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नवेम्बर
॥ अथ मरुधरदेशवर्णनमांह | छंद जात पद्धडी ॥
देशां जू सिहर मुरधरह देस, सोझत सहर तिणमै विसेस,
प्रथमही अन धन जिहां पूर, देख्या जू दुःख सब जाय दूर. १ तिहां भूप मांनसिंह भणंत, वपु तेजवान बहु बलवणंत, तिनकी जू कीर्त्ति दश देश ताह, वडवडह भूप कहै वाह वाह. २ दईवान ज्यांन" रण सुदेख, पराकम्म तेज रवि जिम ही पेख, भुजबली भिम जेहो भुंवाल, परदुखटाल पर प्रजापाल. ३ वद मुखा वचनपीयूषबांण, बल सबल जाहि अरजन्नबाण, तिनकै जू तेज अरि पिख्य त्रास, बस्ती ज छोड किय वन ही वास. ४ खग झाट थाट किय खल हि खंड, जग मांहि जस हि रोपे जू दंड, चिहुं दिसा तेज है चक्रवति, कहते जू कवि नव नवी किर्ति. ५ रिद्धि सिद्धि वृद्धि अष्ट हि रखंत, नव निद्धि ताहि नित नित वधंत, हय गज हि थाट द्वार हि जू हेर, कहीयै भंडार मांनुं कुबेर. ६ जिह सुजस पसर नव खंड जास, दोयण जू दुष्ट नित होत दास, अहोनिस हि होत प्राक्रम अवाज, भल भले गढपति जाय भाज. ७ वद सत्यवत्त महा सूरवीर, निज खित्तवट्ट मुख लीयां नूर, उमराव साव तिनकै अपार, है स्वांमधरम बहू हुजदार. ८ सिंघवी भंडारी मोहणोत सर्व, मुंहता जू कांम गुण ग्रहया गर्व, करते जू शुद्ध चित्त स्वांम काज, कायस्थ करै लिखणोसु काज. ९ वड हथ समच्छ बहु बुद्धवंत, के वास जेम सहु नर कहंत, परगट्ट धरमबल तिन ही पाय, अरिदल कितेक दीने उडाय. १० इण मंत्री सम्म नही कोई ओर, तिनके जू वधत नव नवे तोर, धन धन्य कहत सहू नरह धीर, वड है वजीर वीराद वीर. ११ चड नीत जांण चित्त नित्त चाय, डारण जू किते गुंथै जू डाव", हिकमत्त छत्त सहू सिद्ध हाथ, भुजबली अतुल जीपै "भराथ. १२ भूपत्तमांन सनमांन भल्ल, गुनिजन सुजस्स पढते जू " गल्ल, षड खंड शत्रू दीयकित ही खेस, देते ही दाद दशही जू देश.
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अनुसन्धान- ६५
जिह राजकाज भुजभार लीन, केतें सुधार वड कांम कीन, तिनकी जू वत्त सुण नृपहि कांन, सहि देत नित्य नित्य सनमांन. १४ नव नवी रीझ नृप नित हि देत, हियमै हरख अत आण हेत, करहै जू राजके सब हि कांम, नव कोट मांहि तिनका जू नांम. १५ गुरु देव सेव कर बहू प्रवीन, लायक ग्यांन भ्रम वात लीन, विद्या विवेक बहू बुद्धवान, जगरीत भात सब हि जू जांन. १६ ओपै जू लखण बत्तीस अंग, सही तजै नीच जनकें जू संग, बहुतरह कला जांणण प्रवीण, नितमेव बुद्ध उपजै नवीन. १७ वर्णवं नगर विश्वा जू वीस, सारद मात नम्माय सीस,
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जाकी जूकिर्त्ति नव खंड जास, कहै कवी दूसरा जू कैलास. १८ परकोट सैहर प्रथम ही पिछांन, जोज्यो जू लंक सम ही जू जांन, तिनके जु भुरज कंगुरे पेख, दोयण जुडवत द्रिग ही जू देख. १९ जिस परह नाल है जू जंछूर, छूटै जुकरै अरि चक्कचूर, बहू लंब चोवटा है बजार, निरखै जू हरख कर नरह नार. २० हाटां जुछटा श्रेणी जू हेर, फब है अवल्ल सारन्नफेर देखो ज प्रबल अन धन अपार, वडे वडे साह करे व्यापार. २१ मांहै जुकिला मेर हि समांन, छावा जु वि (वी) रमदेका थांन, उचै ही ज देव करते अवाज, भलभले शत्रू ही जाय भाज. २२ सही जिनह देहरा है जू सात, पर जनह [दर्श] जाय प्रभात, जलंधरहनाथ देहरा जु जांन, ऊंचा जवडे है अस्समांन. २३ शिवका जु मंदिर चवदै जु साच, विष्णुं ज शिंभु सम मेल वाच, अडिग है ऊपासरा जु इग्यार, पोसाल तीन जाणो ति वार. २४ तपगछ तणो आलय जुतांम, मांनु ज नलनीगुल्मह विमान, वणीयो भुवन अतही विसेष, द्रिग देत देत वड नरह देख. २५ जाली झरोख तिणमै जू जोर, छोहबंध कांम चिहूं को ओर, तिस परह कलीय लागी जूताह, चतुर हि देखते चित्त चाह. २६ थिर लगे तिहां वड वडे थंभ, पेखे जू नरह होत है अचंभ, भूय परह सखर वणी है जू भींत, जगके उपाश्र सब लये जीत. २७