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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
तुम दरसण विरहें प्रभु अम भणी, अतिहि अणुरमा थाय, पटोधर, दरिसण विण अमची दिन रातडि, अतिहि अलुणि रे जाय पटोधर. ९ जिण दिन गछपति मुरति पेखस्यां, सुणिस्यां तुम्ह मुखवांणि पटोधर, चरणकमल दोइ कर जोडिनें, फरस्यां ते सफल विहांण पटोधर. १० अमची वीनती ए अवधारिनें, पावन किजें हो देस पटोधर, धरम तणो बहु लाहो लीजीयें, कीजीयें कृपा विशेस पटोधर, ११ पुज पधायाँ हो धरम होस्य घणा, वली होस्ये धरमनो लाभ पटोधर. कुमति-मिथ्यात्व सहु दु हस्यें, वधस्यें जिनमतआभ पटोधर. १२ श्रीविजयदयासूरिंदना पाटवी, श्रीविजयधरम गणधार पटोधर, पावन कीजें हो पूज पधारिनें, एह वीनति अवधारि पटोधर. १३ संवत अढारसें त्रीसा (१८३०) वरसनो, मृगसिर सुदि सुखकार पटोधर, द्वीतिया दिवसे हो गायो गछपति, सयल संघ सुखकार पटोधर. १४ पंडितसकलशिरोमणि दीपता, श्रीरत्नसागर गुरुराय पटोधर, तास पसायै गायो गछपति, सत्यसागर सुखदाय पटोधर. १५
॥ इति श्रीविज्ञप्तिकास्वाध्यायसम्पूर्णतामगात् ॥ इति श्रेयः श्रेणि(ण)यः संवत १८४१ वर्षे कार्तिक सुदि १४ वार बुधे पं. माणिकनाथेन लिखितं ॥ गौधावि मध्ये गछपतिनें लेख लिखानि विधिः ॥
भीनमाल बिराजमान विजयधर्मसूरिजीने
सादडीथी मोहनविजयजीनो पत्र प्रस्तुत पत्र विजयधर्मसरिजीने उद्देशीने सादडीथी मोहनविजयजीए लख्यो छे. शरुआतनो मङ्गलाचरण, ग्रामादिकनी वर्णना व. वाळो भाग खण्डित थई गयो होई कृतिनी शरुआत गुरुगुणवर्णनथी ज थाय छे. केटलांक पद्यो गुरुभगवन्तने विषे स्नेहना, केटलांक गूढार्थवाळां, तो केटलांक वर्णनात्मक रजू करी सादडीनगरनु, त्यांना श्रावक-श्राविकारों, अन्य तीर्थोनुं वर्णन कविए सुन्दर शब्दोमां कयु छे. मूडीआ लिपिमां श्रीसङ्कना श्रावकोना नामोल्लेख साथे पू. मोहनविजयजीना चातुर्मासनी, तेमां थयेल आराधनानी सविगत नोंध गद्यमां आलेखाई छे. पत्रान्ते फरी वार श्रीपूज्यजीने चातुर्मास पधारता तीर्थोनी स्पर्शनानी तेमज धर्मआराधनानी जाणपूर्वक कवि विनन्ती करे छे.
शब्दार्थ
१. पोयण = माछली २. चावी = सुंदर ३. चांदुआ = चंदरवा
४. छैल = रसिक ५. झाल = काननुं घरेणु ६. पयाल = प्यालो
किं बहुना ? यतः - असति(सित)गिरिसम(म) स्यात् ॥१॥ दूहा : गयणांगण कागल करूं... १
अम हीयडुं दाडिमकुली... २ श्लोक : यथा केकी स्मरेन् मेघ...१
किहां कोयल किहां अंबवन... २ गिरुआ सहजे गुण करें... ३ हीयडा ते किम वीसरे, जिम सहगुरु सुविचार, दिन दिन प्रतें ते संभरें, जिम कोयल सहकार. ४