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________________ नवेम्बर - २०१४ १४६ अनुसन्धान-६५ तपगछतेज-प्रबल प्रताप, पोषदसाल दी थाप, वडोपासरो भारीक, उनकी छिब है न्यारीक्. ४७ जाली गोख सुंदर चोक, बैठे करै साधू जोख, साचो माणभद्रवीर, भेट्यां जायै दुख सहु पीर. ४८ साहू रहत बारै मास, साझै जोग तप उपवास, सास्त्र सिद्धांतको अभ्यास, करते जोग केरो न्यास. ४९ वचते सूत्र सार्थ सिद्धांत, श्रवण्यां मिटै मनकी भ्रांत, श्रावक श्राविका भाविक्, गुन गुरुदेवके गावैक्. ५० ॥ इति श्रीमेडतारी गजल श्रेयां भवतु ॥ अथ भास लिख्यते ॥ ॥ झिरमिर वरसें मेह हो लाला, परसालै पाणी पडें म्हारा लाल - ए देशी ॥ श्रीश्रीजी पासै छ तेह हो लाला, गीतारथगण गुण बहु म्हारा लाल, नाम प्रणामें(माणे) जेह हो लाला, विवरीने हवे ते कहु म्हारा लाल, १ माणिक्यविजय मांणिक हो लाला, फतैविजय मनोहरु म्हारां लाल, दोलतविजय दीपता हो लाला, जीतविजय सुहंकरु म्हारी लाल. २ खिमाविजय खिमावंत हो लाला, हीरविजय हीरो भलो म्हारी लाल, प्रेमविजय गुणगेह हो लाला, लक्ष्मीविजय लक्ष्मीनीलो म्हारां लाल. ३ साधु गुणना गेह हो लाला, इत्यादि मुनि मै कह्या म्हारां लाल, अवर हुवै मुनि जेह हो लाला, साहिबा पासै जे रह्या म्हारां लाल. ४ वंदना संघ तणीह हो लाला, त्रिविध त्रिविध करी वीनवू म्हारा लाल, हिव सहु सुणो अत्र महंत हो लाला, नाम लिखें हुवै जेहवू म्हारा लाल. ५ हेमविजय गुणगेह हो लाला, केसरविजय कलानिलो म्हारा लाल, कसतुरविजय उछरंग हो लाला, माणिक्यविजय महिमानिलो म्हारा लाल. ६ कवरविजय गुणधांम हो लाला, उदयविजय मनोहरु म्हारा लाल, जीनविजय गुणवंत हो लाला, सुरेंद्रविजय सोहंकरु म्हारा लाल. ७ कीरतविज कीर्तवंत हो लाला, चंदसरी ते वीनवै म्हारा लाल, वंदना करें नितमेव हो लाला, सर्व साधुनी मानवै म्हारा लाल. ८ साधु ने श्रीसिंघ हो लाला, वंदणा अमाहरी अवधारज्यो म्हारा लाल, इहांना सिंघ तणोह हो लाला, तिहांना सिंघनें जुहारज्यो म्हारा लाल. ९ जंगम थावर तीर्थ हो लाला, वंदणा होय हजार ज्यो म्हारा लाल, नाम लेई करो यात्र हो लाला, वलता पत्र दिरावज्यो म्हारा लाल. १० संवत अढार इक्यासि (१८८१) हो लाला, मीगसर सुदि सप्तमी वर म्हारा लाल, श्रीजी भणी लेख लिख्योह हो लाला, कस्तुरवीजै वीनती करै म्हारा लाल. ११ दूहा : त्रिविध त्रिविध करी वंदना, अवधारो गुणगेह, कवरविजय कर जोड के, लिख्यो लेख धरि नेह. १ ॥ इति श्रीगुरु गच्छाधिराजस्वाध्यायः ॥ श्रेयो मंगलो भवतु ॥ श्रीः ॥ श्रीः ।। ॥ श्री परमेसरजी सत छै जी ॥ श्रीपाटणनगर सुभ सथाने सकल सुभ ओपमा लायक, अनेक ओपमा विराजमान, कलकालश्रीगौतमाअवतार, सरसुतीकंठआभरण.... पुज, सकलगछसीरोमणी, सकलभटारकपुरंद्र भटारकजी श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री १०९ श्रीश्रीविजैजिनंदसुरीसुरजी सप्रवारा व्रणांन" चणकवलाय श्रीमेडतानगरथी सदा सेवग, आग्याकारी, हुकमी, पाटभगत श्रीसींघ संमसत लीखावतु त्रीकाल वंदणा दीन प्रतै वार १०८ वार अवधारसीजी । अठारा समाचार श्रीपुजजी री क्रीपा करनै भला छै जी । श्रीपुजजीरा सदा सरवदा आरोग्य चाहीजैजी । श्रीपुजजी रै आहार पाणी गंगाजल आरोगणरा घणा जतन करावसीजी । जतन तो श्रीमाणभद्रजी करै छै पीण सेवगने ओ लीखणो चाहीजैजी । श्रीपुजजी मोटा छोजी, श्रीगणधरजी री गादी विराजीया छो सु श्रीपुजजी रा गुणनो पार नहीजी। मेडता रा सींघ उपरै सदा क्रीपा भाव राखै छै जीणसु वसेष रखावसीजी । संघ वीनती रो चीत्र लेख मेलीयो छे सु सभासुमधे वंचावसी नै क्रीपा करने सींघने वंदावसीजी। सीघने भेटण री घणी ज ऊतकंठा लाग रही है सु श्रीफलोधी पारसनाथजीरी जात्रा साटु पधारसीनै सींघनै पावन करावसीजी घणी अरज..... लखीजी । पटो मेलीयो सु सबा समुखे वेचायो छे तै पुजजी री आग्या अखंड पलै छै जी । मेडतै चोमासै श्रीजी री अग्यासु पुनास श्रीहेमवीजैजी, केसरवजैजी, कीसतुरवीजैजी, कवरवीजैजी रहा । सींघनै घणा रजाबंध राखीया छै नै श्रीपजुसणा परबनी वीगत पणे पुजा, प्रभावना, वखांण, पछकाण, पोसा, "पडकुणा तथा चेत्रपाल घणा आडंबरसु नीसरी छ। "छमछरी रा पारणा खीवसरा अमरचंद सीरीचंद ठोरमलरे घेरे सीरा "पुडी
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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