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________________ नवेम्बर - २०१४ १४३ १४४ अनुसन्धान-६५ कुमती छोडकै निज मत्त, करते दरस होते रत्त, मिथ्यामतके है जान्, तिनकुं करत है हेरान्. १९ भेट्यां टलत है विखवाद, वाजै संख घंटानाद, जीझा झालरां झणकार, धप-मप मादला धुंकार. २० दस एक जैनके प्रासाद, करते गगन सेती वाद, गनपत सोहते है ठोर, साहमी राजकी है पोर. २१ मांहै गोख जाली महल, तामै सुभट करते सहेल, अंबा नागणेचा थांन, ताको भूप राखै मान. २२ बैठे सकल ओदादार, झूठै साच काढे तार, हाकम हुकम है सिरजोर, ताको परगनांमै तोर. २३ आगै देहरो जस धांम, मुरधर कोट नवमें नाम, माहै च्यार भुजवारैक्, सो तो प्रांनको प्यारैक्. २४ ताकै द्वारपै घडियाल, नोबत बजत है चोसाल, वरण आठ दस आवैक्, पूजा भक्तसु भावैक्. २५ चुतरभुज सँरकै रिछपाल, मेटै भ्रम मायाजाल, सेवग ध्यावते धर चूंप, करते आरती अनूंप. २६ झणणण झालरं झणकार, टणणण टोकरी टणटंकार, मंडप सभा मन भावेक्, गुन ज्या हरीके गावेक्. २७ आणू मोचीयांको वास, दरगा पीरकी है खास, पटवा तणी हाटां जोर, तिनकै जोर न आवै ओर. २८ रेसम किरमचीका ढेर, वरणे पंच वरणा फेर, पटवा पोवता है पाट, ज्यां आभूषणा है थाट, २९ "दांती "कंसऱ्या आगैक्, दिसावरपीठ १ अत लागैक, वाकै पास है रंगरेज, रंगत खूब ल्यावै तेज, ३० आगू लखारा भारीक, मूंठ्या पैरती नारीक्, आगै ठंठाराकी हाट, कांसी वासणाका थाट. ३१ सिवको देहरो भारीक, सेवे सहु नर-नारीक्, सागरदेव भरीयो नीर, मिंदर दोय उनकी तीर. ३२ आगै दूधसागर डोल, ताके पास है दोय पोल, मैजत् पीरकी छाजेक्, आगै रगतमल गाजैक्. ३३ आगू बेठवाको बाग, तिणमै रूख बहोतसे साग, माहै राजका है मैल, तिणकुं देखणीकी सैल. ३४ पास हीरका पगल्याक्, अकबरसाह प्रतबोध्याक्, पूजा भक्तसूं भावैक, सहु नर-नारीयां आवैक्. ३५ मेलो मंडत है भारीक्, दसमी पोस दिन सारीक्, सागरडां गोलाइ जान, लक्ष्मी मात को तीहां थान. ३६ करते पूज सकलंउमेर, चढते फूल चंदन नीर, आगू नवसर भारीक्, सोभा करत नर नारीक्. ३७ साची वरवासणकी राय, तिनके सकल नमते पाय, कुंडल जबर हे दरियाव, तिनकुं देखणैको चाव. ३८ तामें जुगत है सारीक्, निपजें जरायत भारीक्, मालकोट है अनुसार, चहुं दिस भुरजको विसतार. ३९ माहै पीरको मकान, तिनकी करै जारत आंन, ज्यां है रूंखकी झंगीक ", पंखी रैत है संगीक". ४० तिनके वीच वाडी पास, सब जन आवते उल्लास, भावै भावना भारीक्, पूजा करत नर नारीक्. ४१ तपगछगछपती सोहेक्, धरमसूर इ[म] मन मोहैक, तिणकै छित्तरीकै पास, पगल्या आदका है आस. ४२ मांहै वीरको है थान, चढते फूल पाती पान, परचा पूरहै ततकाल, मेटै भ्रम मायाजाल. ४३ असो वीर साचो जोर, तपगछमांय उनको तोर, सांमी सिरै सोझत पोल, उंची १० सुगटी है डोल०१. ४४ भैरव सैरडीयो भयभंग, चडते तेल-पना०२ अंग, छतरीमांय छाजै छेल, करै बाग वाड्या सैल. ४५ लोडोपासरो आगैक्, मांहै वंदन श्रीराजैक, सामो देहरो छानैक्, तिनमै आदि जिन छाजैक्. ४६
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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