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नवेम्बर - २०१४
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अनुसन्धान-६५
सुगुरु तणी करै सेवा, पूर्ण एक अरिहंत देवा हो, सदगुरु अरज सुणो, ज्यारा गुण केता मुख गाऊं, परतिख नही पार न पाऊं हो, सदगुरु अरज सुणो.६ तिकै दरसण देखण तोरा, मेहआगम चाहै मोरा हो, सदगुरु अरज सुणो, किरपा तिहां पर कीजै, देशना ध्रमरी तिहां दीजै हो, सदगुरु अरज सुणो. ७
थे गिरुवा बहु गुणधारी, आ वीनती सुणज्यौ सारी हो, सदगुरु अरज सुणो, विजैजिनेंद्र गछराया, औतो रूपविजय गुण गाया हो, सदगुरु अरज सुणो. ८ ॥ इत्यादि श्रीजीरी वीनती ॥श्री।। इंडर आंबा आंबली रे, इंडर दाडम द्राख - ए देशी ॥
शांतनाथ प्रणमुं सदा रे, वलि सदगुरुना पाय, गुण गावां गछपति तणारे, आणंद अंग न माय
सुगुरुजी! थे मोटा महाराज. १ दरसण देखण ताहरो रे, ऊमाहो मुझ अंग, अभिलाषा अहोनिस घणी रे, रूडो तुम्हथी रंग. २ सिंघ करै वीनती सदा रे, निपट सहू नर नार, अरज तिहां री अवधारीय रे, सहुना कारज सार. ३ सोरठ देशै गछपति रे, विलंब रह्या केई वार, एक वार मुरधर आवज्यौ रे, एह अरज अवधार. ४ भाव धरीनै भेटसां रे, परगट गछपतिपाय, जन्म सफल "जद जांणस्यां रे, हियडे हरख न माय. ५ रूपविजय कहै मानज्यो रे, रीत अवस गछराय, साची अरज छै साहिबा रे, कूड म जांणो काय.६
॥ इति संपूर्णम् ॥ दुहा : दुखकाटण दोलतविजय, मुनिवर वडो महंत,
तपगछमें सोभे तरुण, तव गुण मुख नव तंत. १ मांणकविजय मोटो मुनि, गुणवंत जांण गरथ, पैतालीस आगम प?, आढा करै अरथ. २
रामविजय रिधवांटेणौ, गुण गौतम गणधार, जसधारी जतीयां सिरै, नित वंदै नर नार. ३ फतैविजय वद फाबतो, इल मोटो अणगार, जीतसागर बहु जस लीयण, क्षमाविजय मुनिराय. ४ श्रेय इत्यादिक परिवारसुं, मांनीज्यो मनुहार, त्रिविध त्रिविध कर मांनज्यो, वंदन वार हजार. ५
संवत् १८७६ व० मिति फागुण शु. १३ ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ स्वसत श्रीमांगलौर वंदर सुभ सुथाने पूज प्रमपूज सरब ओपमा विराजमान, ००० रांजमान, सोभवांन, दीपवांन, इत्यादिक वडी वडी ओपमा विराजमान, सकलगुणनिधान, सकलक्रियासावधान, सकलनरंदपूजनीक, सकलभट्टारकपुरंदर, सकलभट्टारक-सिरोमण, भट्टारकजी श्रीश्री१००८ एकहजार आठ श्रीश्रीविजेजिनंदसूरस्वरजी चणायनं चरणकवलायनं सोझतथी सकल सिंघ लिखतं वंदणा १०८ एकसो आठ वार अवधारसीजी । अठा रा समाचार भला छै। आप रा सदा सुख आरोग चाही जै। आप रा डीलां रा घणा जतन करावसी । जतन तो श्रीवीर साहबजी करसी पिण श्रीसिंघ, तो लिख्यो चाहीजे । अप्र च "हमरके चोमासै पुन्यास रूपविजेजी तुम्हे [मे] लीया सो जोग गीतारथ छे। प्रभाते पाटीये वखाण-पछखांणविध- वुहार मरजाद भली रीत साचवे छे। अणासू इसा ही ज गितारथ जोग्य प्रमाणीक हुवे तिकांनु चोमासै मिलावसी। श्रीसिंग री तो लिखण रो कारण ओछे सो क्रिपा करने हमरको चोमासो इणांनु ईज रखावसी । अठां लायक कामकाज हुवे सू लिखावसी । श्रीदेवजात्राये सिंगर्नु याद करसी । समसथ साधुवांने वंदणा वचावसी। स्रावक स्रावकणीया री वंदणा एकसो आठ वार अवधारसी । म्हा रामदास री वंदणा एकसो आठ वार अवधारसीजी। सं. १८७६ रा मिती फागण सुद १५ वार सोमदिने । ॥ अथ श्रीगुरुराजविज्ञप्तिस्वाध्यायः लिख्यते ॥ ॥ देशी - रसियानी ॥
श्रीविजैजिनेंद्रसूरिंदजी सांभलो, तपगछना शिणगार, राजेश्वर, दरसण देख्या हो सुख ऊपजै सही, जिम रवि कमल प्रकाश, राजेश्वर. १