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________________ नवेम्बर - २०१४ ११७ अनुसन्धान-६५ ॥ अथाग्रे स्नेहोक्त दूहा लिखनीया ॥ दु(दू)हा : किहां कोयल किहां अंबवन, किहां दादर किहां मेह, वीसार्या नवि वीसरे, गुरुजी तणा सनेह. १ मठ माहै तापस वसै ०२ एक घडी आधी घडी, तिणमै आधो आध, जब ही दरसण पाईयै, सो सुखीयारथ कीध.३ हियडां भितर दव बलै, कोय न जाणे सार, कै जांण मन माहरो, के जांणै किरतार. ४ तिसीयो तडफै नीरकुं, भूखो चाहै भात, जेम तुमारा दरसकी, चाह धरूं दिनरात. ५ चातिक चाहै मेहकुं, चकवा चाहत मोर, हम चाहुं तुम्ह दरसकुं, जैसै चंद चकोर, ६ साहिब तोरां दरसकी, मो मन है हुल्हास, जैसै पंथी पंथसिर, पल पल जलकी प्यास. ७ हियडा तुं हेजालुवो, ४२भाखर गिणे न भित, जाकै कारण तुं झुरै, ताकै मन नहीं चिंत. ८ कांमकाज इह छोरकुं, जो हम लायक होय, कृपा करि लिखज्यो सदा, अंतर न रहै कोय. ९ ४"बाहुडता देज्यो सदा, कागद इधक हुल्हास, हितकर लिखज्यो हाथसुं, दसकत अपणे खास. १० गुरुजीसु इक वीनती, मांनीजो महाराज, कृपा करीनै मेडतो, लिखज्यौ श्रीगुरुराज. ११ साहिबजीनुं वीनती, देओ सह "बीकांण, महिर करी लिखज्यो तुम्हे, सुंदरपुर जोधांण. १२ संवत अढारै छिहत्तरै(१८७६), वलि फागुण शुदि मास, तिथ पूनम शशि वासरे, लिख्यौ लेख हुल्हास. १३ ॥ कवित्त ॥ छप्पय ॥ पंच महाव्रत पाल, काय घट पाल कृपानिध, सत्तर भेद संयमह, वले जिणरी जाणण बुध, सुमति गुपति सहू सोध, बोध भविजन बहू दायक, पायक ग्यांनप्रवीण, वदै मुख अमृत वायक, नायक गछ असीच्यार नित, प्रसिद्ध ऋद्धि भरपूर है, विजैजिनेद्रसूरि ग्रहीया वडिम, तपै पाट ध्रमसूर रै. १ तुझ दरसण दुख दूर, पूर पुन प्रगट देखै तब, तुझ दरसण दुख दूर, जगत सुख ही उपजै जब, तुझ दरसण दुख दूर, रोग-गम नित वाधै ऋद्धि, तुझ दरसण दुख दूर, शत्य केई नर पांमै सिध, तपगछनाथ तेज हि तरूण, जगत राह दोय जांणीय, बहु ग्यांन ध्यान जांणण प्रबल, विजैजिनेंद्र वखांणीयै. २ गुणकर समंद्र गंभीर, चंद जिम उजल चिहुं दिशि, मेर जीही द्रढ मनह, खलह तिण देख जायै खिस, कंचननी(नि)मल काय, दांनकर "क्रन जिम देयण, अवर सूरन हई सो, लायक व्रिद जग सहू लियण, धजबंध पूज तपगछ धणी, अवस वात चित आंणीय, साहपतिसाह पगवंद सह, विजैजिनेंद्र वखांणीये. ३ ॥ इति छप्पय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ वीनतीरी सिझाय लिख्यते ॥ ढाल | बिंदलीरी ।। प्रणमुं सरसति पाय, गुण गाव॑ गछपतिराय हो, सदगुरु अरज सुणो, अरज अमारी अवधारो, सोझाली नगर पधारो हो, सदगुरु अरज सुणो. १ मुरधर देस छे मोटो, "जठे अन धनरो नह तोटो हो, सदगुरु अरज सुणो, जठे नगर योधांणो राजै, ओतो अलकापुरि सम छाजे हो, सदगुरु अरज सुणो.२ भूपति मानसिंघ राजा, वाजे नित नोबत वाजा हो, सदगुरु अरज सुणो, नयर सोझाली निरखो, जिकां इंद्रपुरि छै सरिखो हो, सदगुरु अरज सुणो. ३ बाग वाडी आरांम, नव खंडमै जिण रो नाम हो, सदगुरु अरज सुणो, भगवंत देहरा भारी, पूजा हुवै सतरप्रकारी हो, सदगुरु अरज सुणो. ४ श्रावक बार व्रतइ साजे, गुणनिध नित नितका गाजे हो, सदगुरु अरज सुणो, पोसा नै पडिकमणा, वलि भेद सिद्धांता भणणा हो, सदगुरु अरज सुणो. ५
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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