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________________ ८२ अनुसन्धान-६५ नवेम्बर - २०१४ तुम दरिसनने तरसे हो, घणु हरसें हीयडो माहरो. मोरांने जिम मेह. गज जिम समरे रेवा हो, नितमेवा सिता रांमने, पंथीडा मनगेह. ५ एहवी रीत तुमारी हो, इकतारी धारां छो, थारे तो नव लाख, तो पिण मनडे अमने हो, घणु तुमनें अहोनिस संभरे, त्यांरी सुपनां देसी साख.६ वहिली वलण करेज्यो हो, वली दिजो दरसण दासनें, मया करी मुनीराय, सादडीसेहर पधारो हो, अवधारो वीनती म्हांहरी, राजिंद गछपतिराय. ७ आवी देव जुहारो हो, पउधारो श्रीपूज्यजी, रांणकपुर रसहेस, तु तपगछरी गादी हो, जग वादी सघलाई जीतीया, मुनीवर तणा महेस. ८ श्रीविजेंदयासूरी-पाटे हो, मुनीथाटें प्रतपीजो सदा, श्रीविजेधर्मसूरीस, जीवणसागर ग्यांने हो, गुरु-ध्यांने तपगछरायसुं, अहोनिस दै आसीस. ९ ॥ इति विज्ञप्ति सज्झाय || ५ अत्रथी सदा सेवग पं० जीवणसागर ग०, पं० मनोहरसागर ग०, पं० हिम्मतसागर ग०, पं० नित्यसागर ग०, पं० चतुरसागर ग०, पं० योग्यसागर ग०, पं० रामसागर ग०, कर्पूरसागर ग०, भावर्षि चेला फतेचंद, तेजसी, जगरूप, देवीचंद प्रमुख ठाणा १७नी वंदणा १००८ वार अवधारवीजी । तत्रत्य सपरिवार साधुने वंदणा वंचावसीजी । (१३) सूरत नगरे विजयजिनेदसूरिजीने थांदलाथी प्रेमविजयजीनो पत्र प्रस्तुत पत्र थान्दला नगरथी प्रेमविजयजीए सरतनगरे विजयजिनेन्द्रसरिजीने उद्देशीने लख्यो छे. पोते शा कारणथी पत्रिका(पत्र) लखी छे ते प्रयोजन बतावी कविए गद्यप्रवाहमा पूज्यश्रीना अनेक गुणोनु वर्णन कयु छे. साथे पद्यमां पण सवैया प्रकारमा ४ पद्यो रची पूज्यश्री प्रत्येनी पोतानी भक्ति प्रगट करी छे. पूज्यश्रीना दर्शननी झंखना अने पूज्यश्री प्रत्येनी समपितता त्यारबादना गद्य पत्रविभागमां जणाई आवे छे. कृतिमां घणा शब्दो मारवाडी भाषाना छे. केटलाक अरबी-फारसी भाषाना छे जे तत्कालीन बोलीना व्यवहारने बतावे छे. शब्दार्थ १. स्रव = सर्व ५. जदवा-तदवा = जेमतेम २. ग्रसाय = ग्रसित थाय ६. दुजणी =? ३. तकसीर = भूल (?) ७. फुरमास = फरमास = (आज्ञा) इच्छा ४. वावला = वेवलो = गांडो सकलभट्टारकपुरंदरभट्टारकणी श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री १००८ श्रीविजयजैनेंद्रसूरीश्वरजी चर्णा(रणा)न् चर्णकमलचांबुजेभ्यो नमः ॥ || श्री २४ ॥ श्रीमज्जिनो जयतीतराम् ॥ श्री श्रेयोऽस्तु ॥ स्वस्ति श्रीजिनमानम्य, पञ्चकल्याणनायकः (कम्) । लिखामि पत्रिका(कां) रम्या, सत्समाचारहेतवे ॥१॥ स्वस्ति श्रीऋषभादि-श्रीवीरजिनं प्रणम्य श्रीमति तत्र श्रीसूरतबिंदर महाशुभस्थाने पुरंदरपुराकारे तत्र सकलगुणगणान्, गुणमणिअलंकृतान्, विबुधजनरंजितान्, विद्वज्जनपंडितान्, चारुचातुरीचमत्कृद्दीप्तदेहान्, वाणिगुणमिष्टतान्, धर्मीष्ट महाधर्मवान्, षडत्रिंशद्गुणे शौभितान्, पंच महाव्रत-पंच सुमति-त्रय गुप्ति एवं
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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