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________________ फेब्रुआरी- २०१५ मते कर्मनिषेधक परिव्राजकना अर्थमां 'माङ् + कृ' ना आधारे 'मस्करिन्' शब्द निपातित थाय छे. १५७ 'मस्करी' शब्द अंगेनी आ मान्यता पाछळथी अटली स्थिर बनी के अमरकोश, हलायुधकोश, अभिधानचिन्तामणि व. कोशोमां नोंधायेला परिव्राजक - अर्थपरक 'मस्करी' शब्दनी व्युत्पत्ति कोशोना टीकाकारो 'मस्करो वेणुदण्डः सोऽस्याऽस्तीति मस्करी' अथवा 'मा कर्तुं कर्म निषेद्धुं शीलमस्य' अवा मतलबनी ज आपे छे. अलबत्त, जे परिव्राजको 'मस्करी' तरीके ओळखाता हता, ते परिव्राजको दण्डधारी अने कर्मनिषेधक होवाथी आ व्युत्पत्ति खोटी तो नथी ज; पण 'मस्करी' शब्द खरेखर आ परिव्राजको माटे वपरातो थयो तेनुं मूळ कारण दण्डधारण के कर्मनिषेध नथी जणातुं. 'कर्मनिषेध' खरेखर तो नियतिवाद सूचवे छे. " तमे कर्म करशो नहि, शान्ति ज तमारा माटे श्रेयस्कर छे." आ कथन पुरुषार्थनी निरर्थकता सूचवे छे. आ हिसाबे जोईओ तो मस्करीओ खरेखर तो नियतिवादी छे. आचाराङ्गसूत्रना टीकाकार शीलाङ्काचार्ये मस्करीओने नियतिवादी ज गणाव्या छे.' हवे अ तो प्रसिद्ध ज छे के गोशालक मङ्खलिपुत्त नियतिवादना प्रवर्तक हता. तेथी गोशालकनो गोत्रवाची 'मङ्खलि' शब्द ज 'मस्करी' शब्दनुं मूळ लागे छे. आप्तमीमांसा परनी विद्यानन्दस्वामी कृत अष्टसहस्रीवृत्ति (श्लोक १) मां पण गोशालकनुं ज 'मस्करी' तरीके सूचन छे. 'म' अ जातिविशेषवाची नाम छे. आ जातिना लोको चित्रपट हाथमां लईने फरता अने लोकोने से देखाडीने अने तेने अनुरूप गीत गाईने, लोको पासेथी धन मेळवी गुजरान चलावता. ' गोशालकना पिता आ जातिना हता. अने तेथी ते 'मङ्खलि' तरीके ओळखाता. गोशालक पोते पण पूर्वावस्थामां अ तेज़ गुजरान चलावता, तेथी ते 'मङ्खलि' अथवा तो पिताना नामे 'मङ्खलिपुत्त' तरीके ओळखाता. उत्तरावस्थामां गोशालके तीर्थप्रवर्तन कयुं, त्यारे तेमनी परम्परा, जेम निर्ग्रन्थ महावीरनी परम्परा 'निर्ग्रन्थ' तरीके ओळखाई तेम, 'मङ्खलि' तरीके ओळखाई हशे . आ शब्दनुं उच्चारण केटलेक ठेकाणे 'मक्खलि' तरीके पण ४
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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