SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-६६ जो के पूर्वोक्त रजूआत अनुसार क्रिया पूरी थवामां बहु ज थोडो काळ बाकी रह्यो होय त्यारे लोकव्यवहारमा 'घडो थई गयो, रसोई बनी गई, संथारो पथराई गयो' आवा वाक्यप्रयोगो थता ज होय छे. पण आवा प्रयोगोना आधारे व्यवहारनयने 'कज्जमाणे कडे' सम्मत छे अम साबित न करी शकाय. केमके आवा प्रयोगो वखते क्रियानी शीघ्र समाप्ति विवक्षित होवाथी वस्तुनी क्रियमाणता अने क्रियानी अवशिष्टता गौण थई जाय छे, अने तेथी वस्तुनो 'कृत' तरीके व्यवहार थाय छे. माटे आवा प्रयोगोमां 'कडे' होय छे, 'कज्जमाणे कडे' नहीं. परन्तु जो आवां स्थानोओ वस्तुनी क्रियमाणताने ध्यानमा लईओ तो तो त्यां कृतत्वनो व्यवहार, पूर्वे जणाव्युं तेम, व्यवहारनयथी उपगृहीत निश्चयनयना मते ज थई शके, स्वतन्त्र व्यवहारनयनी अमां संमति नहि होय. ध्यानमा राखवा जेवी वात ओ पण छे के व्यवहारनय लोकव्यवहारानुरोधी अवश्य छे, पण अटला मात्रथी सघळोये लोकव्यवहार 'व्यवहारनय' नथी बनी जतो. लोकव्यवहारना 'मारुं शरीर, धर्मास्तिकायादि पांचना प्रदेशो' जेवा केटलाय वाक्यप्रयोगो अन्य नयोनी अपेक्षाओ पण होय छे. माटे लोकव्यवहारमात्रथी कोई पण पदार्थ व्यवहारनयसम्मत बनी ज जाय अq नथी होतुं. आ समग्र चर्चानो सार अटलो ज छे के कज्जमाणे कडे' ओ सिद्धान्त स्वतन्त्र व्यवहारनयमते सम्मत थई शके के नहीं ते अंगे पुनः चिन्तन आवश्यक छे. बहुश्रुत भगवन्तो आ बाबतमा प्रकाश पाथरे तेवी विनन्ति. टिप्पण १. जमालिना विस्तृत चरित्र माटे जुओ भगवतीजी - शतक ९, उद्देश ६ २. आ विचारणामां मुख्य आधार आ साहित्यनो रह्यो छे : विशेषावश्यकमहाभाष्य - गाथा २३०७ थी २३३२ अने अनी मलधारीय टीका, भगवतीजी – शतक १, उद्देश १, सूत्र ८-९ अने अनी अभयदेवसूरिकृत टीका, नयोपदेश श्लोक ३१,३२ - सटीक अने नयरहस्य गत 'कज्जमाणे कडे'नी चर्चा. ३. आ दलील उपरोक्त साहित्यमां साक्षात् नथी अपाई, पण विस्तारभये अहीं न नोंधायेली दलीलोमांथी अने फलित करी शकाय छे. .
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy