________________
फेब्रुआरी - २०१५
१४१
अंशे चलायमान कर्म निश्चयनयथी तो 'चलित' ज गणाय छे."
आ ज वात संथाराना दृष्टान्तमा लागु पाडीओ तो संथारानो अक देश पथरातो होय तो पण निश्चयनयना मते तो संथारो तेटला अंशे पथरायेलो ज छे. अने तेथी 'संथारो पथराई गयो छे' अम बोली ज शकाय. पण अनी निश्चयनयनी दृष्टि ज संगति शक्य छे. अकला व्यवहारनये नहीं ज. जुओ -
- "क्रियमाणमकृतमित्यपि भगवान् कथञ्चिद् व्यवहारनयमतेन मन्यते एव, परं 'चलमाणे चलिए, उईरिज्जमाणे उईरिए' इत्यादिसूत्राणि निश्चयनयमतेनैव प्रवृत्तानि ।" (विशेषावश्यकभाष्य-गाथा २३२४ मलधारीय टीका)
___ "व्यवहारनयश्चलितमेव चलितमिति मन्यते, निश्चयस्तु चलदपि चलितमिति" (भगवतीजी - शतक १, उद्देश १, सूत्र ९ टीका)
क्रियमाणमेतन्नये न कृतम् । न च वर्तमानत्वमतीतत्वं चैकत्र व्यवहारसिद्धम् ।" (-नयरहस्य)
ट्रंकमां, दीर्घकालीन क्रियानी अपेक्षाओ पण व्यवहारनयथी उपगृहीत निश्चयनयना अवलम्बनथी ज 'कज्जमाणे कडे'नी संगति शक्य छे, पूर्वोक्त रजूआत जणावे छे तेम अकला व्यवहारनयना मते नहीं.
- साडीनो छेडो बळतो होय अने ते साडीना अक देशमां आखी साडीनो उपचार न करीओ तो ऋजुसूत्रनयना मते 'साडी बळी गई' अम नहीं कहेवाय, व्यवहारनये ज अम कही शकाशे - आ मतलब धरावती दलीलनी विचारणा लगभग उपर आवी ज गई छे. छतां पण ओक प्रश्न थाय छे के ते महानुभाव कहे छे तेम अेक देशमां आखी साडीनो उपचार न करीओ तो, व्यवहारनय पण 'साडी बळी रही छे' के 'साडी बळी गई' आवा प्रयोगोमां संमति आपे खरो ?
वळी, महाभाष्यकार भगवन्त स्वयं गाथा २३२९मां फरमावे छे के "प्रभु वीरनां वचनोने अनुसरीने ऋजुसूत्रनयनी अपेक्षाओ ज साडीनो अक छेडो बळतो होवा छतां 'साडी बळी गई' आवो प्रयोग शक्य छे, ते सिवाय नहीं." तो व्यवहारनयना स्वतन्त्र मते आवा प्रयोगनी संगति करवानी कल्पना पण केम करी शकाय ?