________________
नवेम्बर - २०१४
१४९
१५०
अनुसन्धान-६५
(१७) मुंबई - विजयदेवेब्सरिजीने सुस्तथी संघनो पत्र
सौ प्रथम जिनेश्वरदेवनी स्तवना द्वारा अन्य पत्रोनी जेम अहीं पण मङ्गलाचरण करायु छ । संस्कृत-गुर्जर बन्ने भाषाना पद्योमां पांचे जिनेश्वरोनी तेमज माणिभद्रवीरनी स्तवना करी कविए सूरिजीना १०० गुणोनुं पद्यात्मक वर्णन प्रारम्भ्यु छ । पांच ढाळमां ते गुणवर्णना करी पछी मां सरस्वतीने वन्दना करवा पूर्वक कविए मुंमाइ (मुंबई) बंदरनी वर्णना आलेखी छे। नगरवर्णननी ढाळमां नोंधायेल ममाईमाताना मन्दिरनी, वालकेश्वरनी लक्ष्मीदेवीनी, तथा कोलाबानी नोंध विशेष उल्लेखनीय छ। 'सरसति.....' ए देशीमां श्रावक शेठ मोतीशा, शेठ बालाभाई, फुलचंदभाई के जेमनी विनन्तिथी सूरिजी मुंबइ पधार्या तेमनां सुकृतोनी आछी रेखा पत्रलेखमां कविए वर्णवी छ । मुंबइनां जिनालयोनी विगत नोंधी फरी सूरिगुणनुं वर्णन करता कविए १० रुचिओनं वर्णन त्यारपछीनी ढाळमां कयु छे । मुंबइथी सङ्घमां सूरिजीना पधार्याथी थयेली आराधनाओनी वातो दूहाबद्ध रजू करी पछीनी ढाळमां सूरिजीने सुरत पधारवानी विनति पूर्वक 'गझल'मां सुरत शहेरने कवि आलेखे छे । ऐतिहासिक कही शकाय तेवी राजा लबीष्टीत् (अंगरेज), कोटवाल आडेसरं (अरदेशर?), किल्लेदार भावसिंह, नवाब नश्रुदिन, नगरशेठ लक्ष्मीदास, हुंडीकार आतमराम(?) विगेरेनां नामोनी नोंधनी साथे साथे नगरलोकव्यवस्था, वाणिज्य, जिनालय, जैनेतर मन्दिरादि विगतोनी पण कृतिमां खास नोंध उमेराइ छ । अन्य पत्रोमां जोवा मळती सूरिगुणवर्णना जेवीज गुणवर्णना प्रस्तुत पत्रमा देखाय छ । पत्रमा शातिवार उल्लेखित करायेल श्रावकवर्गनी यादी आ पत्नी मुख्य विशेषता छ। पद्यपत्रान्ते चातुमासार्थे सुरतमां पधारेल पं. प्रेमविजयजीनी चातुर्मासिक आराधना अंगेनी विगतो लखी श्रीसङ्घ पूज्यश्रीने सुरत पधारवा विनन्ति करे छे । त्यार पछीनी भटीयाणी-देशीनां पद्योमां सूरिजीने सहवति मुनिवृन्दनी वन्दना जणावी कविए फरी सूरिगुण-स्तवना आलेखी गद्यात्मक रीते सहवति मुनिवृन्दनी वन्दना जणावी छ । सुरतनी तोले अन्य कोई शहेर न आवे ते बताडवा कविए करेलो मुंबइना त्रसजीवोना त्रासनो उल्लेख हास्य उपजावे तेवो छ । त्यारबाद
'वीरजीने वचने' ए देशीमां सुरतमां पधारतां थता तीर्थयात्राना लाभोनी साथे श्रीसङ्घनी दर्शनाभिलाषानुं वर्णन करी पद्यात्मक तेमज गद्यात्मक रीते कविए पूज्यश्रीनी निश्रामा रहेल मुनिवृन्दने वन्दना निवेदित करी छे. पत्रान्ते खामणा पूर्वक श्रीसङ्घना श्रावकोनी सहीथी पत्र पूर्ण थाय छे ।।
पत्ररचना कोणे करी छे? ते अंगे मूंझवण थाय तेवू छे. अडधा पत्र सुधी प्रेमविजयजी, कृतिने अन्ते नाम मळे छे. अडधा पत्रमा अमरविजय, कदाच एम बन्युं होय के अमरविजयजीए ज कृतिने अन्ते स्वनामनो उल्लेख न करतां वडीलना नामनो उल्लेख को होय । कृतिमां जोडणी यथावत् जाळवी छ ।
शब्दार्थ १. जितहति = जीतेला हाथी जेवू (?) २. झुज्य = युद्ध
१७. ठाएक = रहेली ३. वेता = जाणनार
१८. फतेमारी = एक जातर्नु नानुं वहाण ४. अंब = माता (?)
१९. रिकुं = रक्षक (?) ५. पट्ट = कहेनार
२०. सब्बाब = ? ६. भट्ठ = भ्रष्ट
२१. सल्लाक = शाळा ७. बूर्ज = किल्लानी उपरना भागे २२. लसतीक = व्याप्त
तोप मुकवा माटे करायेली जग्या २३. अडबे = आरबो ८. देपूर = देवपुरी?
२४. गुघर = धुंधरा ९. चीकूर = वाळ
२५. महेंरीया = स्त्रीओ १०. सारीमार = रमत (सोगठी वडे २६. गाज = मोटा अवाजे (?)
रमाती) (सारी-रमत) २७. निमजा = एक प्रकारनो मेवो ११. कहाक = केटलाक
२८. रेल = बहुलता (?) १२. मर्थत = वलोवq
२९. छब = छबी १३. रोक = रोकड द्रव्य
३०. अल्हाद = आह्लाद १४. नारुकारु = हलकी जातर्नु, ३१. अस्थल = अस्थिओने
वसवायानी १४ जात तेमां ९ नारु ३२. अत्थाग = घणा अने ५ कारु
३३. आवगुं = आगवं १५. वस्तिरण = विस्तीर्ण
३४. पईठ = पेठा १६. जनमार = जन्मारो