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नवेम्बर - २०१४
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अनुसन्धान-६५
रो हुवो छ । श्रीसीघ रो "चांगो उदोत छै। पाटीपे वोखांन ऊतराधेनजी वचीजे छे ने ....... श्रीसंतनाथ चरित्र वचे छ । सैझाय श्रीगीनाताजी वचे छ । वखाणमें सेरो वगर", सेरोवका १९, गछी, परगछी आवै छे । सींघ रो अने श्रीजी रा उपासरा रो घणो १२ आछो गावे छे। श्रीआदेसरजी रा मींदर रो काम सरु छे ने ऊपासरा रो मरमत पीण हवे छे। मरमत घणी चोखी हई छै ने परे काम सरू छ। और सादवी रतनसरीरे ठीकाणे सादवी चंदसीरी रो पटे नाब घलाय देसी। श्रीजी स्हायबा रे पुरमे गीतारथ....... घणे मांन वंचावसीजी ।
और मेडते चोमासौ ईसाइ जोग्य देखो जीणांनै लखाव सीजी। खेत्र री मरजाद माफक रहै ने गछ रो अछो लगा छे जीणाने लेखावसीजी । श्रीदेवराज री ......... हुई जीण दीसा आयुखो वासखेपन्ही मंगायो छे जी.. घरै हाथ वात रही थी। अगलेवार आचार पं. पेमवीजैजी ......
............ समाचार लखा छे................. ते सारा समाचार प्रेम वीजेजी कहे सुजाणसीजी। ............ क्रीपा करने दीरावसीजी । १८८१ रा पोस वद २ वार बुध ।
? दत(स्त)क तें सीवचंद रा छे समतत सींघ री आग्यासु ।
श्रीपाटणनगर रा श्रीश्रींधने मैडता रा समसत सींघ री जुहार वचावसी घंणै घणे मांनसु । धन छै श्रीपाटण रो सींघ सु नीत ऊठ्ये श्रीजी रा चणारवींद भेटै छे में श्रीजीस्हायबा रा मुखारवींदरी अमृतवाणी सुणै छे तीने श्रीजी स्हायबा री सेवा भगत नीत साचवै छै तीउ धन छै।
॥ अथ गुरुभास लिख्यते ॥ अथ वीनतीकी स्वाध्याय लिख्यते ॥
॥ हमारे पगल्यां ने पायड ल्याज्यो हो रसीया मारु - ए देशी ॥ मेडतें नयर पधारो हो गछपति म्हारा, श्रीसींघ वीनती हो साहिब इम करें, जगगुरु श्रीजयकारी हो साहिब म्हारा, प्रबल प्रतापी हो साहिब सुख धरें. १ भालस्थल अति दीपें हो गछपति म्हारा, उज्वल पखमें हो चंद मनोहरु, आनन चंद सम दीपें हो साहिब म्हारा, आंखडी ओपें हो कमलदल सुखकरु. २ नासिका सूकचंचू राजे हो गछपति म्हारा, अधिक विराजे हो दंत मोती परे, अधर प्रवाली दीपें हो साहिब म्हारा, अतिही विराजै हो सोवनसी प्रभा. ३ श्रवण दोनुं अतिराज हो गछपति म्हारा, पोतनीसोला हो कंठ सोहामणो, रिदय नाभि सुभ अंगे हो साहिब म्हारा, पदपंकज हो अति रलीयांमणो. ४
जै जै लक्षण अंगे हो गछपति म्हारा, ते ते दीसें हो पुन्यप्रकृति तणा, पट्टप्रभाकर सोहै हो साहिब म्हारा, श्रीश्रीगुरुजी हो धर्मसूरिंदना. ५ चउमासो पउधारो हो गछपति म्हारा, मेडता नयरे हो गुरुजी कृपा करो, केणहीक समये हो साहिब म्हारा, हित करी चित धरो. ६ जन्मभूमिनो ए देस हो गछपति म्हारा, वाल्हो लागें हो सहूनें हितकरु, इण रीतें मन धारो हो साहिब म्हारा, महिर करीने हो साहिब दिल धरो. ७ तिहां गांम नगर पुर एहवा हो गछपति म्हारा, जिहां तो विचरे श्रीगुरु मलपता, अमने विसारी मुक्या हो साहिब म्हारा, गुज्जर देसे हो स्युं रह्या मोहता. ८ जिम चात्रक चित मेहा हो गछपति म्हारा, जिम वली मनसें हो राम सीता चहै, गज समरे जिव रेवा हो साहिब म्हारा, एहवा गुण तुमचा हो मुझ मनमै रहै. ९ श्रवण सुणी गुण ताहरा हो गछपति म्हारा, इम तुझ भेट्यां हो साहिब सुख घणो, तुमची मोटी वांणी हो साहिब म्हारा, भविजन सुणता हो नेह ज अति घणो. १० विनयविजयनो सीस एम हो गछपति म्हारा, वीनति मांनो हो
कस्तुर[विजय तणी, सिंघ समझे भाख्यो हो साहिब म्हारा, हित करी धरज्यो हो दिल मै अम्ह तणी. ११
॥ इति श्रीगुरुगुणवीनतीस्वाध्यायः समाप्तः ॥ श्रीः ॥
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