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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ (१२) सादडीथी श्रीसङ्घनो भिन्नमाल विजयधर्मसूरिजीने मोकलायेल विज्ञप्तिपत्र प्रस्तुत पत्र सादडीथी श्रीसद्धे भिन्नमाल विजयधर्मसूरिजीने उद्देशीने पाठव्यो छे । जोके कृति जोतां सम्पूर्ण पत्र आगळ सम्पादित थयेल विजयजिनेन्द्रसूरिजीना पत्रने मळतो छ । पत्र मोकलनार सङ्घनुं नाम, पत्र मोकलायेल स्थाननुं अने त्या बिराजमान गुरुभगवन्तनुं तेमज तेमना माता-पिता विगेरेनुं वर्णन बाद करता पत्र वर्ण हुबहू आगळना पत्रनी नकल छ। अहीं सम्पूर्ण पत्र- सम्पादन न करता विशेष नोंधो/पद्यो आप्यां छे । पूर्वपत्रनी विगत प्रस्तुतपत्रनी विगत - पत्र क्याथी लखायो? विजेवानगरथी लघुमारवाडना सादडीथी - क्या लखायो ? राधनपुर भिन्नमाल - कोना उपर? विजयजिनेन्द्रसूरिने विजयधर्मसूरिने (विजयधर्मसूरिशिष्य) (विजयदयासूरिशिष्य) - माता गुमानदे पाटमदे - पिता प्रेमा - वंश ओसवाल ओसवाल - पत्रस्थ तीर्थों शत्रुजय, वरकाणो अर्बुद, राणकपुर अन्य महत्त्वपूर्ण नोंध : १. प्रस्तुत पत्रमा तीर्थमाहात्म्य वर्णवता आबुन वर्णन होइ अन्य ३ पद्यो मळे * आ जे पत्र अंगेनी वात छे ते पत्र अनु. ६४, पृ. १९४-२०९ पर प्रकाशित छे. ते पत्र विजयधर्मसूरिजीना पट्टधर विजयजिनेन्द्रसूरिजीने उद्देशीने लखायो छे, तेथी अत्रे प्रकाशित विजयधर्मसूरिजी परनो पत्र तेनाथी जूनो होय अने मूळभूत पत्र होय तेमज पूर्वे प्रकाशित पत्र आनी नकल रूप होय, न के आ पत्र ते नवा पत्रनी नकल होय ते सहज समजाय तेम छे. परन्तु सम्पादक मुनियुगले जे रीते नोंध मोकली ते ज प्रमाणे छापवानु उचित धायुं छे. - शी. छे ते नीचे मुजब - A देशवर्णन ढाळ - चोपाई प्रथम विमलमंत्रीनो सार, आदिस्वर प्रासाद उदार, सुंदर उन्नत अधिको सुणो, अविचल आबू मध्य ए थुण्यौ ॥५।। B देशवर्णन, ढाळ - चोपाई ति[म] वली मांड्यो नेमिप्रसाद, मंदिर गीरसुं करतो वाद, पोरवाड तेजपाल वस्तुपाल, करापित जिनभुवन विसाल ||७|| C देशवर्णन, ढाळ - चोपाई अचलगढ जिनभुवन विख्यात, ते मध्य बिंब सकल सप्तधात, मण चवदेसै चमालीस मान, चौमुख च्यारे प्रतिम समान ॥९॥ २. ढाल - २ 'रंग रो रे.....' देशीमां पद्य ११९ अधिक मळे छ । श्रीविजेंदयासूरिंदनो, पट्टधारी सुप्रसिद्ध रे, श्री विजैधर्मसूरीश्वरु, नमतां होई नवनिद्ध रे. ११ ३. वीनती स्वाध्याय ॥ देशी रसीयानी ॥ पद्य ५मुं 'कीजिइ कीरीया विसेष'नी जग्याए 'चित धरे तिम चाह' आवो पाठान्तर मळे छ। विज्ञप्ति सज्झाय वीनतडी अवधारो हो, पउधारो लघु मरुधरदेशमें, चतुर तमें चोमास, श्रीविजेंधर्मसूरीसा हो, मुनीइसा संघ समस्तनी, अवधारो अरदास. १ वीनतडी.... पहिली प्रीत लगाई हो, स्युं जाई रह्या परदेशमें, माया रे मनथी मुंक, जलोधरसुं मोह्या हो, स्युं सोह्या करुणासागरु, स्यो पडियो अम चूक. २ शीलें थूलीभद्र सरिखा हो, विद्याई वयरकुमार ज्युं, गोयमनो अवतार, वांणी अमीय समांणी हो, हित आंणी प्रांणी सांभली, बूझ्या केई नर-नार. ३ सरसतीकंठे मोहो हो, मन मोहि मदन तणी परे, रूप वन्यौ वसूदेव, भल भला रांणा राया हो, गुरु हेते वांदवा, चाह करे नितमेव. ४ हरचंद
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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