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________________ नवेम्बर - २०१४ १११ ११२ अनुसन्धान-६५ इग्यार अंग उपांग बार, छ छेद ग्रंथको वचै सार, धुन मेघ जेम गर्जत वखांण, नितमेव साचवै पचखांण, नवतत्व ज्ञानको सकल जांन, सिद्धांतभेद-विद्यानिधान, विधवांन भाष्य रस ग्रंथ आंन, पुन कर्मग्रंथको भेद ग्यांन, जीव-अजीवको भाव भिन्न, "बतवाय देत सब जीव चिन्न, भवि लोक सुणत विकसै सरोज, उपजै संदेह तिहां पछै चोज, नित आवै श्राविक वंदै पाय, परगटै जोत अंधियार जाय. ४ ॥ अथ गुरराज षट्त्रिंशद् गुणवर्णनमाह ॥ धरम जिणेसर गावो रंगसूं - ए देशी ।। एकविध असंजम टालक सही, दुविध धरमना प्रकास, म्हारां गुरुजी, तीन तत्वना जांणक थे अछो, च्यार कषाय विनास, म्हारां गुरुजी. १ भविजन वंदो रे एहवा गछपति [टेर(क)] पंच महाव्रत पालक स्वामिजी, षट कायना पीर, म्हारां गुरुजी, सात भयाना आप निवार छो, आठ मदां नावि धीर, म्हारा गुरुजी. २ नवविध ब्रह्मचारजना धारवी, दश विध धर्म प्रकास, म्हारां गुरुजी, अंग इग्यार तणा जांणक वली, द्वादश अंग-उपास, म्हारां गुरुजी. ३ त्रयोदश काठियाना जीपक तुम्हे, चवदै विद्याना जांण, म्हारां गुरुजी, पंचदश भेदे सिद्ध-प्रकाशक, सोलै कला [शशी] वदन सुजाण. म्हारां गुरुजी. ४ सातदश भेद प्रकाशक पूजाना, अढार सहस शीलांग, म्हारां गुरुजी, उगणवीस काउसगदोषनिवारक, वीस-तप-थान उपास म्हारां गुरूजी. ५ एकवीस गुण श्रावकना प्ररूपक, बावीस परिसह जीप[क], म्हारां गुरुजी, तेवीस अध्ययन सदा सुगडांगना, चोवीस जिनाज्ञापाल, म्हारा गुरुजी. ६ पंचवीस भावनाना अति भावक, छव्वीस दसाकल्पप्रपाल, म्हारां गुरुजी, सत्तावीस साधुगुणांना प्रकाशक, अठावीस लब्धदयाल, म्हारां गुरुणी. ७ एगुणत्रीस पाप सुरत परसंगना, त्रीस महा मोहनी थान, म्हारां गुरुजी, वारक वर्जक छो गुरुजी तुम्हे, इगतीस गुणना विनांण, म्हारां गुरुजी.८ बत्रीस लक्षण करि पूजजी विराजता, तेत्रीस असातना टाल, म्हारां गुरुजी, चोतीस अतिसयना परूपक, पैत्रीस वांणीयै विसाल, म्हारां गुरुजी. ९ दुहा : छत्तीस सूरिगुणै करी, सोभंता गुरुराय, इह विध देशना देशता, नित नित वंदु पाय. १ ॥ अथाने ओपमा लिख्यते ॥ सकलगुणनिधान, सकलक्रियासावधान, सकलगुणालंकृत, सकलजननलिनदिवाकर, सकलनरिंदपूजनीक, सकलसिद्धशिरोमणिः, वादिमानमोडन, याचकजनदुखदारिद्रतोडण, धर्मचक्रवर्तः, जैनधर्मउद्योतकारक, अहंकारीमानमर्दन, सर्वजगत्रवंदन, पापनिकरनिकंदन, राजामनरंजन, वादीभटनिकंदन, कर्मगजविखंडन, पापतिमरभंडन, श्रीजिनशासनदीपक, बहुशास्त्रवादजीपक, वादीचक्रचूडामणि, राजतदिवसनिशामणिः, वादीसिंहसार्दूल, वादीकंदउन्मूलन, भुवलयचक्रचूडामणिः, परमपूज्य, परमात्माप्ररूपक, परमधर्ममूर्तिः, परमकृपाल, परमदयाल, याचकजनप्रतिपाल, परमपंडितशिराल (?), वाचा वाचाल, निश्शेषनम्रीभूतनपाल, श्रीजिनशासनपतिसाह, तपागछउद्योतकारक, कंदर्पोन्मादमारक, धारकांधारक, सर्वसिद्धांतपारक, परमकल्याणकारक, श्रीश्रीविजयधर्मसूरि गुरुजितां पट्टधारक, गादीउछाहकारक, प्रभाविकां प्रभाविक, सर्वजगत्रदीपकसमान, शत्रु मित्र जिम परमान, षट्त्रिंशद्गुणे(जमान, राजमान, शोभमान, दीपमान, इत्यादि अनेकोपमागुणालंकृतान्, श्रीजिनशासनचक्रिवर्तिसमानान्, कलिकालगौतमावतारान्, सकलसूरशिरोमणीन्, समुद्र जिम गंभीरान, सिंह जिम निर्भयान्, भारंड पंखी जिम अप्रमत्तान, मेरु जिम गंभीरान्, सूर जिम तेजस्वीन्, चंद्र जिम शीतलान्, षोडशकलासंपूर्णवदनान्, सश्रीकान्, परमसोभावान्, सकलभट्टारकपुरंदर भट्टारकजी-श्रीश्री१००८ श्रीश्रीविजयजिनेंद्रसूरीश्वरजीत्कानां चरणां, चरणकमलां पत्रम्।। धन्य ते गुजरात देस, धन्य ते मांगरोल नयर, धन्य ते श्राविकश्राविका, धन्य ते ग्राम-नगर-पुर-पट्टण-सन्निवेस जिहां श्रीपूज्यजी विहारण करै, चौमासो करे, धरती पवित्र करै, चरणोदक प्रसवै । धन्य ते मांगरोलना श्राविकश्राविका जे नित्य श्रीपूज्यजीना मुखनी अमृतमयी वाणी सांभलै । कान पवित्र करै, पोसह-पडिकमण-व्रत साचवै, पच्चक्खांण करें। श्रीतपागच्छमाह दीपक समान श्रीपूज्यजीना मुखनो प्रभात समै दर्शन करै, पूजा प्रभावना करै, धन्य ते श्राविक-श्राविका पुण्यभंडार भरै । इत्यादिक श्री पूज्यजीना गुणनी तारीफ हजार गमैं जीभ हुवै तो वर्णवे न सकै, मो मंदमतिथी किम वर्णवाय?
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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