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________________ ६ स्मरण छे. आ बधां जिनालयो आजे पण त्यां विद्यमान छे. अनुसन्धान-६६ जयानन्दसूरि तपगच्छना, १४ शतकना प्रसिद्ध विद्वान आचार्य छे. ३. त्रीजी रचना पण 'आरासणतीर्थस्तवन' ज छे. ते अपभ्रंशमां छे. ‘जयतिहुअण' स्तोत्रना छन्दोलयमां छे. ११ पद्यो छे. आमां पण, भाषामय स्तवननी जेम ज, नेमिनाथ, ऋषभनाथ, लोडण पार्श्व (२-३), तथा शान्तिनाथ (८), आदिनाथ (९), पार्श्वनाथ अने वर्धमान (१०), तथा अम्बादेवी ( ११ ) ए ज क्रमे जिनभवनोनो निर्देश थयो छे. 'आरासणतीर्थ' (१, ११) एवो उल्लेख ध्यानाई. छे. कर्तानो नामोल्लेख नथी, परन्तु आ रचनानुं आन्तर - स्वरूप एम मानवा प्रेरे छे के आ पण जयानन्दसूरिनी ज रचना छे. कविनी रचना - क्षमतानो सुरेख परिचय, चोथा पद्यमां थयेला 'कटरे, अरिरे, अरि, बपुरे' ए द्विरुक्त प्रयोगो थकी सांपडे छे. 1 - ४. चोथी कृति अपभ्रंशबद्ध २५ पद्येोमां विस्तरेली 'जीराउलिपार्श्वस्तव' नामनी छे. 'जीरापल्ली' ते हाल गुजरात - राजस्थाननी सरहद नजीक आवेल प्राचीन क्षेत्र छे. जीरापल्ली - जीरावल्ली - जीरावली - जीराउली आम अपभ्रंश थयेल छे. आ क्षेत्रमां पुरातन पार्श्व-प्रतिमा, सैकाओ - पूर्वे प्रतिष्ठित छे. तेनी उत्पत्ति तथा आ क्षेत्रमां आगमन आदिनो वृत्तान्त चमत्कृतिसभर अने रोचक छे. आ प्रतिमा माटी / वेळुनी बनेली छे. जैन संघमां तेनुं माहात्म्य तथा आस्था अनन्य छे. सर्व भयो अने उपद्रवोने शमावनार आ प्रतिमा मनाई छे. तेनी स्तुति अनेक कविओए सतत करी छे. आ पण तेवी ज एक मधुर अने काव्यसर्गसम्पन्न रचना छे. आना रचयिता, २५मा पद्यमां नाम छे तदनुसार, श्रीदेवसुन्दरसूरि जणाय छे. त्तेमनो सत्तासमय १४मो शतक छे. तपगच्छना ते महाप्रभावक विद्वान आचार्य हता. जो के तत्कालीन स्तोत्रोमां सामान्य रीते रचयिता द्वारा कृतिना अन्ते पोतानो नामोल्लेख न करतां गुरुभगवन्तनो उल्लेख करवानी परिपाटी रही छे. तेथी आ स्तोत्र देवसुन्दरसूरिजीना शिष्य द्वारा पण रचित होई शके. ५. पांचमी कृति, त्रण ज पानां मळेल होवाथी, अपूर्ण ज रही जाय छे. ते प्रति जो मळे तो आखी कृति तो मळे ज, उपरांत तेमां लखायेल आवी अन्य अनेक रचनाओ पण मळे. हाल तो २६ पूर्ण अने अने २७मुं अपूर्ण - एटलां पद्यो अत्रे प्रस्तुत छे. आ रचना अपभ्रंशमां छे, अने ते 'वैराग्य' - बोधक कृति छे. १२ भावनाओ, तेमां संसारनुं, आश्रवनुं स्वरूप, मानवजन्मनी दुर्लभता, पूर्वना उत्तम आत्माओनां उदाहरण, तेमांथी बोध लेवानी प्रेरणा - आ बधो वैराग्योत्पादक विषय आमां सुपेरे वर्णवायो छे. आना कर्ता जाणी शकाता नथी. 'वैराग्यप्रेरणं' एवं नाम
SR No.520567
Book TitleAnusandhan 2015 03 SrNo 66
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages182
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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