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४८मी कडीमां १८७१ मा वर्षे आ गजल रच्यानी नोंध छे.
गच्छपतिने मारवाड पधारवानी विनंति ए आ पत्रनो मुख्य उद्देश छे. विनंति करतां मारवाडनी विशेषताओना वर्णनमा राण(क)पुर, फलोधी, कापरडा, पाली, सोझित - आ बधां क्षेत्रो - तीर्थोनो उल्लेख थयो छे. गुरु पोते सोझितमां जन्मेला होवानुं याद अपावी तेमनी - वाघरेचा गोत्र, माता गुमानदे, पिता हरचंद, ओशवाळ वंश - ए विगतो पण जणावी दीधी छे.
गद्य भागमां विनंति लखतां लखतां जोधपरनो संघ पं. मनरूपविजयजीनी प्रशंसा करे छे ते अंश ध्यानार्ह छे. पत्र त्रुटित छे. सचित्र छे. भाषा मुख्यत्वे राजस्थानी छे. ऐतिहासिक विगतोनी दृष्टिए पत्र महत्त्वनो गणाय तेवो छे.
- आम चाले छे. सं. पद्य ४मां 'जीवनाख्यं नमाम्यहं' ए पदथी जिनेन्द्रसरिन् पूर्वनाम 'जीवन' होवानुं सूचवाय छे. पछी शरु थाय छे मरुधरनुं वर्णन. 'अणनम राठोड' ए मारवाडनी प्रशस्ति छे तेम वर्णवतां कवि जोधाणा-जोधपुर, मानसिंह राजाना उल्लेखपूर्वक तेनुं वर्णन करे छे. त्रोटक छन्दमां थतुं राज-वर्णन उत्तेजक लागे छे. जोधपुरना वर्णनमां जुदां जुदां क्षत्रिय-गोत्रोनां नामो रसप्रद छे. वणिक-गोत्रो, विप्र, महेता, कायथ-कायस्थ, दोढीदार वगेरेनी नोंध पण थई छे. सुरगुरुतुल्य मन्त्री, पुरोहित, व्यास, सैयद, पठाण, मोगल - बधां पण अहीं नोंधायां छे. नाजर, चारण, भट्ट (भाट) पण छे. वडी-मोटी तोप त्यां हती ते पण नोंधवानुं कवि चूकता नथी. चामुण्डा, विष्णु, ज्वालामुखी, हनुमन्त, भीम - एवां विविध देवस्थानोनो, तो पद्मसर, राणीसर, गुलाबसागर, फतेसागर, गंगेलाव, फूलेलाव जेवां जलाशयोनो पण उल्लेख थयो छे. फरी गंगाश्याम, बिहारी-कुंजधाम, जलन्धरनाथ तथा जिननां देरांनी तथा अन्य विविध देवस्थानोनी नोंध आपी छे, 'मनारै अरु महजीत' ए पदमां मस्जीद-मिनारानी नोंध लेवानुं पण कवि चूक्या नथी. जोधपुरमा आ बधुंज हतुं. आ वर्णनथी सांस्कृतिकसामाजिक अध्ययनने पात्र सामग्रीनी एक सुस्पष्ट नोंध आपणने मळी रहे छे, जे ऐतिहासिक पण छे.
कडी २६-२७मां तपागच्छ, खरतरगच्छ, पासचंदगच्छ, लूंकागच्छ - आ बधा गच्छोनी पोषालो विषे नोंध छे. क. २९मां आसन, मठ, फकीरोना तकिया - बधां विषे वात करतां, तकियामां फकीरो अल्लानुं नाम ले छे, ते पण जणाव्यु छे. पछीनी कडीओमां केटलांक वणिक-गोत्रोनां नाम आवे, तेमां 'मुहता वडा मर्द ही मर्द, सही करे अरियणकुं सरद' ए पंक्तिओ 'मुहता'नी मर्दानगीनी साख पूरनारी छे. कायस्थ माटे 'दोत-कलम ही कान धरते' एवं लख्युं छे. तो मुसलमान मक्के भेटे छे ने 'जाकू सच्च जन ही जान' एम जणावे छे. कदाच मक्का जई आव्या पछी ते साचुं ज बोलता - ते विषे संकेत संभवे ?
३६मी कडीमां नगर-वर्णन थया पछी बहार- वर्णन शरु थाय छे: वखतसागर वगेरे सरोवरो, बाग, त्यां काळा-गोरा वीरनुं स्थानक होवानुं सूचवता कवि, ४१ मी कडीमां पार्श्वनाथना उत्तुङ्ग प्रासादनी नोंध ले छे. राजाराम शेठ द्वारा निर्मित उपाश्रयनी पण जिकर करी छे. पछी विविध सरोवरोनी यादी छे.
विजयजिनेन्द्रसूरि तपगच्छना मोटा प्रभावक श्रीपूज्य गच्छपति हशे तेम तेमना पर लखायेला तेमज उपलब्ध थता अनेक विज्ञप्तिपत्रो जोतां लागे छे. आ पत्र पण तेमना पर ज लखायेलो छे. सं. १८७६मां ते मांगरोल चोमासुं हता त्यारे सोझतना संघे आ पत्र लख्यो छे. सोझतने 'सोझाली' एवा नामे अहीं ओळखावायुं छे.
मांगरोलमा 'मीयां मान' शासक, सोमजी दीवान, आनन्दराम कारभारी, फोजदार मीयां छे. आठमा (चन्द्रप्रभु), वीशमा (मुनिसुव्रत) तथा पार्श्वनाथ - एम ३ देरासर त्यां छे. शेठ नानजी, धरमशी, कपुर मोदी अने श्राविका वालुबाई एम ४ नामो पण जोवा मळे छे.
सवैया एकत्रीसा छन्दो द्वारा गुरुवर्णन थयुं छे. तेनी भाषा चारणी हिन्दी छे, अन्य ढाळोमां मारुगुर्जर भाषा छे. आ भाषा आ पत्रोमां सार्वत्रिक होय छे. पध्धडी छन्दमां मारवाडनुं अने सोझतनुं वर्णन व्रज-हिन्दीमां छे. विगतोनुं साम्य पूर्व पत्र जेवू ज; बन्नेनी विगतो सरखावाय तो मजानो अभ्यास सांपडे. ११ उपाश्रय, ३ पोषाळ, तेमां तपगच्छनो उपाश्रय बहु भव्य. 'देवसूर' (क.४४) शब्दनो उल्लेख ऐतिहासिक गणाय. महदंशे अन्य (पूर्व) पत्रनी वातो/वर्णननु पुनरावर्तन थया करे छे. आ पत्र पण सचित्र छे.