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फेबुआरी - २०१५
प्राचीन पांच रचनाओ
- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
आदरणीय डॉ. मधुसूदन ढांकीए एक मुलाकातमां पोतानी पासे सचवाएलां ३ जेरोक्स पानां आप्यां. आशरे १४मा शतकमां लखायेला जणातां ते पानांमां केटलीक अपभ्रंश तेमज भाषामय रचनाओ हती, ते बधी अहीं प्रस्तुत छे. कया भण्डारनी प्रतिनां पानां हशे तेनो तो तेमने पण हवे ख्याल नथी. घणा भागे पाटणभण्डारनी होई शके.
____ १. प्रथम कृति 'श्रीनेमिनाथ विनति' छे. 'द्रुतविलम्बित'ना लयमा ११ कडीनी आ कृति छे. ११मी कडी इन्द्रवज्राना लयमां छे. गिरिनारना नेमिजिननी तेमां भावसभर स्तुति थई छे. क. १,६मां 'गिरिनार'नो, १, ३, ८, ११मां 'नेमिनाथ'नो, ११मां 'राजीमती'नो तथा 'माता शिवादेवी'नो क. ३मां गइंद'गजेन्द्र(पद)कुण्ड'नो उल्लेख थयो छे. क. ५ प्रमाणे प्रभुनी प्रतिमा श्याम हती तेम जाणवा मळे छे. रचना भाषामय छे, पण तेमां अपभ्रंशनी छांट स्पष्ट वर्ताय छे.
कवि भगवानने कहे छे के "तारा जेवो चोर आ जगतमां कोई नथी थयो ! तें तो भाविकोनां मन चोरी लीधां !" (क. ६). तो क. ७मां कहे छे के "एक तो आ-गिरनारनो डुंगर रळियामणो छे, ने पाछो तुं - नेमिप्रभु पण सोहामणो ! जाणे अमृतनो कुण्ड !"
कर्तानो उल्लेख नथी, पण बीजा क्रमाङ्कनी रचना साथे आ रचनानी पदावलीनी समानता जोतां आ रचना जयानन्दसूरिजीकृत होय तेम सम्भवे छे. . . २. बीजी कृति 'आरासणतीर्थस्तवन' छे. आरासण ते हाल- कुम्भारियातीर्थ. तेनी तीर्थमाल के चैत्यपरिपाटी जेवं आ स्तवन श्रीजयानन्दसूरिए रच्युं छे. आनी शब्दपद्धति तथा छन्दपद्धति जोतां, प्रथम 'नेमिनाथ विनति'नी रचना पण आ आचार्यनी ज होय एम मानी शकाय. अपभ्रंशनी छांटवाळी पण भाषामय आ कृति २१ कडी प्रमाण छे. तेमां २० भाषामां अने २१मो श्लोक संस्कृतमां छे.
१-११ क.मां तीर्थपति नेमिनाथनी स्तवना थई छे, क. १२मां 'आदीश्वरजी', १३मां 'लोडण पार्श्वनाथ', १६मां 'शान्तिनाथ', १७मां पुनः शेजतीर्थने शोभावनार 'आदिनाथ', १८मां 'पार्श्वनाथ', १९मां 'वीरप्रभु' अने २०मां अम्बादेवीनी स्तवना