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गुरुनो परिचय छेल्ली ढाळमां आम मळे छे: रूपनगर वतन, प्रेमाशाह पिता, पाटमदे माता, ओश (वाल) वंश, गुरु विजयदयासूरि.
(१०-११)
पण्डित मोहनविजयजी जैन जगतमां 'लटकाळा' तरीके जाणीता छे. भगवान प्रत्येनो तेमनो भक्तिभाव, तेमनी काव्य-रचनाओमां, उपालम्भ-ओलंभा रूपे नीतरतो होय छे. ए ओळंभो ए ज तेमनां लटकां, अने एवां लटकां तेओ करे तेथी ते लटकाळा! तेओ हमेशां भगवानने ओळंभो-ठपको आपता रहेता ठपकानो सूर कांईक आवो हतो : "तमे ने हुं, साथे रमता, साधे रहेता, साथे भमता, बधुं साथे ज चालतुं ते पण थोडाक दहाडा पूरतुं नहि, जन्मजन्मान्तरो सुधी. आम आपणे कायमना लंगोटिया गोठिया हता. एमां एकाएक शुं थयुं के तमने तक मळी गई ने तमे मने पाछळ छोडीने आगळ नीकळी गया, ने काळांतरे भगवान थई गया ! ने हुं तो ज्यां नो त्यां ज पडेलो रह्यो ! साहेब, तमारो जूनो भाइबंध तमने याद न आवे ते तो समज्या, पण तेनी तमने दया पण न आवे ? आवी तमारी स्वार्थी प्रभुता ?"
आवा प्रभुप्रेमी कविए 'चंदराजाना रास' जेवी मातबर कृतिओ आपी छे. तेमनो आ पत्र पण, काव्यमय पत्रोमा जराक नवीन भात पाडनारो पत्र छे. उदयपुरना वर्णनमां 'वापी वप्र विहार बहू' एम 'व' थी प्रारम्भाता पदार्थोनी नामावली, कोई रास - कृतिनो टुकडो होवानी छाप ऊपसावी जाय छे. तो आचार्यना - गुरुना वर्णनमां गुरुना १०८ गुणोनुं वर्णन त्रण वार ३६-३६ गुणो गणावीने करवामां आव्युं छे. १०८नुं आवुं संयोजन कविनी प्रतिभानुं सूचक छे. जोके आ १०८ गुण वर्णवती ढाळनी अन्तिम कडीमां आवता नामाचरण मुजब, ए ढाळना रचयिता पं. कनकविजयशिष्य हरिविजय छे तेम समजाय छे. आनो अर्थ ए के कवि पोतानी ( पत्र ) रचनामां पोताना स्नेही मित्र कविनी रचेल ढाळ सामेल करे छे, ते पण एक विस्मयजनक बीना छे.
'सारसी' छन्दनो प्रयोग आ पत्रमां पण छे, जे नोंधपात्र छे. भाषाछन्दशास्त्रोमां आ छन्दनुं बंधारण तपासवुं पडे. आम तो तेनुं स्वरूप 'हरिगीत' ने मळतुं जणाय छे. गुरु-वर्णन माटे अन्यकृत रचना लोधा छतां कविने ते अपूर
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जणायुं होय के गमे तेम, पण १ थी ३६ गुणोनुं परम्परागत रीतनुं वर्णन तेमणे २१ कडीनी ढाळमां कयुं तो खरुं ज.
पत्र सोरठना मंगलपुर-मांगरोळ (मंगलडर- मांगलडर मांगलोर - मांगरोळ) थी लखेलो छे, तेनुं सूचन 'अडयल्ल'नी प्रथम कडीमां थयुं छे. नगरवर्णन सामान्य. चोथी कडीथी समुद्रकांठानुं क्षेत्र होवानो ख्याल मळे. पछीनी ढाळमां 'नवलखो भेटवाजी' अने 'बीजा मुनिसुव्रतनो उच्छरंग' एम नोंध छे ते त्यांना बे जिनालयो परत्वे छे. मांगरोळमां आम तो 'नवपल्लव' पार्श्वनाथ छे, पण कविना चित्तमां 'दीव'ना 'नवलखा 'ना संस्कार जागृत हशे तेथी आम लखी बेठा हशे.
११मो पत्र उपरोक्त मुनि के पं. हरिविजये लखेलो छे. ते पण मांगरोळी जलख्यो छे. पूरो सम्भव छे के १०-११ बन्ने पत्रोना रचयिताओ मांगरोळमां साथै ज होय, बेडए अलग पत्रो लख्या होय. बेमांथी एके कवि वर्ष तो नोंधता ज नथी !
आ पत्रनो प्रारम्भ अशुद्ध सं. काव्योथी थयो छे. १ थी १०८ गुणवर्णननो अंश, उचित रीते ज, अहीं अपायो नथी. सोरठ देशनी हरियाळीनुं वर्णन मनने मी जायते छे..
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आ पत्र, आ अङ्कमा ज प्रगट थता अन्य पत्रने महदंशे मळतो होवानुं जणावीने जे तफावतवाळो अंश छे तेनी वाचना तैयार करी अत्रे आपवानुं काम पत्र - सम्पादकोए ज कयुं छे, एटले ते विषे कांई लखवानुं रहेतुं नथी..
अचलगढनां चार धातुबिम्बोनुं वजन १४४४ मण होवानी दन्तकथा / परम्परा घणी पुराणी छे, तेनो पुरावो आ पत्रनी एक चौपाईमां मळे छे. वळी ते सोनानां होवानी कथा पण प्रचलित छे, परन्तु 'ते मध्य बिंब सकल सप्तधात' एवा आमां थयेला उल्लेखथी, ते सप्त धातुमय छे, सोनानां नथी, ते वात पण प्रमाणित थाय छे.
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आ पत्र बहु नानो छे, परन्तु लेखकनी हृदयाभिव्यक्ति तेमां जे थई छे