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________________ फेबुआरी - २०१५ १५९ ६. जुओ सिद्धहेम-अष्टमाध्याय पाद ४-सूत्र २८९ गत उदाहरण 'मस्कली'. ७. "प्राकृत भाषामां आ शब्द मंखलि तरीके, पालिमां मक्खलि तरीके अने संस्कृतमां मस्करी तरीके प्रयोजायो छे." - डो. नीलांजना : "बौद्धोंने इस विशेषण के एक देश 'मंखलि' का गोशालक के लिये ही प्रयोग कर डाला और पिछले लेखकों ने उसका संस्कृत रूप 'मस्करिन्' बनाकर उसे 'परिव्राजक शब्द का पर्याय बना लिया" - पं. श्रीकल्याणविजयजी "The name (Makkhali Gosala) appears thus in the Pali Canon. In Buddhist Sanskrit works it usually becomes Muskarin Gosala”. - A.L. Basham २. 'दिवाऽसि कसेकमई.' गाथा विशे श्रीआचाराङ्गसूत्रना 'लोकविजय' अध्ययनना चोथा उद्देशाना सूत्र ८५ नी शीलाङ्काचार्यकृत टीकामां नीचेनी गाथा उद्धृत थई छ : ___ "दिट्ठाऽसि कसेरुमई, अणुभूयाऽसि कसेरुमई । पीयं चिय ते पाणिययं, वरि तुह णाम न सणं ॥" . आ गाथानी छाया श्रीसागरजी महाराजे आ प्रमाणे करी छ : "दृष्टाऽसि उदारमते!, अनुभूताऽसि उदारमते! । पीतमेव ते पानीयं, वरं तव नाम न दर्शनम् ॥" श्रुतस्थविर मुनि श्रीजम्बूविजयजी महाराजे ई.स. १९७८मां संशोधित • करावीने छपावेली आचाराङ्गटीकामां (प्र. मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ही) पण आ छाया यथावत् राखवामां आवी छे. तेमां कोई सुधारो सूचवायो नथी. .. वास्तवमां जोई तो आ गाथा जे सन्दर्भे प्रयोजाई छे, ते सन्दर्भ ध्यानबहार जवाने लीधे आवी छाया थई होय ते सम्भवित छे. अने तेथी ज 'कसेरुमई' ओ नदीनुं नाम छे अम न समजावाने लीधे 'उदारमति' अq तेनुं अर्थघटन थयुं छे. जैन परम्परानो इतिहास - भाग १, पृष्ठ १९४ पर आचार्य वज्रभूतिना प्रकरणमां आ गाथानो व्यवहार-भाष्यवृत्तिगत साचो सन्दर्भ जडे छे. व्यवहारसूत्रभाष्य-गाथा ५८, ५९नी वृत्तिमां जणाव्या मुजब -
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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