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नवेम्बर - २०१४
अनुसन्धान-६५
जिण दरिसण दुरिगत टलें, पग पग वंछित पुर, भाव धरि भेटें जिके हो प्रभुजी, सदा उगमते सुर. ११ राजिमतिई प्रतिबोधियो, रहनेमि अणगार, पीयुं पहिला मुगति गइ हो भाविका, ए तिरथमहिमा सार, १२ तिण ए तीरथ सास्वतो, बीजो न कोई एहनी जोडि,
गिरनारगिरनो मंडणो हो जिनजी, श्रीनेमि नमुं कर जोडि. १३ काव्य : यस्योत्सङ्गमुपागता जिनमताचारेण पञ्चप्रति
माराध्योत्तमभावभावित(?) स(ह)दा प्राप्ता ह्यनेके शिवम् । भव्या[:] संश्रुत(सृति)सागरान्त मिल(?) जन्तुप्रतारी(?) यतः, नाव(वा) सोऽयमिलातले विजयते तीर्थाधिपो रैवत: ॥१॥
॥ अथ छंद सारसी ॥ उत्तंग चंग उभंग अनवड, शृंग तुंग सुरंग ए. ओनाड झाड पहाड असमर, झमर झंगर" झंग ए, नद नाल खाल अचाल नदीयां, वहें विम्मर वार ए, सिरदार सार अपार सरभर, गिरां सिरि गीरनार ए. १ उडियांण थांभे रह्या आभे, शिखर दह दिसि सेहरा, झड मंडि झिरमिर बहें जाझा महल लग्गे मेहरा, तरु सबल परिमल महकिं तरवर, सफल फल सहकार ए, सिरदार सार..... हुंकार हनमंत रीछ हाका, वाघ गुंजे विम्मरे, डहकंत डमरू वीर डाकां, डींगडाइण डम्मरे, कुहकंत कोईल कुरर केंकी, गहक भमर गुंजार ए. सिरदार सार...... दिसि एक दिणयर तेज दीपें, अवर तरुग्रह अंबरं, महि एक डंडे, मेह माता, पवन वज्जे बहुपरं, तप तपें तापस एकतालि, ध्यान धरि) इक धार ए, सिरदार सार.....
मचकुंद केतक अमल महकें, जाई जयण जासूल ए, कित अंब जंब कदंब करणा, फबे(ले) घण फल-फूल ए, सब ऋतु सुहाइ हेक सरसी, दिल हरे दीदार ए, सिरदार सार. गढ बुरज गिरदी मंडी गोखां, देवदेवल दीपता, झलकति सोवन सिखर जालि, ज्योति रवि शशि जीपता, जिणभुवन पडिगह थंभ जालिम, अन नलिनआकार [ए], सिरदार सार.. घणणाट सघला घंट धणके, झणण झलके झल्लरी, द्रिगगि दौ दो दमामगहकें, भेरी भुंगल झल्लरी, तत्त तत्त थेई थेई नृत ततक्षिण भविक भाव अपार ए. सिरदार सार. घनसार केसर अगर घोलें, नवे अंग चरचे नरा, गुणगीत भावन शुद्ध भावे, पूजि जिनवर बहु परा, मन शुद्ध सघला पाप मेटे हुआ सिवहुंसीयार ए. सिरदार सार..... गिरिनार गिरिवर सिखर गाजी, नेमि जिनवर भवि नमो, ब्रह्मचारि राजुलवर वदीतो तेवो प्रभु बावीसमो भणे भोज यादववंसभुसण, सदा भवि सुखकार ए,
सिरदार सार..... दहा सेत्तुंजो गिरिनारगिरि, मोटा तिरथ दोय,
ते कारण देशांसिरे, जिनमतमांहि जोइ. १ दुजो पिण इण देशमां, वरण अढारह वंद्य, द्वारामति इण नाम धुर, ओपें अतिहि अनंद्य. २ देस देसना जातरूं, आवें मन उल्लास, जात्रा करिने करें भव सफल, करतां लीलविलास. ३ हिवें ते देशे पुर घणां, पिण सहु जनत-परसिद्ध, राधणपुर शुभ ठाम है, नामें हुवै नव निद्ध. ४