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________________ नवेम्बर - २०१४ अनुसन्धान-६५ सत्तरभेद पूजा रचें सदा, भावना भावे अतिसार रे रसिया, समकिति सहू श्रावक श्राविका, जिनगुणमुख जयकार रे रसिया. ३ वसे सदा वडा व्यापारीया, साहपति साह समान रे रसिया.. दाने माने करी वलि आगला, संपदा धनद समांन रे रसिया. ४ वरण चियारे जिहां किण विलसता, पवन छत्रीस परसिद्ध रे रसिया, चहुटा चोरासि जिहां परगडा, निगम प्रवेश नव निद्ध रे रसिया. ५ गोखे गोखें रे जालि मालियां, परवतप्राय परसाद रे रसिया, सुखिया लोक जिहां सहु को वसें, विलसता रिद्धि सवाद रे रसिया. ६ वाडि ने उपवन वनखंडनी, चिहुं दिसि सबजी सुचंग रे रसिया, विच विचमाहे नगर विराजतो, मेरु जिम मोहन रंग रे रसिया. ७ देवकुमर जिसा जिहां दीपता, मांनवना तिहां थाट रे रसिया, ओपें अपछरनें अनुहारडे, नारिय निरुपम घाट रे रसिया. ८ वरते जिहां जिनवरनी आगन्या, पालता धरम दयाल रे रसिया, साध साधवी श्रावक श्राविका, जीवदयाप्रतिपाल रे रसिया. ९ उंचा मंदिर सोहे मालिया, राजभुवन मनरंग रे रसिया, सोवनगिरवर जिम सोहांमणो, उजलवरण उत्तंग रे रसिया. १० रतनागर जिम दीसे रूअडो, चिहुं दिसि सरवर सार रे रसिया, नितनित भरीया रहें जिहां नीरस्युं, सोहता अति श्रीकार रे रसिया, ११ सुगुरु सुदेव अमें सुधरमनो, रागी छे नर नारि रे रसिया, श्रावक नित प्रति जिहां किण साधता, धरमना च्यार प्रकार रे रसिया.१२ इम अनेक गुणे करी सोभतो, मेदनीपुर सुभ थान रे रसिया, श्रीश्रीपूज्यतणे सुवचनथी, धरें महाधरमनइ ध्यान रे रसिया. १३ सरव गुणे करी सोभतो, मोहतो जनमनरंग, मरुधरमंडन दीपतो, मेडतो नगर सुचंग. १ संघ समस्त तिहां थकी, लेख लिख्यो श्रीकार, त्रिविध त्रिविध करि वंदना, अवधारो गणधार. २ श्रीश्रीपुज्यप्रसादथी, छे इहां परम विलास, श्रीजीना निराबाधना, देज्यो पत्र उल्लास. ३ धर्मध्यांन इहां किण घणां, नित नित नवले नेह, ओछव महोछव अभिनवा, कहेंतां नावें छेह. ४ छठ अठम दशम पनर, मासखमण तप तेम, थयां अनेक इहां किणे, नित नवला धरमनेम. ५ पर्व पजुसण पारणा, सामीवछल सार, आडंबर अधिका थया, परघल बहु परिवार. ६ निराबाध सुख तप तणां, श्रीजि(जी)ना सुखकार, समाचार श्रीसिंघनें, देज्यो चित्त धरि प्यार. ७ संघ समस्त कर जोडिनें, इंम करें अरदास, पधारो श्रीपूज्यजी, चतुर तुमे चोमास. ८ ॥ ढाल ॥ पूजजी पधारो हो मरुधर देसमां, श्रीविजेंधर्मसूरिंद गछाधिप, संघ निहालें हो तुमची वाटडी, मोर समागम ई(ई)द गछाधिप. १ दुरलभ दरसण तुमचो जगतमां, जिम चिंतामणिरत्न पटोधर, सुलभ सदा जेहनें उदयें थयो, पूरव पुन्य प्रयत्न पटोधर. २ भमर तणे चित्त जिम जलरुह वसें, चंद उदय ज्यं चकोर पटोधर, सतिय मनें भरतार अहनिसि वसें, जिम सुरभि वछनी ओर पटोधर. ३ गज जिम समरे नित रेवा नदी, कोईल जिम सहकार पटोधर, तिम सहू संघ दरसण श्रीपूजनो, करवा चाहें सुखकार पटोधर. ४ अमने चाह सदा तुमची रहें, थे छो बेपरवाह पटोधर, पिण तुमनें कहो कुण कहि सकें, ए नही अनुप स्वभाव पटोधर. ५ देस नगर घणा तिण परिसरें, एक दीठे बीजो वीसराय पटोधर, मोहनगारा लोक माया अति केलवी, राखे तुम विलंबाय पटोधर. ६ रागविलुधा हो सहु नर गुण स्तवें, दिन दिन चढते भाव पटोधर, धरमसनेह राखो जिण रीतस्युं, पालि अविहड भाव पटोधर. ७ दरिसण तुमचो हो प्रभुजी देखवां, अम मन अधिक उछाह पटोधर, नयण उमाह्यो तुम मुख जोयवा, चित धरै तिम चाह पटोधर. ८
SR No.520566
Book TitleAnusandhan 2014 12 SrNo 65
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages360
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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