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________________ ते हृदयङ्गम लागवाथी आ सङ्ग्रहमां तेनो समावेश करवामां आव्यो छे. पत्रनी भाषा पद्यांशमां हिन्दीप्रधान अने गद्यांशमां गुजरातीप्रधान छे. मारवाडीनी छांट तो होय ज. चोथा सवैयामा माणिभद्रवीर, चक्रेश्वरी, पद्मावती, अम्बिका तथा अन्य विविध देव-देवीओनी गुरुने सहाय मळे छे तेवी वात ध्यानपात्र छे. यतिश्रीपूज्यनी परम्परामां देवसाधनानुं प्राधान्य के प्राबल्य हतुं ते वात तो जाणीती छे ज; ते आवा उल्लेखो द्वारा पुरवार पण थाय छे. गद्य भागमा शब्दे शब्दे गुरु प्रत्येनो, लेखक-कविनो आन्तरिक लगाव व्यक्त थतो रह्यो छे. तेओ गुरुने मालवा पधारवानी विनवणी करे छे, पण ते करतां करतां ज तेमने ख्याल आवे छे के आ शक्य नथी, तो तेओ ते स्थितिने पोतानां कर्मनो उदय माने छे, अने लखे छे के "आर्य देशमा उत्पन्न थनार माणस जो अनार्य देशे जईने वस्यो होय तो तेने तेम प्रभुजीनां दर्शन मळतां नथी, तेम मारा माटे पण आपनां दर्शन दुर्लभ बन्यां छे." आ विनवणीना प्रसंगमां तेमणे माळवाना 'श्री मोक्षी पार्श्वनाथ'नो उल्लेख को छे. ते हालना प्रचलित नाम 'मक्षी-मगसी पार्श्वनाथ' अंगेनो छे. 'मोक्षी'नुं भ्रष्ट रूप 'मकशी-मक्षी' थई जवू केटलुं विचित्र दीसे ! (१४) १९मा शतकमां लखायेल आ पत्रनां प्रारम्भिक पद्योनी सं. भाषा रसप्रद छे. सं. भाषा पर पूरतुं प्रभुत्व न होय छतां परम्परा प्रमाणे आरम्भ सं. पद्योथी ज थवो घटे एवी समज ने आग्रह धरावता आ कविनी सं. रचनामां छन्दनो मेळ अक्षरमेळने आधीन नहि, गानने आधीन बने छे. तेथी ते छन्द अक्षरमेळ अने मात्रामेळनुं सम्मिश्रण बनी जतुं होय छे. तेनी भाषामां पण गुजराती-मारवाडी शब्दो आपोआप संस्कारित थईने संस्कृतत्व मेळवी ले छे. विद्वानोने आमां रमूज पडे. अशुद्धप्राय बधां पद्योमा सुधारी न शकाय तेवी क्षतिओ संस्कृतत्व पामी गई छे. पद्य ४मां 'श्रवणसुणितं मां 'सुणितं' प्रयोग जओ ! सुणवं. सण्यं, ए क्रियापद राजस्थानी बोलीन, ते अहीं 'सुणितं रूपे संस्कृतत्व पाम्यं छे. तो ते ज पद्यमा त्रीजी पंक्तिमा अक्षरोनो कोई मेळ नथी, लघु-गुरुनो पण नहि; छतां ते 'हरिणी छन्द'ना लयमां गाई तो शकाशे. ढूंकमां, सं. पद्योनो शब्दार्थ करवा जनारो जराक अटवाय तो ना नहि. भाषाना छन्दो चारणी लढणमां व्रजमिश्रित हिन्दीमां छे,जे प्रभावोत्पादक लागे छे. मालवदेशमां अयवंती (अवन्ती) ने मगसी (मक्षी) बे मुख्य तीर्थ होवानुं सूचवीने त्यांना ते समयना शासक मराठा राजवी 'दोलतराव' नो नामोल्लेख, 'मरहटे मोटो मरद' एवी प्रशस्ति साथे कवि करे छे. पद्मावती छन्दनी चोथी कडीमा 'रतलाम'नुं नाम जड़े छे. आ कवित्तोमा तो मालव-रतलामनी प्रशंसा छ, साथे रतलाममां पर्वतसिंह नामे क्षत्रिय राजा होवानो ने ते वैष्णव होवानो पण उल्लेख थयो छे. तेने हिंगळाज ने मम्माई (मम्मादेवी)नुं वरदान होवार्नु पण ७मी कडीमां सूचवायुं छे. त्यां शान्तिनाथ-मन्दिर होवानो निर्देश पछीना दूहामां छे. पछी भुजङ्गी छन्दमां गुरुवर्णन थयुं छे. तेमां 'असीच्यार गच्छातणी पातसाही' - अहीं 'असीच्यार' पदनो अर्थ ८० + ४ = ८४ एम थतां, गुरु ८४ गच्छना राजा होवा कवि वर्णवे छे. ते देशनी निन्दा पण कवि करे छे. प्रथम दूहामां ज 'अब वर्णन हांसी करूं' तथा 'हितकरनै हांसी करूं' एम कहीने कवि मांडणी करे छे. तमे मालवदेशमां भले मोह्या हो, पण त्यां तो रोगचाळा घणा होय छे, त्यांना लोक कामणगारा-कामण करनारा छे, ने वळी ओछा वेष पहेरनारी त्यांनी नारी तो बूरी होय छे ! त्यांना लोक 'गुणहीना अतिछीछरा', त्यांनी बोली 'ओछी' अने 'लोक (मनना) नाना'; खाणीपीणीनो स्वाद 'फीको'; त्यां 'प्रीति' जेवं तत्त्व नहि लोको क्रोधी ने अभिमानी, इत्यादि. पण आटली निन्दा पछी कवि तरत वात वाळी ले छे : आ बधा 'ओगण (अवगुण)'ने बाजु पर राखवामां आवे, तो आ देशमां मक्षी ने अवन्ती पार्श्वनाथ बिराजे छे, ते आ देशनो मोटो गुण गणाय. पछी कवि, गुरुने मरुधर देशमां पधारवानी विनंति करे छे : 'आवौ मरुधर देश'. ढाळनी छेल्ली कडीमां कवि-परिचय आम मळे छे: भक्तिविजयनो शिष्य, कवि मनरूप आम अरज करे छे. आ ढाळमां मारवाडी बोलीनी प्रचुरता जोवा मळे छे, तो हवेनी ढाळमां गुजरातीनुं प्राधान्य जोई शकाय तेम छे. आ पछी क्रमशः १-३६ गुणवर्णन, सर्वसामान्य पद्यो, गद्य, सं.पद्य, गद्य
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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