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________________ नवेम्बर - २०१४ १०९ ११० अनुसन्धान-६५ ॥ अथ चाल गजलरी ॥ सोरठ देस सब सिरताज, समवर अवर नह को आज, रिध सिध जिहां अनंत अपार, बहु बुधवांन है नर नार, तीरथ सिधाचल तिहां धांम, दूजो नेमपरबत नाम, वाडी बाग है विसेष, 'पिंडत प्रगट त्यां हि ज पेख, 'पाखर कोट है परचंड, नही है अवर नव ही खंड, तिण तलवणी खाई खास, हियमै देखे हरख हुलास, कंगुर कोट लख ही कोड, जोतां जगतमें नहि जोड, वड वड तोप विकट विराज, भलक्यां अरी जावै भाज, घन उंच है जु दरबज घाट, कहुं मइ वज्रके ज कपाट, ओर ही सैर देख्या अपार, चोहटै वने सुगटा च्यार, हाटां वणी लख हजार, विध विध करत है वेपार, महाजन सेठ तिण विच मंड, न्याई नृपत नहि लै दंड, वसहै वरण च्यारुं वास, सुखिया सरस सिव केलास, पुर मांगरोल के महाराज, मीयां मानक रहै राज, सुत है दोय पारसरूप, ओपम कहुं इधक' अनूप, दीठा सोमजी दीवाण, करतो अणदराम ही काम, मीया फोजदार ही "फाब, मुदी मूरतजी निबाब, करहै राजके सबइ काम, रजवट रहै आलु जांम, थिर गज वाज राजमै ठठ, सखरा सूरवीर सुभट्ट, सखरो बुद्धवां[न्] सिरकार, जगमै प्रभा जिनकी सार, रागी करत है बहु राग, वाजा सहै इतना वाग, धन धन घुरत जिम त्रंबाल, निजरां नरां आंख निहाल, नव नव खेलगनका नाच, रंगे राग मुख सुरराच, नटवा गाय गीत जु नाद, वदहै बोल वादो वाद, काजी वाचते कुरान, वलि जुध करत नित जुवान, मुगल ज सैद सेख पठाण, बलसै खैचतेक बाण, दीठा तिन जिनदेहराक्, नीके करै नर सेवाक्, अष्टम वीसमो जिन तास, परतिख पूर परचा पास, ऊंचा महल अतिआवास, नीका निपट हैज निवास, पासै वण्या वाग ज वेस, दरषत फले फूल असेस, श्रीफल देख दारम दाख, चटके मुखासुक फल चाख, सब ही जान त्रियवग सच्च, बाबु मियां हरचंद रच्च, पक्की वावडी विच पेख, राजी होत नर सहु देख, सोहै चोतरै सिकदार, सखरा न्याच(य?) कर निरधार, सायर लेत हासलसद्द, देतां करन नही को 'जद्द, महाजन सेठ सुखिया मांन, देवै अहोनिस बहु दाम, नांनजी सेठ बुधनिघांन, आछी भगत गुरु उर आंन, चतुर्मास दोय कीध हे सार, बहु भक्ति कीधी अपार, सब जगतमें हुइ इनकी ख्यात, कीरत विस्तरी बहु भात, धरमसी सेठ सबल सुणंत, मोदी सेठ कपुर भणंत, श्राविका वालुबाई आद, बहु वलि श्राविका गुणनाद, दूहा : सहर वखाण्यौ हु सुण्यौ, गुणिजन सुणज्यो गुझ, अब पद्धडी छंदह रचु, गुण वरणुं श्री पुज.१ मुझ मुख कीरत कहां कहूं, कहां ओपम कहवाय श्रीविजैजिनिंद्रसूरिंदनी, कीरत सुजस कहाय. २ ॥ सवईयो - इगतीसो ॥ जैसो है प्रतापवान, पूरन अखंड ग्यांन, नीत सनमान जहां, आनंद उदोत है, आननकी सोभा मांगें, द्युमणकी क्रांत जैसी, तैसी है मधुर वाणी, सुण्या हर्ष होत है, ताहि गुरुराज जुकी, कीरत कहां लग, कांनि संदेह जांचें मै, सूरजकी जोत है, लहर दरियाव गुण, गुहिर सागर जिसी, विजिनेइंदसूर, असो देसोत है. ३ ॥ छंद जाति पद्धडी॥ अवतार विजै साखा प्रबल, नितमेव तपै गादी अचल, ये है सूरमंत्रधारक प्रसिद्ध, षटतीस गुणै सोभत समृद्ध, चोसरा चंवर छलकंत नित्त, सिर परै छत्र सोभत अमित्त. झलहलै वदन जिम चंद जांन, कीरत जग पसरी किरण भांन, व्रत पश्चाधार साहस सधीर, नव वाड मांझ४ गुनके गंभीर,
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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