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________________ नवेम्बर - २०१४ १२७ अनुसन्धान-६५ श्रीसंखेसर परसादथी, वासुदेवपद पाय, आज लगण ए मूर्त्तिनो, महिमा सुरगण गाय. ७ ॥ ढाल || नणदलनी ॥ गुर्जर देस छै वारु, तिहां सेहर घणा छै सारु हो, भवियण हिवै सुणो, तिहां पाटणपुर अति दीपे, सुरनगरीने अति ही जीपै हो, भवियण हिवै सुणो. १ तिहां श्रीपास विराजै, जस महिमा अधिकी छाजै हो, भवियण हिवै सुणो, जस सुरपति गुण गावै, जस नर नारी मिलीनें आवें हो, भवियण हिवै सुणो. २ असुर विद्याधर सगला, सुरपात्र रचै तिहां खेला हो, भवियण हिवै सणो. त्रिण भुवन[मां] पूजाणी, प्रभु मूरति सुरतरुखांणी हो, भवियण हिवै सुणो. ३ एहवा जिनने वांदीजै, नरभवनो लाहो लीजै हो, भवियण हिवै सुणो, प्रभु मूरति मोहनगारी, निरख्याथी लागे अति प्यारी हो, भवियण हिवै सुणो. ४ इह भव जिनपदसेवा, परभव पण एहज 'हेवा हो, भवियण हिवै सुणो, तिम वली तारंगो सोहै, भविजनना चित अति मोहें हो, भवियण हिवै सुणो. ५ जैन धर्मनो धाम, तिहां सरसा सगला ठाम हो, भवियण हिवै सुणो, तिहां वृद्धनगर छै वारु, पाटणनगर अति सारु हो, भवियण हिवै सुणो. ६ वन उपवन आराम, तिहां देवरमणना ठाम हो, भवियण हिवै सुणो, नदीय निवाण सुचंगा, जिण देख्या अतिहि उमंगा हो, भवियण हिवै सुणो. ७ धनि ज[न] जिहां पूरा, तिहां धर्मस्थितिमें सूरा हो, भवियण हिवै सुणो, पभणी पांचमी ढाल, विनयविजय सुविसाल हो, भवियण हिवै सुणो. ८ ॥ अथ गुर्जर देसमाहै पाटणनगरवर्णनम् ॥ दूहा : प्रथम गिरा गुरुदेव नम(मुं), तिम वलि जिन वर्धमान, गजल चाल पाटण वरन, चरन 'वरनवर आंन. १ गो सम गुर्जर धर नमय, पट्टण सहर प्रसिद्ध, कवरसना ओपम कहै, सुरपुर आभा लिद्ध. २ "सोबायत 'भायत सबै, हामो गायकवाड, राजनीत अति राजतो, प्रजा सबै प्रतिपाल. ३ ॥ गजल चाल लिख्यते ॥ पट्टण सोहा अति अभिरांम, रसना कहैत है गृहधाम, नगरी अमरथी छिव जोर, औसा सिहर नही कोई ओर. १ वरणन करत हु बाजार, बैठे सेठ साहुकार, अभिनव सोभती हटश्रेण, आवै लोक सोदा लैण. २ मुलमुल देख मैहमुंदीक्, "नैनां होत चकचुदीक्, "मुखमल 'सावटु "मुलतान, सोदा ग्रहैता तोतान्. ३ सुनवर जालियां अरु गोख, चोहटे बीच सुंदर चोक, १'गुदरी जुरत है बहु लोग, तिहां मनमज देखवा अतिजोग. ४ आवी बैठते "बज्जाज, सोदा करत है सिरताज, "सखरा सोभते १५सराफ, दमडा परखते दिल साफ, ५ बैठे पान तंबोरीक, भरीयां खूब चंगेरीक, छाबा फूलमाला हाथ, भमर लूंब ते तिण साथ. ६ घेवर लाडूवांके ढेर, चाखै तनकतोवे जेर, मुमन "खरादीकी हाट, पटवा बैसते घण थाट. ७ सोना घरत है सोनार, दुपटा ओढणे "जरदार, तंबू तांनीया मनिहार, बेचत हार "पलमादार. ८ चातुरहद्द चितारेक, कांसी घडत कंसारेक, चरणे२ वरणमै छत्रीस, सोहै लक्षणे बत्रीस. ९ वर, सेंहरके आवास, आछी कोरनी हे जास, तोरण जालिया फुनि गोख, नाटारंभकी है नोख. १० सारे सोहते २ चित्राम, कीने २"उस्तादइ काम, लिछमनकुमर सीतारांम, नाटारंभ के चित्राम. ११ रावण रूप मनमोहेंक, दस सिर वीस भूज सोहेंक, मंडे रूप हे माहादेव, २५ उमया संग हे नितमेव. १२ होतें वाघ अतिभारीक, अंबा रुख की तारीक, मंडे काबली बहु "मीर, खेचे लाल तरगस तीर. १३
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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