . विषम कार्यि विशेषिहिं जो स्मरइ, तसु तणां संकट सवि संहरई ॥२०॥ इति श्री अरासणतीर्थस्तव ॥ इति अरासणतीर्थवरस्तवं भणति यः शुभभावयुतो नवम् । भ्रमति नैव जनः स घनं भवं, कतिपयैस्तु भवैर्लभते शिवम् ॥२१॥ इति श्रीजयानन्दसूरिरचितं आरासणस्तवनम् ॥ ८. अटकावे । ९. जांबूफल । १०. 'न आवे' के 'न आदरे' के 'न वधे' (?) । ११. मलिन । १२. शोध्या - शुद्ध कर्या ।
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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