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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ अणभंग मंत्री वड उमराव, चांपा कूप जेता चाव, जोधा उद दूदा जोत, कम्मा नाटीयां करणोत. ३ धांधलखी चीरज धारीक, सुभट ही जांणधर सारीक्, गेहलोत मांगल्या गुणवंत, दश ही देशमें दीपंत. ४ धूM अटल वृद धारीक, "झट्टां "खगां अरी दे झीक, मुंहणोत सींघवी मतिवंत, सही तिहां भंडारी सोभंत, ५ मुहता विप्र कायथ मांन, दोढीदार वड दइवांन, वड वड भूपके गज वाज, रथ सुखपाल रूडै राज. ६ असवारी ज फब है इंद, चिठं दिशि चढत दल जैचंद, सुभट ही थाट क्षात्रीवट पूर, नरपति अग्गलीयां मुख नूर. ७ ता पिछ मंत्री सुरगुरु तुल, फब है बाग वाडी जुं फूल, "प्रोहित व्यास बहु वलि पेष, सइद पठाण मुगल ही सेष. ८ ३"नाजर पात्र गायन नेस, वलि तिहां चोपदा रही वेस, चारण भट्टकै बहु थट्ट, नाटिक नाचते बहु नट्ट. ९ । जोय तिहां मल्ल करते युद्ध, बोलत बिरुद केइ बहुबुद्ध, वाजत त्रीस षट ही वाज, गुंजत धरा अंबर गाज, १० षट ही राग उचरत खास, परगट रागणी पढ पास, गज ही करत तिहां गर्जार, हय ही उचरतै हौंकार. ११ जिहां धुर "दमांमा सच जान, निपट ही फरहरै नीसांन, वर्णन पढत असवारीक, भन है सोभ अति भारीक. १२ अब कहुं सेहरका वाखांन, कीरत सुणो दे दे कान, कहुं गढ किला फुन कोटाक, मार्नु मेरुसे मोटाक. १३ उहां दरवज्ज अति उंचाक, परगट आभ लग पोहच्याक, २०भुरजां ताहिकी भारीक, निरखित “छिव्व नर-नारीक. १४ तिस पर वडवडी है तोप, "केहर छूट अरि परकोप, गढमै देवी चामुंडगराज, विष्णुं देहरा विराज, १५ महिल ही वडे हे मंडाण, इलमे देवभुवन ही आंण, परबत तिहां पांचे [च]ढ्याक, भल भल सिद्ध तिहा भेट्याक. १६ ज्वालामुखीदेवी जांण, वड हणमंत भीम वखांण, पदमसर राणीसर परगट्ट, थिर गुलाबसागर थट्ट, १७ सागर फते तिहां सर सात, पढते कीर्ति वड वड पात, गंगेलाव फूलेलाव, नर तिहां बेठतै बहु चाव, १८ तापी वाव जेता कूप, चावा देखकर कर चूंप, बहु लंब चौवडा बाजार, वड नर साह करे व्यापार, १९ ४ अडालच न्याव है अदल्ल, मुखथी करत वड वड मल्ल, चबूतरा कोटवाल ही चाव, निपट ही होत सच्चा न्याव. २० तलहटी मेहल देख्या ताम, नव खंडमाहि जानत नाम, हट्टा गोंख हवेलीक, झुक रहै झरोखा जालीक, २१ सही तिहां देहरा गंगस्याम, धरीया बिहारीकुंज-धाम, जलंधरनाथका देहराक, मनु सेहरका सेहराक. २२ भगवंत देहरा भारीक, नित नित वंदे नर नारीक, राजै कचेडी "निजदीक, तिहां दरीया "फकीतह तीक, २३ सायर तिहां अति "सरसात, आवत द्रव्य अरु दिन-रात, चारण भट्ट चरचावान, देतै राव राणां दांन. २४ ।। शिव गुणपति भैरूं साच, वण्या है देहरा मुखवाच, ४ मनारै वडे अरू ४ महजीत, पढते जवन कर करप्रीत. २५ यतीभुवन वणीया जोर, तुह सम भुवन [न] ही कोई ओर, प्रथम ही तपाका पहिचान, जिहां वलि खरतरांका जान, २६ पास ही चंद लूंका पेख, दयाधर्म उहां बहु देख, परगट दरसणी पौसाल, रूडी वत्त वद रसाल. २७ सरवर मान तिहां सच्चाक, वड नर गंग जिम वच्चाक", पासवान् देहरा पहिचान, धरते उहां नर बहु ध्यान, २८ आसण मठ "असतल आख, देख्या सिद्ध संत ही दाख, तकीया फकीरां का तांम, अहोनिस लेत अल्ला नाम, २९ सिंघव मोहणोत है सिरताज, भला भंडारी बंध भ्रम पाज, मुहता वडा मर्द ही मर्द, सही करे अरीयणकुं सरद[]. ३०
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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