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________________ अनुसन्धान-६६ विषयशत्रु तणउ मद गयउ गली, जिसि वई आवई पासि न मूं वली(?) । मयणमल्लतणउ मझु भउ किसउ, जउ जिनेश्वरनइ मनि हउं वसिउ ॥१०॥ देवी सिवानंदन नेमिनाथ, राजीमतीवल्लभ विश्वनाथ । मागउं नही गंरासु न सिद्धिवासु, मूं देव! देजे नीयपायवासु ॥११॥ ___ इति श्रीनेमिनाथवीनती समाप्ता ॥ (२) अरासणतीर्थस्तवन ॥ रजत कांचन सीसक आगरा, जहिं मनोरम दीसई डूंगरा। नवनवी जहिं खाणि वखाणियई, जिहिं तणा जगि बिंब प्रमाणियइं ॥१॥ जहिं मनोहर दीसइं देहरां, सुकृतना छई जाणो सेहरां । . . . सु जि आरासणु तीथु वखाणिसिउं, अनइ जीभडली-फल माणिसिउं ॥२॥ जिणि सुजादववंसु सुमंडिउ, सबल काम महाभडु खंडिउ । परिहरी जिणि राजमतीसती, सिद्धि वीसी जिह भूई' मनि शास्वती ॥३॥ सु ज नेमीश्वरु सहजि सुहामणउ, सुभग सुंदर विश्वविमोहणउ । विमल नीलमणि च्छवि सामलु, कुण तणइ न वसइ मनि निर्मलउ ॥४॥ सु जि जिनेश्वरु नयनि निरीखियइ, अवसितउ शुभकम्मु परीखियइं । सु जि जिनोत्तमु इम नि(ने?)मिउं नमिउं, भवतणउ भउ तेहिं सहू गमिउ ॥५॥ न्हवण निर्मल नीरिहिं जे करइं, भवतणां सवि कश्मल ते हरई । जिहिं विलेपनु अंगि विलेपीयई, दुरित-दाहु सहू तिहिं लोपियइं ॥६॥ विकच चंपक केतक मालती, कमलमाल विशाल बहक्कती । .. जि तई लेविणु [पू]जइं सामीआ, सिववधू वरमाल तिं पामिया ॥७॥ नवि नवि स्तवनि जे जिननइं तवई, विकट संकट दूरि ते पाठवई । जि पुण गीतिविनोद तिहां रमई, ति भवरानि जिनेस्वर नो भमई ॥८॥ नयन ते जिम नाथ प्रसंसियई, ज(जं) पई पेखिवि पापि नसियई । वचन ते अमृतपूर घणउ धरऊ(इं), जि गुण-संस्तव सामितणउ करई ॥९॥ ३. गरास, राज्यादि । ४. वेश्या । ५. भोंय (?) । ६. बचेलू । ७. भवरूप रान-जंगलमां ।
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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