SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ काम-कल्याण हमेसां लिखावसी दुजणी जाणसी नही। अमारें तो हुकम व्यवहार सदाई राजनो ज छ। अनें वली श्रीजी साहिबांनी फुरमास आवसी ते मार्थे चढावी लेसुंजी । वलमान पत्र कृपाप्रसाद करी वहिला लिखावसीजी । तत्र श्रीश्रीश्री साहिबांने पार्श्ववर्ति साधु सर्व होवें तिणांसुं प्रेमविजयरी वंदणा वांचजोगी। मिति फाल्गुण सुद्ध २ गुरु संवत् १८४५ वर्षे श्रीश्रेय ॥ * * * (१४) जोधपुरथी मनरूपविजयजीनी रतलाम विजयजिनेन्दसूरिजीने विज्ञप्ति मङ्गलाचरणमां संस्कृत पद्यो द्वारा आदिजिन, शान्तिजिन, नेमिजिन, पार्श्वनाथ, वर्धमानस्वामी तेमज माणिभद्रयक्षराजने नमन करी गर्जरभाषामा पद्यपत्ररचनानी शरुआत करी छे । तेमां पण पूर्वोक्त इष्टदेवना स्मरणनी साथे माता सरस्वतीनुं पण स्मरण करायुं छे । पत्र लेखनक्रमानुसार हवे पछीनां पद्योमा कविए पद्यावती-छन्दमां मालवदेश तेमज रतलाम शहेरनु, अने ते पछीना भुजङ्गी-छन्दनां पद्योमा गुरुभगवन्तनुं वर्णन कयु छ । मालवदेशनी हांसी करतां पद्यो ए आ पत्नी विशेषता छ । हास्य साथे पदार्थ रजू करवानी कविनी आगवी कळा अहीं जोवा मळे छ । अन्य पत्रनी जेम सूरिगुणवर्णन अहीं २ ढाळमां ३६ गुणोथी करायुं छे। त्यार पछी सर्व सामान्यगुणोनी संस्कृत गद्य अने पद्य तेमज गुर्जर गद्यमा वर्णना करी पछीनी ढाळोमां कविए मरुधरदेशनो तथा जोधाणानृप मानसिंघनो चितार आलेख्यो छे। मरुधरदेशनी वर्णना साथे त्यांना राजदरबारीओन, प्रजाजनोनू, जैन-जैनेतर मन्दिरोन, उपाश्रयो तेमज सरोवरादि ऐतिहासिक नोंधोनुं विस्तृत वर्णन कविए 'गझल'मां अद्भुत रीते रजू कयु छ। त्यार पछीनी ७ गाथा पण उपरोक्त वर्णनना पूरक अंश तरीके ज रचाई छ। 'आज हजारी...' आ देशीमां कविए सूरिगुणवर्णनानी साथे सूरिदर्शननी उत्कण्ठा पण आलेखी छे । वळी आपने अहीं पधारतां अन्य तीर्थोनी पण वंदना थशे ते विगतो त्यार पछीनी 'बिंदली' देशीना ५ थी ८मां पद्यमा गुंथी सूरिजीना संसारी अवस्थानी केटलीक ऐतिहासिक माहिती रजू करी छ । मुडीया लिपीना पत्रालेखननी शरूआतमां श्रीसद्धे वन्दनादिपूर्वक चातुर्मास सम्बन्धि विगतो व्यक्त करी छ। ते सिवाय खास विगतमां उपाश्रयनी मरम्मत अंगेनी नोंध जाणवा योग्य छ । उपरोक्त विगतमांथी ज केटलीक वातो पछीना दूहाओ द्वारा वर्णवाई छ । पत्र खण्डित होवाथी हवे पछी विनती करता पद्योवाळी सज्झाय अधूरी ज रहे छ । सम्पूर्ण कृतिनी रचना भक्तिविजयना शिष्य कवि मनरूपविजये करी छ ।
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy