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________________ १५८ - अनुसन्धान-६६ थतुं हतुं. आ शब्दने मगधना लोको पोतानी लाक्षणिक बोलीमां 'पेस्कदि (पेक्खइ, प्रेक्षते)', 'आचस्कदि (-आचक्खइ, आचक्षते)' नी जेम 'मस्कलि' तरीके बोलता हता.६ पछीना काळमां जेम अनेक प्राकृत शब्दो नजीवा वर्णपरिवर्तन साथे संस्कृतभाषामा प्रवेश्या तेम 'मस्कलि' पण 'मस्करिन्' तरीके संस्कृतमां स्थान पाम्यो हशे. आ ज कारण छे के शीलाङ्काचार्य नियतिवादी तरीके 'मस्करिन्'ने जणावे छे, जे अमने अभिप्रेत 'मङ्खलि'- ज. संस्कृत रूपान्तर छे. बनी शके के व्युत्पत्तिकारोने 'मंखलि' के 'मक्खलि' शब्दनी 'मस्करी' सुधीनी आ यात्रा ध्यानबहार रही होय अने तेथी तेओओ आ शब्दने जुदी रीते व्युत्पादित कर्यो होय. अथवा तो घणी वखत रूढ शब्दोने फक्त प्रकृति-प्रत्यय विभाग दर्शाववा पूरता ज व्युत्पादित करवामां आवता होय छे, तेम अत्रे पण बन्युं होय. ___ आ बाबते वधारे प्रकाश पाडवा तज्ज्ञने नम्र विनन्ति. टिप्पण: १. पदार्थानामवश्यन्तया यद्यथाभवने प्रयोजककी नियतिः... इयं च मस्करिपरिव्राण्मता नुसारिणी प्रायः - १.१.३ आचाराङ्गवृत्तिः २. जुओ अभिधानराजेन्द्रकोशगत 'मङ्ख' शब्द. ३. भगवतीजी ५४१ ४... आम अटले समजी शकाय के आजीवक सम्प्रदाय गोशालक पूर्वे पण विद्यमान हतो. गोशालक तेजोलेश्यालब्धिधारी अने निमित्तशास्त्रवेदी होवाथी आजीवक सम्प्रदायना मुखी बन्या हता. तेमणे नियतिवाद जेवो महत्त्वनो सिद्धान्त पण आजीवकोने आप्यो हतो. आचार-विचारणामां पण तेमणे केटलाक महत्त्वना फेरफार कर्या हता. पण तमाम आजीवकोओ ते बधी वातो यथावत् स्वीकारी होय ओ सांयोगिक प्रमाणोथी नथी जणातुं. सम्भवित छे के गोशालकनी शिष्यसन्तति कदाच आ ज कारणे 'मङ्खलि' तरीके ओळखाती होय अने ओ रीते अन्य आजीवकोथी जुदी पडती होय. जुओ "श्रमण भगवान् महावीर" गत 'आजीवकमतदिग्दर्शन'. ५. आ उच्चारण माटे बौद्ध शास्त्रोमां मळती काल्पनिक रसप्रद कथा माटे जुओ His tory & Doctrines of the Ajivikas - Page 37.
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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