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________________ नवेम्बर - २०१४ १२२ १२१ अनुसन्धान-६५ सोझत नयरै हो पूजजी पधारीयै, श्रीसिंघ पूरो रे आस, राजेश्वर, सूरि गुण षटत्रीसे सोहता, मोहता नर नै नार, राजेश्वर. २ बतीस [स] हसदेस सोहे भला, आरिज साढा पंचवीस. राजेश्वर तिणमै हो नगर सोझाली सोहामणो, ओपमा अलिका नगीस, राजेश्वर. ३ राठोड वंसे हो राज करे तिहां, मानसिंह मोटो भूपाल, राजेश्वर, जेहनी आंण अखंडित निरवहै, षट दरसण प्रतिपाल, राजेश्वर. ४ ऊंचा मंदिर सोहै अति भला, प्रोढी फबती रे पोल, राजेश्वर, जिननां मंदिर सूंदर सोभता, ओपै हाटांनी श्रेणी, राजेश्वर. ५ सिंघनी वीनती सफल करो सही, पूरो मनरी रे कोड, राजेश्वर, सोझित नगर पधारो साहिबा, अरज करां कर जोड, राजेश्वर, ६ सिंघनै उमाहो हो तुम्ह दरसण तणो, हंस घणी मन माय, राजेश्वर, मधुकर समरै हो जिम केतकी भणी, जिम रेवा गज चाह, राजेश्वर. ७ तप जप खप संजम करता थका, अप्रतिबंध विहार, राजेश्वर, जनमभूमिनै हो आवी संभारज्यो, मनगमती मनुहार, राजेश्वर. ८ सिंघनी वीनती मानो गछपती, अवधारो अरदास, राजेश्वर, गुरू मनरूपविजय सुपसायथी, रूपनि पूरो रे आस, राजेश्वर. ९ अत्रत्य पं० रूपविजय ग०, पं० प्रतापविजय ग०, पं० कपूरविजय ग०, पं० मानविजय ग०, पं० माणिक्यविजय ग०, लघु शिक्ष गुलालचंद, गंभीरमल, लालचंद, फतैमल प्रमुखनी वंदणा १०८ वार अवधारसीजी । समस्त ठाणु १३नी वंदणा पंचावसीजी ॥श्री।। लिखितं पं० रूपविजयेन ।श्रीरस्तु ॥ पाटण विजयजिनेन्दसूरिजीने मेडताथी श्रीसङ्घनो विनन्तिपत्र प्रस्तुत पत्र पाटणमा बिराजमान विजयजिनेन्द्रसरिजीने उद्देशीने मेडताना श्रीसङ्के पाठव्यो छ । अन्य पत्रोनी जेम पत्रनी शरुआतमां पञ्चजिन तेमज यक्षराज माणिभद्रने वन्दन करवा पूर्वक कृतिनुं मङ्गलाचरण करायुं छे । पछी कृतिमां सौ प्रथम गुर्जरदेश, वर्णन करता कविए महाप्रभावक श्रीशद्धेश्वर पार्श्वनाथप्रभुनी उत्पत्ति अंगेनो संक्षेपमां इतिहास आप्यो छे । ते तीर्थभमिना नजीकना मोटा शहेर पाटणमां सरिजीनी स्थिरता होवाथी हवेनी 'गझल'मां कविए अनुक्रमे पाटणनी बजारोन, व्यापारी जनसमाजनुं अने जैन-जैनेतर मन्दिरोनुं स्वरूप अद्भुत रीते चीतयु छ । उपाश्रय तेमज धर्मशाळानी झीणामां झीणी विगत कविए मोतीदाम-छन्दमां आलेखी छे। गझलमां अने आ छन्दमां वपरायेला फारसी मिश्र बोलीना शब्दो परथी मोगल सल्तनतनी लोकमानस परनी अमीट छाप स्पष्ट जणाई आवे छे । गुरुगुणवर्णनारूप १०८ गुणोने चार ढाळमां वर्णवी कविए गुरुनी तुलना चन्द्र साथे करती एक देशीबद्ध ढाळनी रचना करी छ। गुरुभगवन्तने मेडता पधारवा विनन्ती करवा नगरवर्णनानी शरुआत कवि मेडतानरेश धनराजनी गुणवर्णनाथी करे छे । पछी शहेरना विस्तृत वर्णननी इच्छाथी कवि 'गझल' रूपे शहेरना बजारो, व्यापारीवर्ग, राज्यसत्ता, जैन-जनेतर मन्दिरो, भौगोलिक स्थळो, उपाश्रयो विगेरे ऐतिहासिक बाबतो काव्यमां गुंथी छ। पत्रनी आ सामग्री, मेडताना इतिहासनी दृष्टिए घणी ज महत्त्वपूर्ण छ । पछीनी देशीमां पूज्य गुरुभगवंत साथे रहेता मुनिवृन्दने पोतानी साथेना शिष्यादिपरिवारनी वन्दना जणावी प्रत्युत्तर पाठववा विनन्ति करे छे । हवे पछी मुडीया लिपीमां सूरिगुणनी नोंध तेमज चातुर्मास तथा पर्युषणपर्व अंगेनी विगतो नोंधी छ। 'आदिनाथप्रभुना जिनालय, काम शरु छे' आ वात परथी कोई प्राचीन जिनालयनो जीर्णोद्धार के नूतन जिनालयना काम अंगे श्रीसद्धे पत्रमा विशेष प्रकाश पाड्यो छे । पत्रान्ते गुरुभगवन्तनी देहशोभानुं वर्णन करी सूरिने मेडता चातुर्मास पधारवानी विनन्ति स्वीकारवा
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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